सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और टीडीपी सुप्रीमो चंद्रबाबू नायडू दवारा कथित कौशल विकास निगम घोटाले में अपने खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को चुनौती देने वाली याचिका पर खंडित फैसला सुनाया, जिस कारण नायडू की याचिका को उचित आदेश के लिए एक बड़ी पीठ के गठन के हेतु भारत के मुख्य न्यायाधीश के पास भेज दिया गया है।
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इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की विशेष पीठ ने इस सवाल पर खंडित निर्णय दिया कि क्या पूर्व मुख्यमंत्री के खिलाफ कार्यवाही राज्य के राज्यपाल से मंजूरी प्राप्त किए बिना शुरू की जा सकती थी। अपनी राय में, न्यायमूर्ति बोस ने कहा कि अधिनियम की धारा 17-ए के तहत पूर्व अनुमोदन प्राप्त किए बिना भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत शुरू की गई कोई भी कार्रवाई "अवैध" होगी। लेकिन उन्होंने राज्य सरकार को टीडीपी नेता पर मुकदमा चलाने के लिए नई मंजूरी प्राप्त करने की छूट दे दी।
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दूसरी ओर, पीठ में शामिल न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी ने अपने निर्णय में कहा कि मंजूरी प्राप्त न करना दंड संहिता के तहत एक लोक सेवक के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने का आधार नहीं हो सकता है। उन्होंने सितंबर 2023 में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश को बरकरार रखा, जिसमें नायडू की उनके खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने और उनकी न्यायिक हिरासत को रद्द करने की याचिका खारिज कर दी गई थी।
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विशेष पीठ के इस खंडित आदेश के परिणामस्वरूप, चंद्रबाबू नायडू की याचिका पर निर्णय लेने के लिए एक बड़ी पीठ के गठन हेतु उचित आदेश के लिए मामले को भारत के मुख्य न्यायाधीश के पास भेज दिया गया है। यहां बता दें कि नायडू को पिछले साल 20 नवंबर को आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति टी मल्लिकार्जुन राव की पीठ द्वारा पहले से ही प्रस्तुत जमानत बांड पर नियमित जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया गया था। आंध्र प्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।
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