भारत बायोटेक की कोरोना वैक्सीन कोवैक्सीन को मंजूरी देने के लिए एक्सपर्ट कमेटी ने सिर्फ दो दिन में अपना मन बदल लिया, वहीं सीरम इंस्टीट्यूट की वैक्सीन कोविशील्ड को भी इस शर्त के साथ मंजूरी दी गई थी कि वह वैक्सीन की सुरक्षा, क्षमता और रोग प्रतिरोधक क्षमता के आंकड़े जमा करेगी। यह खुलासा सेंट्रल ड्रग कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन की बैठक के मिनट्स यानी बैठक में हुए विचार विमर्श की जानकारी जारी होने के बाद हुआ है। कोवि शील्ड ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी और फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका का भारतीय रूप है।
भारतीय ड्रग कंट्रोलर ने दोनों कोरोना वैक्सीन को 3 जनवरी को मंजूरी दी थी। भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल वी जी सोमानी ने कहा था कि हालांकि कोवैक्सीन अभी भी वैक्सीन के परीक्षण के लिए वॉलंटियर को नियुक्त कर रही है, फिर भी कोरोना के नए वैरिएंट सार्स कोव-2 का संक्रमण रोकने के लिए इसकी जरूरत है। सार्स कोव-2 सबसे पहले ब्रिटेन में पाया गया है।
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एक्सपर्ट कमेटी की 30 दिसंबर को हुई मीटिंग के मंगलवार को जारी मिनट्स से पता चलता है कि कमेटी के सदस्यों ने भारत बायोटैक को रोग प्रतिरोधक क्षमता, सुरक्षा और क्षमता जैसे आंकड़े पेश करने को कहा था। पहली जनवरी को कमेटी ने पाया कि इन आंकड़ों को क्लीनिकल ट्रायल के जरिए पेश नहीं किया गया, इसलिए कमेटी ने भारत बायोटेक को फेज-3 के क्लीनिकल ट्रायल के लिए वॉलंटियर्स की भर्ती में तेजी लाने को कहा था। कमेटी ने यह भी कहा कि भारत बायोटेक सिर्फ अंतरिम क्षमता विश्लेषण कर सकती है, जिसे बाद में सीमित इस्तेमाल के लिए विचार के लिए पेश किया जा सकता है।
2 जनवरी को कंपनी ने नए आंकड़े पेश किए, लेकिन यह साफ नहीं है कि आखिर इस अपडेटेड डाटा में क्या था। कंपनी ने सिर्फ गैर-मानव अध्य्यन के क्षमता आधारित आंकड़े ही सामने रखे थे। बैठक के दौरान भारत बायोटेक ने आंकड़ों पर तर्क दिया कि यह सही हैं और कोरोना वायरस के नए वेरिएंट के लिए इसके प्रस्ताव को मंजूरी देने का आग्रह किया।
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इसी आधार पर एक्सपर्ट कमेटी ने जनहित में इस वैक्सीन के सीमित और इमरजेंसी में इस्तेमाल की मंजूरी देने की सिफारिश की। कमेटी ने यह भी कहा कि इस वैक्सीन को सिर्फ ट्रायल मोड में ही इस्तेमाल किया जाए, खासतौर से वायरस के नए स्ट्रेन के सामने आने के बाद एक से अधिक वैक्सीन का विकल्प होना जरूरी है।
यह साफ नहीं है कि इन तीन दिनों में आखिर ऐसा क्या हुआ जो स्थानीय स्तर पर विकसित इस वैक्सीन को मंजूरी दे दी गई। यह भी साफ नहीं है कि क्या इसके लिए एक्सपर्ट कमेटी पर किसी किस्म का राजनीतिक दबाव था। ध्यान रहे कि सीरम इंस्टीट्यूट की वैक्सीन को मंजूरी मिलने के बाद सोशल मीडिया पर बाकायदा अभियान सा छेड़ दिया गया था कि आखिर देसी वैक्सीन को मंजूरी क्यों नहीं दी गई, जबकि अंग्रेजी वैक्सीन को मंजूरी दे दी गई।
ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क के चीनू श्रीनिवासन कहते हैं, “अगर आप 30 दिसंबर और 1, 2 जनवरी की बैठक के मिनट्स को गौर से देखें तो साफ हो जाएगा कि इसमें जल्दबादी की गई है। पहले दो दिन कमेटी भारत बायोटेक से रोग प्रतिरोध और क्षमता के आंकड़े मांग रही है, लेकिन 2 जनवरी को बिना किसी हील-हुज्जत के इस वैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल को मंजूरी दे दी जाती है। इसमें आंकड़ों का कोई जिक्र नहीं है। मिनट्स से यह भी साफ नहीं है कि आखिर ऐसा क्या हुआ जो कमेटी ने इस वैक्सीन को मंजूरी देने के लिए सिर्फ दो दिन में अपना मन बदल लिया।”
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जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ अनंत फाडके भी इस बात से सहमत हैं। वे कहते हैं, “30 दिसंबर को कमेटी का नजरिया कुछ और है और दो दिन बाद यह एकदम बदल जाता है। सवाल है कि आखिर 30 दिसबंर को ही मंजूरी क्यों नहीं दे दी गई।” उनका कहना है कि ऐसे में वैक्सीन पर भरोसा डगमगाता है। उन्होंने कहा कि, “यह भी साफ नहीं है कि आखिर क्लीनिकल ट्रायल मोड का मतलब क्या है। क्या इसका अर्थ है कि अगर यह वैक्सीन लेने वालों को कोई नुकसान होता है तो उन्हें मुआवजा दिया जाएगा। क्लीनिकल ट्रायल मोड में यह नियम है कि किसी भी प्रतिभागी को अगर कोई नुकसान होता है तो उसे मुआवजा दिया जाता है। लेकिन इस विषय में कमेटी खामोश है।”
श्रीनिवासन भी सवाल उठाते हुए कहते हैं, “अमेरिका में फाइज़र को इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी मिली, वह भी पर्याप्त आंकड़े जमा करने के बाद। तो फिर हमारे यहां क्षमता आंकड़ों का इंतजार क्यों नहीं किया गया?”
सीरम इंस्टीट्यूट ने 30 दिसंबर को रोग प्रतिरोधक और क्षमता के आंकड़े सामने रखे थे। इसमें एस्ट्राजेनेका द्वारा यूके, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका में फेज-2 और 3 के क्लीनिकल ट्राय के आंकड़े थे। साथ ही कोविशील्ड के जारी क्लीनिकल ट्रायल के आंकड़े भी पेश किए गए थे। सीरम इंस्टीट्यूट ने कमेटी को बताया कि एस्ट्राजेनेका को शर्तों के साथ वैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल की अनुमति मिली है।
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पहली जनवरी को एक्सपर्ट कमेटी ने पाया कि सुरक्षा और रोगप्रतिरोधी क्षमता के भारतीय अध्ययन के आंकड़े विदेशों में हुए आंकड़ों से मेल खाते हैं। ऐसे में कमेटी ने वायरस महामारी की गंभीरता को देखते ए वैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल को शर्तों के साथ मंजूरी दे दी। साथ ही कहा कि यह वैक्सीन सिर्फ 18 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को ही दी जाए साथ ही फिलहाल चल रहे क्लीनिकल ट्रायल के आंकड़े भी सीरम इंस्टीट्यूट को पेश करने को कहा। इसके अलावा सीरम इंस्टीट्यूट को भारत में इस वैक्सीन के रिस्क मैनेजमेंट की योजना भी पेश करने के लिए कहा गया।
श्रीनिवासन बताते हैं कि, “हमें भरोसेमंद सूंत्रों से पता चला है कि सीरम इंस्टीट्यूट ने सिर्फ 100 लोगों पर हुए ट्रायल के आंकड़े पेश किए थे न कि सभी 1600 लोगों के। सरकार के इस पर स्पष्टीकरण देना चाहिए कि और साथ ही आंकड़े भी जारी करने चाहिए कि उसने किस डेटा पर भरोसा किया है। क्या उन्होंने यूके के मेडिसिन एंड हेल्थकेयर प्रोडक्ट्स रेगुलेटरी एजेंसी (एमएचआरए) के डाटा पर भरोसा किया है? यह भी साफ नहीं है कि सीरम इंस्टीट्यूट ने रोगप्रतिरोघ का स्वतंत्र अध्ययन क्यों नहीं पेश किया ताकि सीरम की वैक्सीन और ऑक्सफर्ज की वैक्सीन के नतीजों की तुलना की जा सके।”
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डॉ फाडके भी पूछते हैं कि क्या भारत में कोई गंभीर इमरजेंसी की स्थिति थी जो वैक्सीन के इस्तेमाल की मंजूरी दे दी गई जबकि हाल के दिनों में कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या में तेजी से कमी आई है। उन्होंने कहा कि जब इतनी जल्दबाजी में वैक्सीन को मंजूरी दी जाती है तो सीधा अर्थ है कि मानकों से समझौता किया गया है।
डा फडके ने कहा, “भारत में कोरोना संक्रमण की दर कम हुई है। नया वायरस संक्रमण फैलाने में तेज तो है लेकिन जानलेवा नहीं है। ज्यादा से ज्यादा यह होगा कि इससे संक्रमण तेजी से फैलेगा। भारत में वैसे भी तेज संक्रमण की संभावना पहले ही पूरी हो चुकी है। ऐसे में इन सारी बातों के मद्देनजर वैक्सीन को मंजूरी देने की प्रक्रिया भरोसा नहीं जताती है।”
क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज वेलुर के माइक्रोबायोलॉजिस्ट डॉ गगनदीप कांग महामारी से निपटने के संयुक्त परिषद के सदस्य हैं। वे कहते हैं कि वैक्सीन निर्माताओं को कम से कम 50 फीसदी क्षमता के आंकड़े तीसरे चरण के ट्रायल के लिए पेश करने के बाद ही मंजूरी मिलनी चाहिए थी। उन्होंने कहा कि, “इस मामले में मंजूरी देते हुए बोर्ड ने अपने ही दिशानिर्देशों की अनदेखी की है।”
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