एक एक कर कई प्रिय जन जा रहे हैं, जिनसे प्रकृति में सचमुच रमना सीखा। कुछ समय पहले अनुपम लेखक और प्रकृतिविद् अनुपम मिश्र जी नहीं रहे, और शुक्रवार 6 जुलाई को वयोवृद्ध मित्र अमृतलाल वेगड जी भी चल दिये। वे यायावर कलाकार थे और 1977 से नर्मदा नदी से उनका जो मोहसूत्र जुड़ा उससे बँधे बँधाये वे अंत तक अपना झोला स्केच पैड थामे नर्मदा के गिर्द के करीब 4000 किमी अपने पैरों से नाप चुके थे। फिर भी जब कभी मिलते अपनी निश्छल मुस्कान से कहते, अभी तो बस सुर ही मिला रहा हूँ। असली परकम्मा यात्रा तो अगले जनम में की जायेगी।
90 साल की उम्र में किसी का जाना वैसे तो अपेक्षित होता है, लेकिन एक लेखक, कथाकार, कलामर्मज्ञ और पर्यावरणविद् होने के नाते जो भारी शून्य अमृतलाल जी छोड गये हैं, आज के समय में उसका तुरंत भरना संभव नहीं है। गुजराती और हिंदी के बड़े लेखक होने के अलावा बेगड जी बहुत कुशल चित्रकार भी थे, जिन्होने कई दशकों तक की गई अपनी नर्मदा की परिक्रमाओं की बहुत सुंदर छवियाँ जलरंगों में तो कभी तैलरंगों में उकेरीं।
1928 में जन्मे वेगड जी को प्रकृतिप्रेम अपने पिता से विरासत में मिला। 1948 से 53 तक उन्होंने शांतिनिकेतन में नंदलाल बोस सरीखे गुरुओं से चित्रकला सीखी। गाँधी गंगा में छात्रकाल में लिखा उनका एक बहुत सुंदर निबंध उनके व्यक्तित्व का सार है जिसका शीर्षक था, रणक्षेत्र में अहिंसा को उतारना ।
नर्मदा पर उनकी चार अविस्मरणीय किताबें छपीं जो गुजराती बंग्ला, मराठी और अंग्रेज़ी में भी अनूदित हुईं : अमृतस्य नर्मदा, सौंदर्य की देवी नर्मदा, तीरे तीरे नर्मदा और नर्मदा तुम कितनी सुंदर हो - नदियों, खासकर नर्मदा की बिगड़ती दशा से वे बहुत खिन्न थे | हम हत्यारे हैं, उन्होंने एक बार गुस्से से लिखा , अपनी ही नदियों के हत्यारे ..प्रकृति से कैसा विश्वासघात है यह ! नर्मदा तट पर पेड़ों की कटाई ने भी उनको विचलित किया था। एक तो वैसे ही नर्मदा माता मर रही है, तिस पर उसके आस पास पेड़ों को काटना तो मरणशील को डबल निमोनिया देना है, उन्होंने लिखा।
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यह पर्यावरणविद् लंबे समय से कहते रहे थे कि विकास की ओट में अधिक कमाने खाने का बेपनाह लालच दुनिया के ऊपर तने हुए कुदरती सुरक्षा कवच को तबाह कर रहा है। तब वेगड, मेधा पाटकर या चंडीप्रसाद भट्ट जैसे लोग बड़े बड़े डिग्रीधारक, अर्थशास्त्रियों, उद्योगपतियों, सत्ताधारियों को विकासविरोधी , भ्रम फैलाने वाले झोला छाप टाइप नज़र आते थे, जिनको दुनियादारी की समझ नहीं थी। पर समय ने साबित किया है कि वे सही थे। आज सारी दुनिया ताबड़तोड़ विकास से उपजी ग्लोबल वार्मिंग से कराह रही है और कहीं बाढ़ तो कहीं सुखाड़ से अरबों लोग विस्थापित होने को मजबूर हैं। जभी अमृतलाल जी कहते थे, इस दुनिया से, प्रकृति से हम उतना ही ले पाते हैं, जितने के हम पात्र हैं।
वेगड जी अपनी चिरसंगिनी कांता जी और पाँच बेटों सहित एक भरापूरा परिवार छोड़ गये हैं। ईश्वर उनको यह दु:ख सहने की शक्ति दे और दिवंगत की आत्मा को चिरशांति।
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