संवैधानिक आचरण समूह (कसंटीट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप - सीसीजी) नाम के नागरिकों के समूह, ने सीएजी के स्वतंत्र कामकाज को लेकर हाल के विवाद पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को खुला पत्र लिखा है। इस समूह कई पूर्व आईएएस अफसर भी शामिल हैं। पत्र में कहा गया है कि सरकार के प्रहरी के रूप में काम करने वाली संस्था की स्थिति खराब है।
इस पत्र पर 86 रिटायर्ड आईएएस, आईपीएस, आईएफएस और अन्य अधिकारियों ने हस्ताक्षर किए हैं। पत्र में राष्ट्रपति से अनुरोध किया गया है कि वे अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए सीएजी की स्वायत्तता सुनिश्चित करें ताकि वह उन उद्देश्यों के लिए काम कर सके, जिसके लिए इसकी स्थापना की गई थी, साथ ही इसके कामकाज में किसी किस्म का हस्तक्षेप न हो और प्रक्रियाओं से छेड़छाड़ न हो।
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दरअसल बीते कुछ सालों में सरकार के मंत्रालयों और विभागों के कामकाज पर सीएजी की रिपोर्ट्स में लगातार कमी आ रही है, जिससे पता चलता है कि सीएजी अपना काम वैसे नही कर रहा है जैसा इससे पूर्व करता रहा है। 2015 में सीएजी ने जहां 55 रिपोर्ट्स दी थीं, वहीं 2020 में इनकी संख्या गिररकर सिर्फ 14 रह गई, जो कि 75 फीसदी की गिरावट है।
पत्र में कहा गया है, “ऐसा लगता है कि सीएजी अपने कर्तव्यों का निर्वहन उस गति से नहीं कर रहा है जैसाकि उससे अपेक्षा है, या जैसाकि वह पूर्व में करता रहा है। केंद्र सरकार के कामकाज से संबंधित संसद में पेश रिपोर्ट्स की संख्या निरंतर गिर रही है।”
इसी साल सितंबर में सीएजी द्वारा सरकार के कामकाज पर 12 रिपोर्ट संसद में पेश की गई थीं, जिनमें कुछ विभागों में भ्रष्टाचार की तरफ इशारा किया गया था, लेकिन इसके कुछ ही दिनों बाद सीएजी के उन अफसरों का तबादला कर दिया गया जिन्होंने भ्रष्टाचार की आशंका जताई थी।
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पत्र कहता है कि, “इन रिपोर्ट्स से सरकार और सरकारी निकायों द्वारा विभिन्न काम के लिए खर्च को तय सीमा से अधिक खर्च होना सामने आया है। इनमें से सबसे ज्यादा चौंकाने वाला मामला नेशनल हाईज़ अथॉरिटी (एनएचएआई) और उससे जुड़े निकायों का है। इसके अलावा आयुष्मान भारत जैसी सरकार की प्रमुख स्वास्थ्य योजनाओं के क्रियान्वयन में भी भ्रष्टाचार के संकेत मिलते हैं।”
पत्र में कई आंकड़ों को सामने रखते हुए कहा गया है कि एनएचएआई के द्वारका एक्स्प्रेसवे जैसे मामलों से सामने आता है कि कैसे कैबिनेट द्वारा मंजूर 18.20 करोड़ प्रति किलोमीटर की लागत को बढ़ाकर 250.77 करोड़ रुपए प्रति किलोमीटर किया गया। यह खर्च मंजूर लागत से 14 गुना अधिक है। इसी तरह का मामला आयुष्मान भारत योजना से जुड़ा है। इस योजना में सीएजी ने पाया कि इलाज के दौरान 88,760 मरीजों की मौत हो गई थी, लेकिन बाद की तारीखों में जिन 2,14,923 मामलों का भुगतान किया गया उनमें ये मरीज भी शामिल किए गए थे।
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पत्र के मुताबिक, “सीएजी द्वारा इन बातों के रेखांकित किए जाने के बावजूद इस योजना की खामियों पर नजर रखने वाली नेशनल इम्पलीमेंटेशन एजेंसी ने कोई कदम नहीं उठाया जबकि इस दौरान भी मृत हो चुके मरीजों के नाम पर इलाज किया जाता रहा।”
योजनाओं में खामियों को उठाने वाले अधिकारियों के तबादलों के बारे में पत्र में कहा गया है कि, “इन अधिकारियों को अब लीगर ऑफिसर या राष्ट्रभाषा सेल जैसे कम महत्वपूर्ण वाले पदों पर भेज दिया गया है। कुछ को तो उनकी मौजूदा तैनाती से दूरस्थ जगहो पर स्थानांतरित कर दिया गया है।”
पत्र में कहा गया है कि, “इससे भी गंभीर बात यह है कि मीडिया में इस बाबत जानकारियां आने के बाद से सीएजी का फील्ड ऑडिट बंद कर दिया गया है। फील्ड ऑडिट बंद करने का अर्थ है कि सीएजी अब निष्क्रिय हो चुका है। यह एक गंभीर संवैधानिक कदाचार है।”
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अगस्त महीने में सीएजी ने चुनाव आयोग को एक खुला पत्र लिखकर राज्य विधानसभाओं और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से कराने का आग्रह किया था।
नागरिक समूह ने राष्ट्रपति से अनुरोध किया है कि, “कुछेक मामलों को छोड़कर आमतौर पर सीएजी पूर्ण पारदर्शिता और निष्पक्षता से काम करता रहा है, लेकिन लगता है कि ये सब अब अतीत की बातें हो गई हैं।”
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