अब तक जिसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी, अब उसके कयास लगाए जा रहे हैं। कयास यह है कि 2019 के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहुत ही फिसलती हुई जमीन पर खड़े होंगे। लोकनीति-सीएसडीएस-एबीपी के एक पखवाड़े पहले जारी सर्वे में मोदी की अगुवाई वाली बीजेपी की हार की धुंधली सी तस्वीर दिखाई दे रही थी। लेकिन, उसी सर्वे की कुछ और बातें, हैरान करने वाले संकेत दे रही हैं:
तो क्या असली तस्वीर ऐसी ही है। चलिए इनअनुमानों की पड़ताल करते हैं।
अब तक ये आंकड़े मुझे हिला चुके थे। मैं बार-बार खुद से पूछ रहा था : क्या ऐसा कोई तरीका हो सकता है, जिससे इन निष्कर्षों की पुष्टि सर्वे की बजाय असली और आधिकारिक आंकड़ों से की जा सके ?
तभी मेरे दिमाग में एक बात कौंध गई। इस साल जनवरी से अब तक देश के अलग-अलग इलाकों में बड़ी संख्या में उपचुनाव हुए हैं। अगर मैं इन चुनावों में हुए मतदान के असली आंकड़ों की तुलना सीएसडीएस के सर्वे वाले आंकड़ों से करूं तो क्या निष्कर्ष निकलेगा ?
किस्मत से, दोनों आंकड़ों का समय भी यानी वह समय जब चुनाव हुए और सर्वे हुआ, आपस में पूरी तरह मेल खाता है। इस साल जनवरी से मई 2018, सीएसडीएस के सर्वे में शामिल करीब 16 हजार लोगों को जहां “साइंटिफिकली रैंडम” प्रक्रिया के तहत चुना गया था, वहीं उपचुनाव के आंकड़े अपने आप ही “हालात की वजह से रैंडम” हो जाते हैं, क्योंकि चुने हुए प्रतिनिधियों के निधन या इस्तीफे में कोई “सिस्टमिक बायस” यानी पक्षपात नहीं होता।
हमारे इस "असली सैंपल" का खाका कुछ इस तरह है : दिसंबर 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव के बाद 10 लोकसभा सीटों और 21 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हो चुके हैं। ये चुनाव 15 राज्यों में हुए हैं, जिनमें सवा करोड़ से ज्यादा लोगों ने 19 राजनीतिक दलों के लिए वोट डाले हैं।
जाहिर है, दोनों आंकड़ों की आपस में तुलना करना गलत नहीं होगा (पूरी तरह एक जैसे न होने के बावजूद). बल्कि मुझे लगता है कि ऐसा करना काफी दिलचस्प होगा, क्योंकि इसके नतीजे बेहद चौंकाने वाले हैं. कुछ देर तक इस ग्राफ को ध्यान से देखिए - बेहद इत्मीनान से - और आगे बढ़ने से पहले इसे एक बार फिर से पढ़िए:
Published: 14 Jun 2018, 9:34 AM IST
उप-चुनावों में हुए मतदान के असली आंकड़े और सीएसडीएस सर्वे के आंकड़े इतने ज्यादा मेल खाते हैं कि आप हैरान रह जाएंगे ! ये आंकड़े इस कहावत में नया अर्थ भर देते हैं कि हकीकत कई बार कल्पना से ज्यादा चौंकाने वाली होती है :
मैं बताना चाहूंगा कि आंकड़ों की इस "शत प्रतिशत पुष्टि" से मेरा भरोसा और मजबूत हुआ और मैंने उन अनुमानों को एक बार फिर से पढ़ा, जिन्हें पहले मैं "कल्पना की उड़ान" मानकर खारिज कर रहा था, क्योंकि तब ये अनुमान मीडिया के बनाए मौजूदा माहौल के बिलकुल खिलाफ लग रहे थे. हालांकि ये अनुमान अब भी गलत या बढ़ा-चढ़ाकर बताए गए साबित हो सकते हैं, लेकिन उपचुनाव में हुए मतदान के आंकड़ों को देखने के बाद इनके सच के करीब होने की संभावना बेशक बढ़ गई है :
Published: 14 Jun 2018, 9:34 AM IST
हालांकि मोदी चुनाव अभियान में उतरने के बाद शब्दों की अपनी चिर-परिचित बाजीगरी से बहस को नया मोड़ देने और वोटरों में फिर से नई उम्मीद जगाने की पूरी कोशिश करेंगे. हो सकता है इससे वो माहौल को बदलने में काफी हद तक कामयाब भी हो जाएं, फिर भी कुछ बातें तो बेहद साफ हैं :
सिर्फ मोदी भक्त ही राहुल को आसानी से खारिज कर सकते हैं. बाकी सभी वोटरों के लिए वो धीरे-धीरे ही सही, लेकिन निश्चित तौर पर एक ऐसे विकल्प के रूप में उभर रहे हैं, जिस पर वो भरोसा कर सकते हैं.
मोदी को खुद में और अपने अंदाज में भारी बदलाव करने होंगे. ये बदलाव क्या हो सकते हैं, ये सामने आना अभी बाकी है.
( यह लेख सबसे पहले हिंदी क्विंट में प्रकाशित हुआ था। इस लेख में राघव बहल ने चुनावी सर्वे और असली वोटिंग के आंकड़ों का विश्लेषण किया है।)
Published: 14 Jun 2018, 9:34 AM IST
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Published: 14 Jun 2018, 9:34 AM IST