नेशनल सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल यानी राष्ट्रीय संक्रामक रोग नियंत्रण केंद्र एनसीडीसी द्वारा दिल्ली में किए गए सीरो अध्य्यन को विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों और डॉक्टरों ने बकवास करार देते हुए कहा है कि इससे सिर्फ यही साबित होता है कि केंद्र और दिल्ली सरकार देश की राजधानी में कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने में पूरी तरह नाकाम साबित हुई हैं।
एनसीडीसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि केंद्र ने 21.387 लोगों को खून के नमूने लेकर लैब मानकों के आधार पर इनमें एंटीबॉडी की मौजूदगी का पता लगाने का प्रयास किया। इस अध्ययन का मकसद शहर में वायरस के आम संक्रमण का पता लगाना था। लेकिन इन टेस्ट से सिर्फ यही पता लगा कि जिन लोगों के नमूने लिए गए उनमें पहले से सार्स कोव-2 वायरस था या नहीं क्योंकि परीक्षण किसी मेडिकल डायगनोस्टिक के आधार पर नहीं किए गए।
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परीक्षण के नतीजों से सामने आया है कि दिल्ली में औसतन 23.48 फीसदी लोगों में आईजीसी एंटीबॉडी हैं। अध्ययन से यह भी सामने आया कि दिल्ली के अधिकतर लोगों में वायरस के कोई लक्षण नहीं है। इस आधार पर एनसीडीसी ने लॉकडाउन, कंटेंटमेंट जोन और निगरानी के लिए सरकार की पीठ थपथपाई है।
लेकिन विशेषज्ञ इस अध्ययन से सहमत नहीं हैं। पीएमएसएफ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य डॉ विकास वाजपेयी का कहना है कि, “सरकारी प्रयासों की नाकामी कोई आभासी बात नहीं है बल्कि तथ्यों पर आधारित है जो एनसीडीसी के नतीजों से ही सामने आती है। ज्यादातर लोगों में संक्रमण के लक्षण नहीं हैं तो इसकी शाबाशी सरकार को कैसे दी जा सकती है। इसके अलावा जिन लोगों में संक्रमण है उनमें से 15 फीसदी को संक्रमण से गंभीर खतरा है और करीब 5 फीसदी की हालत चिंताजनक है।”
पीएमएसफ का कहना है कि दिल्ली की आबादी 2020 में 3.02 करोड़ है और 23.48 फीसदी लोगों में संक्रमण की मौजूदगी बताती है कि दिल्ली के 71 लाख 12 हजार 327 लोग संक्रमित हैं। यानी हर चार में से एक व्यक्ति दिल्ली में संक्रमण का शिकार है। वहीं गंभीर और चिंताजनक संक्रमितों की संख्या 10 लाख 66 हजार 849 हो सकती है।
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पीएमएसएफ के राष्ट्रीय संयोजक डॉ हरजीत भाटी का कहना है कि, “सरकार सिर्फ कंटेंटमेंट जोन पर ही ध्यान दे रही है जबकि सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं तक आम लोगों की पहुंच सुनिश्चित करने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि,”यह सबको पता है कि कोरोना के लिए चिह्नित सरकारी अस्पताल में बहुत से बिस्तर खाली है और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की सारी नाटकीयता के बावजूद दिल्ली के निजी अस्पतालों में इलाज कराना आम आदमी और मध्य वर्ग की जेब पर भारी पड़ रहा है।”
डॉ भाटी ने याद दिलाया कि दिल्ली की आधे से ज्यादा आबादी झुग्गियों में रहती है और अगर अनधिकृत कॉलोनियों को भी जोड़ लें तो यह आबादी का करीब 75 फीसदी हिस्सा इनमें रहता है। आबादी का यह तबका बेहद खराब परिस्थितियों में रहता है और इन इलाकोंम शारीरिक दूरी यानी फिजिकल डिस्टेंसिंग का पालन करना कठिन है। ऐसे में इस आबादी के संक्रमण का शिकार होने की संभावना बेहद अधिक है।
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