पेरिस के बाहर वर्साय में 50 से ज्यादा देशों के प्रतिनिधियों ने किलोग्राम की नई परिभाषा तय करने पर मुहर लगा दी है। 20 मई से नई परिभाषा लागू हो जाएगी। किलोग्राम को एक बेहद छोटे मगर अचल भार के जरिए परिभाषित किया जाएगा। इसके लिए ‘प्लैंक कॉन्स्टेंट’ का इस्तेमाल किया जाएगा। नई परिभाषा के लिए वजन मापने का काम किब्बल नाम का एक तराजू करेगा। अब इसका आधार प्लेटिनम इरीडियम का सिलिंडर नहीं होगा। इसकी जगह यह ‘प्लैंक कॉन्स्टेंट’ के आधार पर तय किया जाएगा। क्वांटम फिजिक्स में ‘प्लैंक कॉन्स्टेंट’ को ऊर्जा और फोटॉन जैसे कणों की आवृत्ति के बीच संबंध से तैयार किया जाता है।
उदाहरण के लिए एक मीटर का मतलब सौ सेंटीमीटर नहीं होता, बल्कि वास्तव में यह “वो लंबाई है जो निर्वात में प्रकाश की किरण एक सेकेंड के 1/299,792,548 समय में तय करती है।” अब इसी तरह किलोग्राम का भी वजन एक सर्वमान्य तरीके से तय किया जाएगा, जो कोई भी गणना कर हासिल कर सकता है। किलोग्राम की नई परिभाषा तैयार हो जाने के बाद देशों के लिए वजन की सही माप जानने के लिए उन्हें पेरिस भेजने की जरूरत नहीं रहेगी।
माना जा रहा था कि किसी ऐसी चीज की जरूरत है जो ज्यादा स्थाई हो। पेरिस के करीब वर्साय के महल में करीब हफ्ते भर चली बैठक के बाद शुक्रवार को वोटिंग से इस बारे में फैसला लिया गया। इंटरनेशनल ब्यूरो ऑफ वेट्स एंड मेजर्स की बैठक में मापतौल में गहरी दिलचस्पी रखने वाले दुनिया के प्रमुख लोग शामिल हुए। इन लोगों ने ‘इलेक्ट्रॉनिक किलोग्राम’ के नाम से भार का नया आधार तैयार किया है।
1967 में समय की ईकाई सेकेंड को फिर से परिभाषित किया गया था, ताकि दुनिया में संचार को जीपीएस और इंटरनेट जैसी तकनीकों के लिए आसान बनाया जा सके। विशेषज्ञों का मानना है कि किलोग्राम में बदलाव भी तकनीक के लिए अच्छा होगा। खासतौर से स्वास्थ्य और खुदरा कारोबार के लिए। हालांकि इससे चीजों की कीमतें बहुत नहीं बदलेंगी।
किलोग्राम को 1889 में प्लैटिनेम इरीडियम के चमकीले टुकड़े की मदद से परिभाषित किया गया था। माइक्रोग्राम में दवाइयों से लेकर किलोग्राम में सेब, नाशपाती हो या फिर टनों में सीमेंट और स्टील, वजन मापने की हर आधुनिक ईकाई इसी पर आधारित है।
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पुराने सिस्टम में किलोग्राम का वजन गोल्फ की गेंद के आकार की प्लेटिनिम इरिडियम की गेंद के सटीक वजन के बारबर होता है। यह गेंद कांच के जार में पेरिस के पास वर्साय की ऑर्नेट बिल्डिंग की सेफ में रखी हुई है। इस सेफ तक पहुंचने के लिए उन तीन लोगों की जरूरत होती है, जिनके पास तीन अलग अलग चाभियां हैं। ये तीनों लोग तीन अलग अलग देशों में रहते हैं। इन चाभियों की मदद से ही इस सेफ को खोला जा सकता है। इसकी निगरानी इंटरनेशनल ब्यूरो ऑफ वेट्स एंड मेजर्स करती है।
तमाम सुरक्षा उपायों के बाद भी बीते 129 सालों में माना जाता है कि इसके वजन में कुछ बदलावा हुआ है। समस्या यह है कि ‘किलोग्राम का अंतरराष्ट्रीय मूलरूप’ हमेशा एक समान वजन नहीं बताता। यहां तक कि कांच की तीन जारों में रखा प्रतिरूप धूल में सना और गंदा होता है और इस पर मौसम का भी असर होता है। कभी-कभी तो इसे सचमुच धुलने की जरूरत होती है। ब्रिटेन के नेशनल फीजिकल लैबोरेट्री से जुड़े इयान रॉबिन्सन का कहना है, “हम आधुनिक दुनिया में रहते हैं। वातावरण में प्रदूषण फैलाने वाले कण हैं जो इसके वजन से चिपक सकते हैं। इसलिए जब आप इसे तहखाने से बाहर निकालते हैं, तो यह थोड़ा गंदा होता है। इसे साफ करने, संभालने और इसके भार का इस्तेमाल करने में इसका भार बदल सकता है। तो शायद यह भार को परिभाषित करने का सबसे अच्छा तरीका नहीं है।”
पेरिस में लंबाई के नाप के लिए भी प्लैटिनम इरिडियम की एक छड़ रखी हुई है। हालांकि निर्वात में नियत वेग से रोशनी गुजार कर अब मीटर को परिभाषित किया गया है।
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