उत्तर प्रदेश में आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच सीटों का बंटवारा हो गया है। अखिलेश यादव और मायावती के बीच हुए समझौते के अनुसार बीएसपी राज्य की 38 सीट और एसपी 37 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। माना जा रहा है कि बाकी 5 सीटों में से तीन सीट अजीत सिंह की पार्टी आरएलडी के लिए छोड़ी गई है, जबकि दोनों नेताओं ने पहले ही अमेठी और रायबरेली की सीट कांग्रेस के लिए छोड़ने का ऐलान कर दिया है। हालांकि आज दोनों दलों के अध्यक्षों के हस्ताक्षर से जारी हुई लिस्ट में आरएलडी और कांग्रेस का जिक्र नहीं है।
गुरुवार को जारी लिस्ट में कौन सी सीट से कौन चुनाव लड़ेगा ये भी साफ कर दिया गया है। समझौते के तहत दोनों पार्टियों को हर मंडल में सीटें मिली हैं। हालांकि पश्चिम यूपी की ज्यादातर सीटें बीएसपी के काते में गई हैं, जबकि मैनपुरी, कन्नौज के आसपास के इलाके की अधिकतर सीटें एसपी को मिली हैं। आरक्षित सीटों की बात करें तो राज्य की 80 लोकसभा सीटों में अनुसूचित जाति के लिए 17 सीटें सुरक्षित हैं, जिनमें से 7 पर एसपी और 10 पर बीएसपी चुनाव लड़ेगी।
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लिस्ट में दोनों पार्टियों ने बागपत, मथुरा और मुजफ्फरनगर की सीट छोड़ दी है। माना जा रहा है कि ये तीनों सीटों पर आरएलडी चुनाव लड़ेगी। हालांकि यह अभी आधिकारिक रुप से स्पष्ट नहीं है। बताया जा रहा है कि इससे पहले गठबंधन के ऐलान के समय एसपी और बीएसपी ने राज्य की 80 सीटों में से 38-38 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया था, लेकिन अब अखिलेश यादव ने अपने कोटे से एक सीट आरएलडी को देने का फैसला लिया है। जबकि रायबरेली और अमेठी की दो सीटों पर कांग्रेस के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारने का फैसला दोनों नेताओं ने पहले ही किया था।
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हालांकि एसपी के बीएसपी से कम सीटों पर चुनाव लड़ने को लेकर एसपी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने इस गठबंधन पर ही सवाल उठा दिए हैं। गुरुवार को पार्टी मुख्यालय पहुंचे मुलायम सिंह यादव ने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए सीट समझौते पर सवाल उठाया कि आखिर किस आधार पर 38-37 सीटें बांटी गई हैं। साथ ही उन्होंने यहां तक कह दिया कि पार्टी के अंदर ही कुछ लोग हैं जो पार्टी को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
ऐसे में आने वाले दिनों में मुलायम सिंह की नाराजगी क्या रंग लाएगी ये कहना तो मुश्किल है। लेकिन इतना तो तय है कि उनके लगातार बयानों से ऐसा प्रतीत हो रही है कि वह एसपी-बीएसपी के गठबंधन से खुश नहीं हैं। ऐसे में आने वाले चुनाव तक उत्तर प्रदेश की राजनीति में कुछ भी संभव है।
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