सरकारी नौकरियों में एससी-एसटी वर्ग को प्रमोशन में आरक्षण देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने साल 2006 के एम नागराज फैसले को बरकरार रखा है। उस समय पांच जजों की बेंच ने कहा था कि सरकार एससी-एसटी को प्रमोशन में आरक्षण दे सकती है। लेकिन शर्त ये रखी थी कि प्रमोशन में आरक्षण से पहले यह देखना जरूरी होगा कि अपर्याप्त प्रतिनिधित्व है या नहीं।
केंद्र सरकार ने नागराज फैसले के खिलाफ याचिका दायर करते हुए यह तर्क दिया था कि देश के संविधान में एससी-एसटी को पिछड़ा माना गया है। इसलिए इस वर्ग के पिछड़ेपन और उनके सार्वजनिक रोजगार में प्रतिनिधित्व को दर्शाने वाले आंकड़े एकत्र करने की जरूरत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में इसी मामले पर 40 से ज्यादा याचिकाएं दायर की गई थीं।
इस याचिका पर प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई में पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने सुनवाई की, जिसमें जस्टिस मिश्रा के अलावा जस्टिस कुरियन जोसेफ, आरएफ नरीमन, एसके कौल और इंदु मल्होत्रा शामिल थे। पीठ ने इस मामले को सात जजों की पीठ के पास भेजने से इंकार करते हुए कहा कि पदोन्नति में आरक्षण पर 2006 का नागराज फैसला सही था और इस पर दोबारा विचार करने की जरूरत नहीं है। हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए आंकड़े जुटाने की जरूरत नहीं है और राज्य सरकारें चाहें तो पदोन्नति में आरक्षण लागू कर सकती हैं।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मांग पर सभी पक्षों की बहस सुनकर 30 अगस्त को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
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सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने नाराजगी जताते हुए कहा कि प्रमोशन में आरक्षण हमारा संवैधानिक अधिकार हैं, जिसको लेकर मैं पीएम मोदी से मुलाकात कर प्रमोशन में आरक्षण की मांग करूंगा।
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वहीं बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में आरक्षण के विषय पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। मायावती ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला कुछ हद तक स्वागत योग्य है। कोर्ट ने प्रमोशन में आरक्षण पर रोक नहीं लगाई है और साफ कहा है कि केंद्र या राज्य सरकार इस पर निर्णय लें। मायावती ने कहा कि बीएसपी की मांग है कि सरकार प्रमोशन में आरक्षण तुरंत लागू करे।
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