केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने सभी राज्यों को राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) के लिए अधिसूचना जारी कर दिया है। लेकिन इसको लेकर संशय बरकरार है। एनपीआर से जुड़ी कई तरह की खबरें आ रही हैं। आम जनता तक अभी भी इससे जुड़ी पूरी जानकारी नहीं पहुंच पाई है। बता दें कि 1 अप्रैल से 30 सितंबर 2020 के दौरान NPR होना है। कहा जा रहा है कि इस राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर में पासपोर्ट नंबर, आधार कार्ड और ड्राइविंग लाइसेंस की जानकारी देना अनिवार्य होगा।अंग्रेजी टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक खबर के मुताबिक सरकारी सूत्रों ने एनपीआर के ‘एच्छिक’ और ‘वैकल्पिक’ पर फैले असमंजस को दूर करते हुए जानकारी दी है कि अगर किसी शख्स के पास आधार, वोटर आईडी, ड्राइविंग लाइसेंस या फिर पासपोर्ट है तो उसे इनकी जानकारी देना अनिवार्य होगा। वहीं जिनके पास इनमें से कुछ भी नहीं है तो उनके लिए यह अनिवार्य नहीं होगा।
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वहीं अब इस खबर को लेकर गृह मंत्रालय की तरफ से सफाई दी गई है। हालांकि उनके सफाई से उलझन और बढ़ गई है। दरअसल गृह मंत्रालय प्रवक्ता के ट्विटर हैंडल से इस खबर को गलत बताते हुए यह ट्वीट किया गया है कि, “एनपीआर के दौरान आधार, पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस की जानकारी देना अनिवार्य नहीं है। यदि उत्तरदाता सत्यापन के लिए दस्तावेज प्रस्तुत करना चाहते हैं, तो वे ऐसा करने के लिए स्वतंत्र हैं। गणनाकर्ताओं की तरफ से कोई बाध्यता नहीं होगी।” इसमें कहा गया है कि एनपीआर में किसी से कोई भी दस्तावेज नहीं मांगी जाएगी।
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हालांकि, गृह मंत्रालय प्रवक्ता की इस सफाई के बाद उलझन और बढ़ गई है। कई लोगों ने ट्वीट कर उनसे इसके बारे में सफाई मांगी है। जिसमें कहा गया है कि क्या लोगों के पास ये अधिकार है कि वो अपनी जानकारी साझा न करें। अगर जानकारी साझा नहीं करते हैं तो इस पर कार्रवाई तो नहीं होगी। ऐसे ही कुछ सवाल हैं जो लोग ट्वीट कर गृह मंत्रालय से पूछ रहे हैं और इन सब का जवाब मिलना बाकी है।
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एनपीआर में कुछ दस्तावेजों की मांग वैकेल्पिक तौर पर भी की गई है। गृह मंत्रालय के अधिकारी ने बताया कि ‘वैकल्पिक’ का मतलब यह है कि अगर किसी शख्स के पास इनमें से कुछ भी नहीं है तो वह फॉर्म में जगह खाली छोड़ सकता है। बता दें कि इससे पहले 24 दिसंबर को कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने जनगणना 2021 और एनपीआर पर जानकारी देते हुए बताया था कि आधार नंबर की जानकारी देना ‘वैकल्पिक’ होगा।
वहीं सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने सेल्फ सर्टिफिकेशन या सेल्फ डेक्लरेशन की बात कही थी जबकि अमित शाह ने इसे ‘एच्छिक’ बताया था। उन्होंने कहा था कि अगर एनपीआर में कुछ जानकारियां नहीं भी होंगी तो चलेगा। लेकिन गृह मंत्रालय के सूत्रों ने अब जो जानकारी दी है वह इसके उलट है।
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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक केरल और पश्चिम बंगाल ने अपने यहां NPR को रोकने के लिए लेटर लिखा है। एक्ट के तहत अगर कोई भी व्यक्ति सही जानकारी नहीं देता है या जानकारी नहीं देता है तो उस व्यक्ति के ऊपर 1,000 रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है। साथ ही 3 साल के लिए जेरल भी भेजा जा सकता है। ऐसे में ये साफ नहीं है कि अगर कोई व्यक्ति अपनी जानकारी शेयर नहीं करना चाहता तो क्या उसे भी ये सजा दी जाएगी।
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बता दें कि 2011 की जनसंख्या गणना से पहले 2010 में एनपीआर में जानकारियां एकत्रित की गई थी। अब 10 साल बाद और 2021 की जनगणना से पहले इसे अपडेट किया जा रहा है। सरकार ने एनपीआर अपडेशन को मंजूरी देने से पहले नागरिकता कानून में संशोधन किया था। इसके बाद से ही देशभर में इस संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है। वहीं नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन (एनआरसी) को लेकर भी लोग गुस्से में हैं।
एनपीआर में मांगी जा रही जानकारियों और इसमे पूछे जा रहे नए सवालों का विपक्ष लगातार विरोध कर रहा है। विपक्ष का कहना है कि एनपीआर में ऐसी जानकारियों और दस्तावेज मांगे जा रहे हैं जो देशभर में एनआरसी लागू कराने की तरफ मोदी सरकार का पहला बड़ा कदम है।
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