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युवा मन में सेंधः मोदी सरकार में लगातार घटती जा रही अल्पसंख्यक छात्रों की स्कॉलरशिप

पोस्ट मैट्रिक व मेरिट कम मीन्स स्कॉलरशिप योजना के तहत एससी-एसटी छात्रों को कोर्स की पूरी फीस स्कॉलरशिप में मिल जाती है। ओबीसी छात्रों को भी कोर्स फीस का 50 फीसदी मिल जाता है, लेकिन अल्पसंख्यक छात्रों को अधिकतम 20 हजार रुपये ही बतौर स्कॉलरशिप दिए जाते हैं।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

ईद से ठीक एक दिन पहले केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने घोषणा की कि अल्पसंख्यक समाज के सामाजिक-आर्थिक सशक्तीकरण के लिए अगले पांच सालों में प्री-मैट्रिक, पोस्ट मैट्रिक और मेरिट-कम-मीन्स योजनाओं के अंतर्गत पांच करोड़ छात्रों को स्कॉलरशिप दी जाएगी। मीडिया ने नकवी के इस बयान या घोषणा को ‘मोदी की ईदी’ बनाकर पेश किया। वहीं सोशल मीडिया पर एक नई बहस छिड़ती दिखी किआखिर मोदी मुसलमानों पर इतने मेहरबान क्यों हैं!

जबकि जमीनी हकीकत यह है कि वित्तीय साल 2018-19 भी खत्म हो चुका है, लेकिन हजारों छात्रों को साल 2017-18 की स्कॉलरशिप भी नहीं मिली है। दिल्ली के अल-फलाह यूनिवर्सिटी में बीएड की पढ़ाई कर रहे छात्र शारिक नदीम बताते हैं कि उन्होंने 2017 के सितंबर महीने में स्कॉलरशिप के लिए आवेदन किया था, लेकिन आज तक उन्हें स्कॉलरशिप नहीं मिला। अब उनका बीएड भी पूरा हो चुका है। उनके मुताबिक यह अकेले उनकी कहानी नहीं। उनके कॉलेज के सैकड़ों छात्रों के साथ ऐसा ही हुआ है।

महाराष्ट्र में स्कॉलरशिप के मुद्दे पर काम कर रहे डॉ. बशीर बताते हैं कि अल्पसंख्यकों की स्कॉलरशिप को लेकर सरकार की नीयत कभी भी साफ नहीं रही। अगर पोस्ट मैट्रिक और मेरिट कम मीन्स स्कॉलरशिप योजना की बात करें, तो एससी और एसटी छात्रों को उनके कोर्स की पूरी रकम स्कॉलरशिप में मिल जाती है। वहीं, ओबीसी कैटेगरी के छात्र भी कोर्स की कुल फीस का 50 फीसदी हासिल कर लेते हैं, लेकिनअल्पसंख्यकों को अधिकतम 20 हजार रुपये ही बतौर स्कॉलरशिप दिए जाते हैं। सवाल यह है कि जिन कोर्सों की फीस लाखों में है, वहां कोई अधिकतम 20 हजार पाकर क्या करेगा?

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नकवी का बयान गुमराह करने वाला

कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री के. रहमान खान ने नकवी के इस बयान को अल्पसंख्यकों को गुमराह करने वाला बताया है। नवजीवन से खास बातचीत में के. रहमान खान बताते हैं कि यह सरकार एक साल में 1 करोड़ छात्रों को स्कॉलरशिप के लक्ष्य को ऐसे पेश कर रही है, जैसे यह पहली बार हो रहा है। सच्चाई यह है कि ये लक्ष्य कांग्रेस के समय से ही है। रहमान कहते हैं कि जब वह अल्पसंख्यक कार्यमंत्री थे, उन्होंने 87 फीसदी लक्ष्य पूरा किया था। साल 2013-14 में 86 लाख 85 हजार 377 बच्चों को स्कॉलरशिप दी गई थी। (यह संख्या सिर्फ प्री और पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप की है)

रहमान खान के मुताबिक सच्चाई यह है कि 2014 में जब मोदी सरकार आई, तो उसने अल्पसंख्यक छात्रों को घटाना शुरू कर दिया। इस सरकार में साल 2015-16 में 52.45 लाख, साल 2016-17 में 47.78 लाख और साल 2017-18 में 54.95 लाख छात्रों को स्कॉलरशिप बांटी गई। (ये संख्या सिर्फ प्री और पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप की है)

अगर तीनों स्कॉलरशिप को एक साथ मिलाकर देखा जाए तो सरकारी आंकड़ें बताते हैं कि साल 2015-16 में 59,79,201, साल 2016-17 में 49,00,372 लाख और साल 2017-18 में 56,11,993 छात्रों को स्कॉलरशिप दी गई। यह जानकारी खुद अल्पसंख्यक कार्यमंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने जनवरी 2019 में लोकसभा में एक लिखित जवाब में दी।

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लक्ष्य बढ़ा, लेकिन प्रस्तावित बजट घटा

जहां एक तरफ मीडिया में यह बयानबाजी की जा रही थी कि सरकार अल्पसंख्यकों को शिक्षित कर उनका विश्वास जीतना चाहती है, फरवरी, 2019 में अरुण जेटली के बीमार होने की वजह से जो ‘चुनावी बजट’ पीयूष गोयल ने पेश किया और अब जब जुलाई में निर्मला सीतारामन ने जो बजट पेश किया है, उसमें अल्पसंख्यक बच्चों को मिलने वाली स्कॉलरशिप का प्रस्तावित बजट भी कम कर दिया गया है।

घोटाले की भी आती रही हैं खबरें

कहानी यहीं खत्म नहीं होती। पिछले पांच सालों में अनेक ऐसी खबरें मीडिया में आई हैं, जिनमें स्कॉलरशिप के नाम पर घोटाले उजागर हो रहे हैं। कुछ दिन पहले ही हिमाचल प्रदेश से 250 करोड़ रुपये के घोटाले की खबर आई। इस मामले में सीबीआई के सूत्रों ने खुलासा किया है कि स्कॉलरशिप फंड में घोटाले के तार हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और पंजाब तक फैले हुए हैं।

बता दें कि सीबीआई की शुरुआती जांच से सरकारी अधिकारियों, निजी संस्थानों और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बीच स्कॉलरशिप का फंड खा जाने के मामले में गहरे गठजोड़ का पता चला है। इसी तरह की शिकायत उत्तराखंड और देश के अन्य भागों से मिली है। उत्तर प्रदेश में भी अल्पसंख्यक विभाग से संबंधित घोटाले में गरीब मुस्लिम छात्रों की स्कॉलरशिप यहां के भ्रष्ट अधिकारी धोखाधड़ी कर डकार चुके हैं।

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साल 2018 में उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में अल्पसंख्यक स्कॉलरशिप के नाम पर करोड़ों का घपला सामने आया था। पुलिस ने इस मामले में तीन लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर रखा है। पुलिस ने अपनी शुरुआती जांच में पाया कि साल 2015-16 में यहां के तत्कालीन सीडीओ और जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी के फर्जी हस्ताक्षर कर करोड़ों रुपये की छात्रवृत्ति को स्टेट बैंक और अन्य बैंक शाखाओं से निकाल कर बंदरबांट कर लिया गया था। घोटालों की यह कहानी सिर्फ मुरादाबाद तक ही सीमित नहीं, बल्कि यूपी के अधिकतर जिलों से लगातार घोटालों की खबरें आती रही हैं।

पटना के सामाजिक कार्यकर्ता सफदर अली बताते हैं कि साल 2014-15 से कई राज्यों के निजी स्कूल में पढ़ रहे छात्रों की प्री-मैट्रिक स्कॉलरशिप की राशि 5,700 से घटाकर 1,000 रुपये कर दी गई है। उन राज्यों के शिक्षा विभाग का कहना है कि केंद्र सरकार ने जो बजट जारी किया है, उसी हिसाब से स्कॉलरशिप बांटी जा रही है। जबकि योजना में सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले पहली से दसवीं तक के छात्रों को एक हजार रुपये और निजी स्कूलों के छात्रों को 5,700 रुपये स्कॉलरशिप देने का प्रावधान है।

मोदी रहे हैं इस स्कॉलरशिप के खिलाफ

के. रहमान खान बताते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी हमेशा इस स्कॉलरशिप के विरोधी रहे हैं। मोदी जब गुजरात के सीएम थे, उन्होंने इसका विरोध किया था। तब यह मामला अदालत में गया, लेकिन हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी इसका विरोध किया। जब मामला सुप्रीम कोर्ट में गया और वहां से फटकार लगी तब उन्होंने अपने शासन के अंतिम सालों में अदालत के आदेश को मानते हुए मजबूरन स्कीम को अपने राज्य में लागू किया था। यही नहीं, खुद उनकी पार्टी जब विपक्ष में थी तो इनके तमाम नेता इस स्कॉलरशिप स्कीम को तुष्टीकरण करार देते थे।

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