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कांग्रेस ने दिल्ली में अपनाया एमपी का विजयी फार्मूला, तीन कार्यकारी अध्यक्षों के साथ शीला दीक्षित को सौंपी कमान

दिल्ली में कांग्रेस की कमान तीन बार मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित संभालेंगी। लोकसभा चुनाव से चंद माह पहले कांग्रेस ने तीन कार्यकारी अध्यक्षों के साथ शीला दीक्षित को दिल्ली की जिम्मेदारी सौंपी है। 

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

कांग्रेस ने इस साल होने वाले लोकसभा चुनावों के दौरान दिल्ली में पार्टी की बागडोर अपनी सबसे अनुभवी नेता शीला दीक्षित को सौंपी है। शीला दीक्षित को दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। नेतृत्व में अनुभवी और युवा का तालमेल बिठाने के लिए कांग्रेस ने तीन कार्यकारी अध्यक्ष भी नियुक्त किए हैं। जिन तीन नेताओं को कार्यकारी अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई है उनमें पूर्व मंत्री और दिल्ली की बल्लीमारान विधानसभा क्षेत्र से चार बार विधायक रहे हारून यूसुफ, बलजीत नगर के पूर्व विधायक राजेश ललोतिया और जहांगीपुरी के पूर्व विधायक देवेंद्र यादव शामिल हैं।

रोचक है कि कांग्रेस ने अनुभव और युवा प्रतिनिधित्व के साथ ही जातीय समीकरणों का भी ध्यान रखा है। शीला दीक्षित ब्राह्मण हैं, तो देवेंद्र यादव ओबीसी, राजेश ललोतिया दलित और हारून यूसुफ मुस्लिम हैं।

शीला दीक्षित दिल्ली की गोल मार्केट निर्वाचन क्षेत्र से तीन बार विधायक रहीं और मुख्यमंत्री पद संभाला। उन्हें दिल्ली का सबसे कामयाब मुख्यमंत्री माना जाता है और दिल्ली की आधुनिक और नई तस्वीर का श्रेय भी उन्हीं को जाता है। 2013 के चुनाव में वे मौजूदा मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से हार गई थीं।

दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने से पहले शीला दीक्षित उत्तर प्रदेश के कन्नौज से सांसद और राजीव गांधी मंत्रिमंडल में मंत्री रहीं। वे प्रधानमंत्री कार्यालय में मंत्री थीं। 1998 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने पूर्वी दिल्ली सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ा था लेकिन बीजेपी के लाल बिहारी तिवारी के हाथों उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। इसी साल उन्होंने गोल मार्केट निर्वाचन क्षेत्र से विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीत हासिल कर दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं।

शीला दीक्षित से पहले बीजेपी की सुषमा स्वराज दिल्ली की मुख्यमंत्री थीं, जिन्हें साहिब सिंह वर्मा को हटाकर दिल्ली का सीएम बनाया गया था। इसके बाद प्याज के बढ़ते दामों के चलते बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा था।

अपने तीन बार के कार्यकाल में शीला दीक्षित दिल्ली के विकास का चेहरा बनीं, लेकिन आम आदमी पार्टी और केजरीवाल के उत्थान के साथ ही दिल्ली पर उनका 15 वर्षों का शासन खत्म हो गया। चुनाव हारने के बाद उन्हें केरल का राज्यपाल नियुक्त किया गया था, लेकिन 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्हें इस पद से हटा दिया गया। इसके बाद उन्हें उत्तर प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था, लेकिन स्वास्थ्य कारणों से उन्होंने इस पद को छोड़ दिया था।

कांग्रेस ने उनके स्वास्थ्य और उम्र को ध्यान में रखते हुए उनकी मदद के लिए तीन कार्यकारी अध्यक्ष भी बनाए हैं। इनमें हारून यूसुफ दिल्ली के जाने माने मुस्लिम नेता हैं। उन्हें पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह का करीबी माना जाता है। वे तिवारी कांग्रेस के दौर में भी शीला दीक्षित के साथ ही रहे। हारून ने खुद को एक बेहद प्रभावी मंत्री के तौर पर स्थापित किया और कई महत्वपूर्ण विभागों का जिम्मा संभाला। दिल्ली कांग्रेस की कमान जब अजय माकन के हाथों में थी तो वे हमेशा उनके साथ भी रहे।

राजेश ललोतिया पार्टी का युवा दलित चेहरा हैं। वे बलजीत नगर सुरक्षित सीट से विधायक रह चुक हैं। उन्हें ऑस्कर फर्नांडीज़ और शीला दीक्षित का नजदीकी माना जाता है। वहीं देवेंद्र सिंह यादव, युवा ओबीसी नेता हैं। अजय माकन के साथ उनके अच्छे रिश्ते रहे हैं और शीला दीक्षित के भी भरोसेमंद लोगों में उनका शुमार होता है।

इस दौरान दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच चल रहे गठबंधन की खबरें भी आती रही हैं। अब गठबंधन को लेकर किसी कवायद की शुरुआत होती है तो शीला की अगुवाई में बात आगे बढ़ सकती है, क्योंकि अजय माकन आम आदमी पार्टी से किसी भी तरह का कोई भी गठबंधन करने के खिलाफ थे।

शीला दीक्षित की नियुक्त का ऐलान करते हुए कांग्रेस के दिल्ली प्रभारी पी सी चाको से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने इसका कोई सीधा उत्तर नहीं दिया। गौरतलब है कि पिछले करीब सप्ताह भर से दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद के लिए योगानंद शास्त्री, डॉ ए के वालिया, अरविंदर सिंह लवली और राजकुमार चौहान के नामों की चर्चा थी। लेकिन अब इन सारी चर्चाओं पर विराम लग गया है।

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