कश्मीर में अलगाववादी राजनीति की नींव रखने वालों में से एक घाटी के वरिष्ठ नेता सैयद अली शाह गिलानी ने आज अलगाववादी मंच 'ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस' से खुद को अलग करने का एलान किया है। एक बयान में 90 वर्षीय अलगाववादी नेता गिलानी ने कहा कि वह ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस से खुद को पूरी तरह से दूर कर रहे हैं। इसके बाद वह मंच के घटक सदस्यों के भविष्य के आचरण के बारे में किसी भी तरह से जवाबदेह नहीं होंगे।
'ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के आजीवन अध्यक्ष रहे सैयद अली शाह गिलानी ने अपने बयान का एक ऑडियो संदेश भी जारी किया है, जिसे बीजेपी नेता राम माधव ने ट्वीट किया है। संदेश में गिलानी ने कहा है कि उन्होंने हुर्रियत सदस्यों को एक विस्तृत पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने कहा है कि हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के भीतर वर्तमान हालात को देखते हुए, वह उससे खुद को पूरी तरह से अलग कर रहे है।
Published: 29 Jun 2020, 7:26 PM IST
पिछले 4 साल से श्रीनगर के हैदरपोरा इलाके के अपने निवास स्थान में नजरबंद गिलानी का अचानक इस्तीफा देना अलगाववादी खेमे की सियासत का बड़ा घटनाक्रम है। गिलानी का इस्तीफा और हुर्रियत कांफ्रेंस से खुद को पूरी तरह अलग करना और उसके बाद उनके बयान को बीजेपी नेता द्वारा साझा करना कश्मीर की अलगाववादी राजनीति में नये मोड़ का संकेत माना जा रहा है। पहले ही 5 अगस्त 2019 के बाद से कश्मीर में लगातार सियासी हालात बदल रहे हैं। हालांकि, कहा जा रहा है कि गिलानी की सेहत पिछले कुछ महीनों से ठीक नहीं चल रही। उन्हें हार्ट, किडनी और फेफड़े में दिक्कत है।
Published: 29 Jun 2020, 7:26 PM IST
बता दें कि ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस कश्मीर में सक्रिय सभी छोटे-बड़े अलगाववादी संगठनों का राजनीतिक मंच है। हुर्रियत का मतलब आजादी होता है और ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस अपनी स्थापना से ही कश्मीर की आजादी की मांग करता रहा है। इस कॉन्फ्रेंस में कश्मीर से जुड़े कई अलग-अलग सामाजिक और धार्मिक संगठन शामिल हैं।
ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का गठन 9 मार्च, 1993 को कश्मीर में अलगाववादी दलों के एकजुट राजनीतिक मंच के रूप में किया गया था। सैय्यद अली शाह गिलानी की इसमें अहम भूमिका थी। गिलानी के अलावा मीरवाइज उमर फारूक, अब्दुल गनी लोन, मौलवी अब्बास अंसारी और अब्दुल गनी भट्ट भी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस की स्थापना में शामिल थे। कॉन्फ्रेंस के पहले चेयरमैन के तौर पर मीरवाइज उमर फारूक ने जिम्मेदारी संभाली थी। इसके बाद 1997 में सैय्यद अली शाह गिलानी ने इस पद को संभाला।
Published: 29 Jun 2020, 7:26 PM IST
दरअसल, जम्मू-कश्मीर में 1987 में कांग्रेस और फारूक अब्दुल्ला की नेशनल कान्फ्रेंस ने मिलकर चुनाव लड़ा था। जिसमें कांग्रेस को 26 सीट और नेशनल कॉन्फ्रेंस को 40 सीटें मिलीं। जिसके बाद अब्दुल्ला ने सरकार बनाई। इस चुनाव में विरोधी पार्टियों की मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट को सिर्फ 4 सीटें मिलीं। इसके बाद ही कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के गठजोड़ के विरोध में घाटी में ऑल पार्टीज हुर्रियत कान्फ्रेंस की नींव रखी गई। इसका काम घाटी में अलगाववादी आंदोलन को बढ़ाना था।
लेकिन आगे चलकर 2003 में गिलानी कुछ मतभेदों की वजह से मूल हुर्रियत कान्फ्रेंस से अलग हो गए थे और उन्होंने अपना नया गुट ऑल पार्टीज हुर्रियत कॉन्फ्रेंस (जी) या तहरीक-ए-हुर्रियत बना लिया था। जबकि अभी भी दूसरे गुट ऑल पार्टीज हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के मुखिया मीरवाइज उमर फारूक हैं। वहीं गिलानी वाले गुट को कट्टरपंथी और मीरवाइज वाले गुट को उदारवादी माना जाता रहा है।
Published: 29 Jun 2020, 7:26 PM IST
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Published: 29 Jun 2020, 7:26 PM IST