रुपये में जारी गिरावट थमने का नाम नहीं ले रही है। गुरुवार को डॉलर के मुकाबले रुपया 28 पैसे गिरकर 68.89 प्रति डॉलर के स्तर पर खुला है। इससे पहले बुधवार को रुपया 36 पैसे की कमजोरी के साथ 68.61 के स्तर पर बंद हुआ था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी का असर रुपये पर दिख रहा है। रुपये में यह अब तक की सबसे बड़ी गिरावट बताई जा रही है। आर्थिक जानकारों के मुताबिक, आयातकों (इम्पोर्टर्स) और बैंकों द्वारा डॉलर की अधिक मांग की वजह से रुपया फिसला है।
रुपये की गिरावट से महंगाई का बढ़ना तय माना जाता है। दरअसल, इंपोर्ट होने वाला सामान डॉलर वैल्यू पर खरीदा जाता है। ऐसे में अगर रुपया कमजोर होता है तो इंपोर्ट पर खर्च बढ़ जाता है। खास तौर पर पेट्रोल और डीजल की कीमतों में भी बढ़ोतरी होती है। रुपए के कमजोर होने से कार, कंप्यूटर, स्मार्टफोन जैसी वो तमाम चीजें महंगी होती है जो इम्पोर्टेड उपकरणों से बनते हैं।
रुपए के मुकाबले डॉलर में मजबूती के कारण एडिबल ऑयल, फर्टिलाइजर जैसे सेक्टर को नुकसान होगा। भारत सबसे ज्यादा इंपोर्ट क्रूड, एडिबल ऑयल और फर्टिलाइजर का करता है। ऐसे में डॉलर की कीमतें बढ़ने से इनके इंपोर्ट के लिए ज्यादा कीमत चुकानी होगी। वहीं इंपोर्ट आधारित दूसरे सेक्टर मसलन मेटल, माइनिंग के अलावा जेम्स एंड ज्वैलरी सेक्टर से जुड़ी कंपनियों को नुकसान होगा।
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डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरावट से विदेश में पढ़ाई कर रहे छात्रों को अधिक जेब ढीली करनी पड़ती है।
रुपए ने बीते साल डॉलर की तुलना में 5.96 फीसदी की मजबूती दर्ज की थी, जो अब 2018 की शुरुआत से लगातार कमजोर हो रहा है। इस साल अभी तक रुपया लगभग 8 फीसदी टूट चुका है। इससे पहले रुपए ने 24 नवंबर, 2016 को प्रति डॉलर 68.68 का ऐतिहासिक निचला स्तर छुआ था और 28 अगस्त, 2013 को 68.80 का लाइफटाइम निचले स्तर पर पहुंचा था।
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