इस वर्ष जुलाई में सरकार ने संसद में यह जानकारी दी कि सीवर और सैप्टिक टैंकों के कार्य में लगे 347 मजदूरों की मौत पिछले 5 वर्षों में हुई है। दूसरी ओर सीवर मजदूरों की भलाई से जुड़े अनेक सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बताया है कि इस तरह की सभी मौतें सरकारी आंकड़ों में प्रायः दर्ज नहीं हो पाती हैं और इनकी वास्तविक संख्या सरकारी आंकड़ों में और अधिक हो सकती है।
5 अक्टूबर को जिस दर्दनाक हादसे में फरीदाबाद में 4 सीवर मजदूरों की मौत हुई, वह इस कारण और भी आश्चर्यजनक था कि यह मौत एक अस्पताल के सीवर की सफाई के समय हुई। अस्पताल में भी किसी ने जरूरी सुरक्षा उपकरण के बिना सीवर सफाई के खतरे से सचेत नहीं किया, न ही तुरंत चिकित्सा उपलब्धि से मजदूरों की जान बचाने में सफलता मिली। इनमें से दो मजदूर तो सगे भाई थे और उनके पिता भी जीवित नहीं हैं। मात्र 450 रुपए की दिहाड़ी के लिए उनसे अपना जीवन बार-बार संकट में डालने को कहा जाता था।
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इस अस्पताल का कहना था कि उसने तो एक अन्य एजेंसी से सीवर सफाई का काम करवाया था। अतः त्रासदी की जिम्मेदारी उसकी नहीं है अपितु एजेंसी की है। दूसरी ओर एजेंसी का कहना था कि इतनी गहराई में कार्य करने के लिए उसका अनुबंध था ही नहीं। अतः पता नहीं क्यों मजदूरों से ऐसा काम करवाया गया। यह स्थिति कई जगह देखी जाती है कि त्रासदी की जिम्मेदारी एक-दूसरे पर डालने के प्रयास किए जाते हैं, पर बड़ा सवाल तो यह है कि इतने खतरनाक कार्य के लिए बिना जरूरी सुरक्षा व्यवस्थाओं और उपकरणों के लिए मजदूरों को क्यों मजबूर किया जाता है।
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इस त्रासदी में एक ऐसा मजदूर मारा गया जो हाल ही में अपने पहले के रोजगार से वंचित हुआ था और इस कारण उसके घर की आर्थिक स्थिति बहुत विकट थी। एक विधवा के दो बेटे मारे गए जिनके घर-परिवार में कोई अन्य आय का स्रोत नहीं है। स्पष्ट है कि बहुत मजबूरी और आर्थिक अभाव की स्थिति के कारण मजदूर बहुत खतरनाक कार्यों में धकेले जा रहे हैं।
इसके कुछ दिन पहले ही रोहतक की एक अन्य सीवर त्रासदी में दो मजदूर मारे गए थे। उस समय प्रकाशित समाचारों के अनुसार इन मजदूरों को यह धमकी दी गई थी कि यदि वे यह खतरनाक कार्य नहीं करेंगे तो इन्हें रोजगार से वंचित कर दिया जाएगा।
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ऐसी स्थितियां बहुत असहनीय हैं। सरकारी स्तर पर तो यही कहा जाता है कि उसके पास एक ऐसी स्कीम है जिसके अंतर्गत इस कार्य को मशीनीकृत किया जा रहा है और सुरक्षा उपकरण भी उपलब्ध करवाए जा रहे हैं। तो फिर सीवर मजदूरों की मौत का यह अंतहीन सिलसिला आज भी क्यों जारी है? स्पष्ट है कि सरकारी स्तर पर जो भी सुरक्षा उपाय हो रहे हैं वे अभी बहुत अपर्याप्त हैं। यह बहुत से मजदूरों के लिए जीवन-मरण का सवाल है तो फिर इन सुरक्षा कार्यों का अपर्याप्त और सुस्त होना सहनीय नहीं है। इन कुछ उपायों को और मुस्तैदी से और अधिक व्यापक स्तर पर अपनाना जरूरी है।
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सबसे उच्च प्राथमिकता तो मौतों को रोकने पर ही देनी चाहिए, पर फिर भी यदि कोई मौत हो जाए तो इसके बाद परिवार को न्यायोचित मुआवजा राशि बिना देरी के मिलनी चाहिए। यह व्यवस्था घोषित तो है, पर फिर भी अनेक मजदूरों के परिवारों को यह सहायता मिलने में बहुत देर होती है या किसी कारण नहीं मिल पाती है।
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सीवर मजदूरों की कार्य परिस्थितियां इस समय ऐसी हैं कि अनेक गंभीर बीमारियों और स्वास्थ्य समस्याओं की संभावना उनके लिए बनी रहती है। इन स्वास्थ्य समस्याओं को भी न्यूनतम करने के हर संभव प्रयास होने चाहिए और साथ में इलाज की समुचित व्यवस्था भी मजदूरों के लिए होनी चाहिए। इस कार्य में अधिक कठिनाईयां है, अतः मजदूरों को बेहतर मजदूरी मिलता भी आवश्यक है।
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