पंजाब के संगरूर लोकसभा उपचुनाव में आम आदमी पार्टी की हार महज एक हार नहीं है। यह महज चार महीने पहले चली एक सुनामी में रिकार्ड विधानसभा सीटें जीत कर राज्य की सत्ता का शिखर छूने वाली पार्टी के अर्श से फर्श पर पहुंचने की कहानी भी है। यह पंजाब की पीठ पर सवार होकर देश में आनन-फानन छा जाने का सपना देख रही एक पार्टी का हवाई किला ध्वस्त होने की भी कहानी है। यह तीन महीने में ही पंजाब को बदल देने के दावों को झूठा करार देने का जनता का तरीका भी है। यह पंजाब को रिमोट कंट्रोल से चलाने की कोशिश को मतदाताओं की ओर से नकार देना भी है।
पंजाब के एक राजनीतिक विश्लेषक के शब्दों में ‘पंजाबी जब किसी को कुछ देते हैं तो कई बार कलेजा भी निकाल कर दे देते हैं और सामने वाला यदि उसका कद्रदान न हो तो वापस लेने में भी देर नहीं करते’। आम आदमी पार्टी और केजरीवाल के साथ संगरूर उपचुनाव में भी यही हुआ है। पंजाब में भगवंत मान सरकार के महज तीन महीने में ही पार्टी के इस हश्र की किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। राज्य की 117 में से 92 सीटें जीतने वाली पार्टी के लिए इस हार की गूंज बहुत दूर तक जाने वाली है।
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इसके संकेत तो संगरूर में 23 जून को हुए महज 45.50 प्रतिशत मतदान के बाद ही मिल गए थे। संगरूर सीट के इतिहास में 31 साल बाद यह सबसे कम वोटिंग थी। इससे पहले आतंकवाद के दौर में 1991 में यहां 10.9 प्रतिशत मतदान हुआ था। यह किसी पार्टी के किले का ढहना भर नहीं है। संगरूर खुद मुख्यमंत्री भगवंत मान का गढ़ है। 2014 और 2019 में भगवंत मान यहीं से सांसद बने थे। दोनों बार यहां 70 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ था। चार महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव में संगरूर के तहत ही आने वाली भगवंत मान की धूरी सीट पर 77.32 प्रतिशत मतदान हुआ था, जो लोस उपचुनाव में घटकर सिर्फ 48.26 प्रतिशत रह गया।
2019 के लोकसभी चुनाव में कथित मोदी लहर में भी मान यहां से जीत कर सासंद बने थे। आम आदमी पार्टी के लोकसभा में वह एकलौते सांसद थे। भगवंत मान के इस्तीफा देने के बाद ही यह सीट खाली हुई थी। संगरूर लोकसभा सीट के तहत 9 विधानसभा सीटें आती हैं। इन सभी सीटों पर करीब चार महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव में आप ने क्लीन स्वीप कर जीत हासिल की थी। संगरूर लोकसभा क्षेत्र के तहत ही भगवंत मान का धुरी विधानसभा क्षेत्र आता है, जहां से वह विधायक हैं। संगरूर के ही दिड़बा विधानसभा क्षेत्र से जीते हरपाल चीमा पंजाब सरकार में वित्त मंत्री और बरनाला से जीते गुरमीत मीत हेयर शिक्षा मंत्री हैं।
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संगरूर उपचुनाव केजरीवाल के लिए नाक की लड़ाई था, जिसके जरिये भी गुजरात और हिमाचल में माहौल बनाने की तैयारी थी। पूरी पंजाब सरकार संगरूर में प्रचार कर रही थी। केजरीवाल से लेकर मनीष सिसौदिया तक सभी ने यहां पसीना बहाया। गली-गली में विधायक और मंत्री घूम रहे थे, लेकिन कोई हार को रोक नहीं पाया। संगरूर उपचुनाव में आप की हार और शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के सुप्रीमो सिमरनजीत सिंह मान की जीत के हर विश्लेषण में एक नई बात छिपी है।
वैसे इस हार की अंतिम पटकथा तो सिंगर सिद्धू मूसेवाला की हत्या के बाद उपजे प्रदेशव्यापी आक्रोश ने ही लिख दी थी। लेकिन पंजाब में तीन महीने के सफर में ही आम आदमी पार्टी की सरकार ने लोगों में जो निराशा पैदा की, उसने इस हार में बड़ा योगदान दिया। सरकार बनने के 10 दिन बाद ही आप ने दावा कर दिया कि हमने भ्रष्टाचार खत्म कर दिया। फिर दावा किया कि हमने अवैध माइनिंग खत्म कर दी। फिर दावा कर दिया कि हमने वीआईपी कल्चर खत्म कर दी। पंजाब के लोगों को यह बात समझ में ही नहीं आई कि अरविंद केजरीवाल के पास ऐसी कौन सी हर मर्ज की दवा है कि एक के बाद एक वह दावे किए जा रहे हैं।
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दूसरी तरफ चुनाव में किए गए बड़े-बडे वादे पूरे होने का इंतजार लोगों का लंबा होता जा रहा था। मुफ्त बिजली और महिलाओं को 1000 रुपए देने का वादा इसमें बड़ा था। अरविंद केजरीवाल और भगवंत मान ने हर घर को हर महीने 300 यूनिट मुफ्त बिजली देने का सपना दिखाया था। लोगों ने इसे सीधी स्कीम समझा, लेकिन सरकार बनते ही आप ने शर्तें लागू कर दीं। जिसमें इनकम टैक्स, एससी और जनरल कैटेगिरी जैसी कई नई बातें जोड़ दीं। सरकार बनते ही हर महिला एक हजार रुपए प्रतिमाह मिलने का इंतजार कर रही थी। लेकिन जब सरकार बनी तो आप के विधायक कहने लगे कि खजाने में पैसा नहीं है। जब हालत सुधरेगी तो दे देंगे। इससे लोग समझ गए कि आप भी दूसरी पार्टियों से अलग नहीं है।
आम आदमी पार्टी ने कहा था कि हम सियासत बदलने आए हैं। लेकिन इसके उलट सरकार बनते ही आप विरोधियों पर टूट पड़ी। कांग्रेस के एक पूर्व मंत्री और पूर्व विधायक को अरेस्ट किया। सीएम से लेकर मंत्री, विधायक और पार्टी नेता कहने लगे कि अभी कई और रडार पर हैं। इससे पंजाब के लोगों को लगने लगा कि आप भी उनके विकास की बात छोड़ बदलाखोरी की राह पर चल पड़ी है। भ्रष्टाचार में अपना स्वास्थ्य मंत्री गिरफ्तार करवा दिया। साथ में यह भी बयान दे दिया कि और भी मंत्री रडार पर हैं। इससे आम आदमी पार्टी के अपने ही विधायकों और मंत्रियों में खौफ पसर गया। लोगों को लगा कि गुजरात और हिमाचल में अपना एजेंडा सेट करने के लिए खुद के मंत्री की ही बलि ले ली।
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संगरूर में हार का खौफ पहले से ही आप को सताने लगा था। यही वजह थी कि सीएम भगवंत मान की बहन मनप्रीत कौर यहां से टिकट की बड़ी दावेदार थीं। मगर उन्हें टिकट देने की जगह गांव के एक सरपंच गुरमेल सिंह को उम्मीदवार बना दिया गया। 92 विधायकों के जीतने के बाद आप के 7 राज्यसभा मेंबर बनने थे। लेकिन पहले 5 उम्मीदवारों को लेकर भी विवाद हुआ। पंजाब के कोटे से राघव चड्ढा और डॉ. संदीप पाठक को राज्यसभा भेजा गया। पूर्व क्रिकेटर हरभजन सिंह को छोड़ एलपीयू के अशोक मित्तल और लुधियाना के कारोबारी संजीव अरोड़ा पर भी लोगों ने एतराज जताया। लोगों ने कहा कि पंजाब सरकार का रिमोट कंट्रोल केजरीवाल के हाथ पर है, जिसे कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
छोटे और रूटीन फैसलों को भी आम आदमी पार्टी की सरकार बढ़ा-चढ़ाकर पेश करती रही। इसे भी लोगों ने पब्लिसिटी स्टंट माना। सरकार का एक मंत्री बीच सड़क स्टंट करते हुए पाया गया। इससे लोगों में अगंभीरता की छवि बनती गई। इसकी परिणति सियासत में एक तरह से खत्म माने जा चुके गर्मख्याली सिमरनजीत सिंह मान की 5822 मतों से जीत के रूप में सामने आई। इतना ही नहीं इस चुनाव परिणाम के और भी कई आयाम हैं, जिनका विश्लेषण लंबे समय तक होता रहेगा। एक यह भी है कि पंजाब में पंथक सियासत करते रहे बादल परिवार की पार्टी का उम्मीदवार पांचवें नंबर पर आया है। श्री गुरुग्रंथ साहिब की बेअदबी प्रकरण के बाद पंजाब की सियासत में हाशिये पर चले गए बादल परिवार ने इस चुनाव में एक नया दांव खेलकर राजनीति में वापसी की कोशिश की, लेकिन उसे लोगों ने नकार दिया। बंदी सिखों के मुद्दे पर चुनाव लड़ने का ऐलान करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह हत्याकांड के दोषी बलवंत राजोआणा की बहन कमलदीप कौर को उन्होंने अपना प्रत्याशी बनाया, लेकिन संगरूर के लोगों ने इसे नकार दिया।
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