आधार कार्ड की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट बुधवार को फैसला सुनाएगा। सुप्रीम कोर्ट में आधार मामले की सुनवाई के दौरान ये सवाल उठा था कि राइट टु प्रीवेसी यानी निजता का अधिकार, मौलिक अधिकार है या नहीं? तब मामले को 9 जजों की संवैधानिक बेंच को भेजा गया था। इससे यह तय होना था कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है। इसके बाद जहां तक आधार मामले का सवाल है कि क्या आधार के लिए लिया जाने वाला डाटा निजता का उल्लंघन है या नहीं ,इस मामले की सुप्रीम कोर्ट अपना ऐतिहासिक फैसला देगी। पांच जजों की संवैधानिक बेंच अब इस मामले में फैसला देगी।
आधार एक्ट को चुनौती देते हुए वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रह्मण्यम ने दलील दी थी कि आधार स्कीम के तहत देश के लोगों को सरकार की दया पर छोड़ दिया गया है। जहां तक डाटा लीक का सवाल है तो ये एक्ट में अपराध जरूर माना गया है, लेकिन ऐसी स्थिति में आधार जारी करने वाली संस्था यानी यूआईडीएआई सिर्फ शिकायत कर सकती है। उन्होंने कहा कि यूआईडीएआई के फैसले से अगर कोई नागरिक प्रभावित है तो वह कहां जाए?
केंद्र सरकार की तरफ से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि आधार कार्ड देश भर में लोगों ने बनवाएं हैं। अभी देश में 96 फीसदी लोगों के पास आधार है। जिनके पास नहीं है वह भी कोशिश में हैं कि आधार बनवाए जाएं। आधार योजना से लोगों को फायदा हो रहा है और ये सुरक्षित योजना है। अगर किसी के पास आधार नहीं है तो भी उसे सरकार की हर योजना का लाभ मिलेगा और सिर्फ आधार न होने पर उसे वंचित नहीं किया जाएगा।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि सरकार कई बार दावा कर चुकी है कि आधार के लिए लिए हासिल किए जाने वाले व्यक्तिगत डेटा को गोपनीय रखा जाएगा, लेकिन हाल में देखने को मिला कि एक क्रिकेटर का डाटा लीक हो गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आधार कानून 2016 में अमल में आया, लेकिन बायोमेट्रिक डाटा काफी पहले लिया गया। बिना आधार के ये डाटा कैसे लिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के सामने सवाल उठाते हुए कहा कि कानून लागू होने से पहले लिए गए डाटा को अवैध ठहराया जा सकता है? इसके लिए 2009 से ही बायोमेट्रिक डाटा लिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी करते हुए कहा था कि सरकार वित्तीय जानकारी और लेनदेन के बारे में जान सकती है। आईटी रिटर्न आदि के बारे में विस्तार से जानकारी मांग सकती है, लेकिन मैं अगर अपनी पत्नी के साथ किसी रेस्त्रां में जाता हूं और खाना खाता हूं तो उस बारे में कोई कैसे जानकारी ले सकता है। ऐसे मामले में दखल नहीं हो सकता। सरकार आधार के लिए जो जानकारी ले चुकी है उस डाटा का इस्तेमाल अपने लिए सरकार कर सकती है, लेकिन व्यक्तिगत जानकारी का इस्तेमाल अन्य उद्देश्य के लिए नहीं हो सकता।
दरअसल मौजूदा चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के रिटायरमेंट से पहले 4 कार्यदिवस बचे हैं। इस दौरान आधार, अयोध्या, अडल्टरी, सबरीमाला, एससी/एसटी को प्रोमोशन में आरक्षण, कोर्ट कार्यवाही की रिकॉर्डिंग, भीड़ द्वारा संपत्ति के नुकसान पहुंचाने के मामले और एक्टिविस्टों के खिलाफ केस रद्द करने और एसआईटी जांच की गुहार पर फैसला देना है। यानी चार कार्यदिवस में 9 अहम फैसले आने वाले हैं।
एक और अहम फैसला जो बुधवार को आ सकता है वह है कि कोर्ट की कार्यवाही की रिकॉर्डिंग और सीधा प्रसारण होना चाहिए या नहीं। याचिका में कहा गया था कि पारदर्शिता के लिए जरूरी है कि कोर्ट की कार्यवाही का भी सीधा प्रसारण हो। दलील थी कि अगर संसद की कार्यवाही दिखाई जा सकती है तो कोर्ट की क्यों नहीं।
प्रोमोशन में आरक्षण मामले में 2006 के नागराज मामले में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच के फैसले को सात जजों के संवैधानिक बेंच को रेफर किया जाए या नहीं इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित किया था। इस पर फैसला बुधवार को होगा। 2006 में नागराज से संबंधित वाद में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने कहा था कि सरकार एससी/एसटी को प्रमोशन में आरक्षण दे सकती है, लेकिन शर्त लगाई थी कि प्रमोशन में आरक्षण से पहले यह देखना होगा कि अपर्याप्त प्रतिनिधित्व है या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली संवैधानिक बेंच तय करेगी कि केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 साल की उम्र की महिलाओं को प्रवेश दिया जाए या नहीं। फिलहास इस मंदिर में इनके प्रवेश पर पाबंदी है जिसे चुनौती दी गई थी।
अयोध्या की जमीन किसकी है, इस पर अभी सुनवाई की जानी है। दरअसल, मुस्लिम पक्षकारों की ओर से दलील दी गई है कि 1994 में इस्माइल फारुकी केस में सुप्रीम कोर्ट ने अपने जजमेंट में कहा है कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है और ऐसे में इस फैसले को दोबारा परीक्षण की जरूरत है और इसी कारण पहले मामले को संवैधानिक बेंच को भेजा जाना चाहिए।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने कहा है कि मामले में कोर्ट इस पहलू पर फैसला लेगा कि क्या 1994 के सुप्रीम कोर्ट से संवैधानिक बेंच के फैसले को दोबारा देखने के लिए मामले को संवैधानिक बेंच भेजा जाए या नहीं। फैसला सुरक्षित है।
आईपीसी की धारा-497 (अडल्टरी) यानी के प्रावधान के तहत पुरुषों को अपराधी माना जाता है जबकि महिला को पीड़ित यानी विक्टिम माना गया है। याचिका में कहा गया है कि आईपीसी की धारा-497 के तहत जो कानूनी प्रावधान है वह पुरुषों के साथ भेदभाव वाला है। अगर कोई शादीशुदा पुरुष किसी और शादीशुदा महिला के साथ उसकी सहमति से संबंधित बनाता है तो ऐसे संबंध बनाने वाले पुरुष के खिलाफ उक्त महिला का पति अडल्टरी का केस दर्ज करा सकता है, लेकिन संबंध बनाने वाली महिला के खिलाफ मामला दर्ज करने का प्रावधान नहीं है जो भेदभाव वाला है। इस प्रावधान को गैर संवैधानिक घोषित किया जाए।
Published: undefined
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली बेंच इस मामले में भी गाइ़डलाइंस जारी करेगी कि भीड़ के हाथों संपत्ति को होने वाले नुकसान की जवाबदेही किसकी है। इस मामले में पुलिस और उत्पात मचाने वालों की जवाबदेही तय होगी।
चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली बेंच सामाजिक कार्यकर्ताओँ की गिरफ्तारी के खिलाफ दाखिल याचिका पर भी फैसला देगी। याचिका में एफआईआर पर सवाल उठाया गया है और इस मामले में एसआईटी जांच की मांग की गई है।
Published: undefined
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: undefined