साहब जी! आप भले हमें रसातल भेज दें, हम खुश हैं, अब रोकर भी क्या करेगी जनता!
कोई आदमी किसी से भी शर्त लगा सकता है कि किन्हीं ऐसी दो चीजों के दाम बताओ जिसकी कीमत पिछले एक साल में कम हुई हो। कोई कितना भी बड़ा भक्त हो, उसके भगवान उसकी मदद नहीं करने वाले- शर्त लगाने वाले की जीत और दूसरे की हार तय है।
By संडे नवजीवन ब्यूरो
फोटोः सोशल मीडिया
गुस्सा होने पर चीखना-चिल्लाना आम बात है। लेकिन कई दफा ऐसा भी होता है कि किसी को गुस्सा आए, तो वह व्यंग्यपूर्ण बातें करने लगता है- हद से गुजर जाए, तो क्या गुस्सा, अपने हाल पर हंसने-मुस्कुराने लगे वे...
पेट्रोल-डीजल-रसोई गैस की ऊंची हो रही कीमतों पर अगर आम लोगों में गुस्सा नहीं दिख रहा, तो इसकी वजह यह भी है। आसमान छूती कीमतें न लिखने की वजह यही है। किसी को क्या मालूम कि ये कीमतें कितनी बढ़ेंगी, इसलिए आसमान छूती कीमतों की जगह सेफ साइड में ऊंची हो रही कीमतें कहना ही सही है। वैसे भी, कोई आदमी किसी से भी शर्त लगा सकता है कि किन्हीं ऐसी दो चीजों के दाम बताओ जिसकी कीमत पिछले एक साल में कम हुई हो। कोई कितना भी बड़ा भक्त हो, उसके भगवान उसकी मदद नहीं करने वाले- शर्त लगाने वाली की जीत और दूसरे की हार तय है।
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इतिहास किसी का पीछा नहीं छोड़ता। आदमी अच्छा-बुरा किसी हाल में हो, पुराने दिन याद करता है। अगर किसी ने ‘अच्छे दिनों के आने’ की बात कही हो और उस पर आपने यकीन कर लिया हो, तो बुरे दिन आने पर आप अपनी पुरानी दुर्बुद्धि पर सोच-सोचकर ही हंसते रहते हैं। इन दिनों यही हो रहा है। सोशल मीडिया की भाषा ट्रोल करने वाले बेहतर समझते हैं। शायद वे भी समझ रहे हों कि जनता उनके भगवान की किस तरह ऐसी-तैसी कर रहे हैं। कुछ बानगी देखेंः
पहले की लुटेरी सरकार हमें एलपीजी 400 रु में दे रही थी। फिर हमने एक ईमानदार सरकार चुनी जो एलपीजी 800 रु में दे रही है।
अमिताभ बच्चन दूरदर्शी हैं। इसीलिए उन्होंने 2013 में ही भांप लिया था और कहा था कि वह दिन दूर नहीं जब लोग गाड़ी कैश से खरीदेंगे और पेट्रोल लोन लेकर भरेंगे।
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हमारे यहां की सड़कें बनना फिलहाल इसलिए रोक रखा गया है कि पेट्रोल-डीजल-गैस से सरकार को हो रही कमाई से सुदूर के इलाकों की सड़कें बन रही हैं। वहां का विकास तो हम नहीं देख पाएंगे। पर जब वे इलाके विकसित हो जाएगे, तब हमारा नंबर आएगा।
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अरे, क्या करेंगे सस्ती लेकर? कोई रोजी-रोजगार तो है नहीं। कोरोना की वजह से यात्राएं भी नहीं करनी हैं। इसलिए कहीं जाना-आना तो है नहीं। दाम बढ़े कि घटे, हमें क्या करना?
नेपाल में इनके दाम कम हैं। वहां जाने के लिए वीजा तो लगता नहीं। सीमाओं पर रहने वाले हम लोग वहीं जाकर टैंक फुल करा लेते हैं। सस्ता तो मिल ही जाता है, उन्होंने भारत के साथ जो किया है, इस तरह उसका जवाब भी हम दे आते हैं।
अक्कड़-बक्कड़ बंबे बो, डीजल नब्बे, पेट्रोल सौ, सौ में लगा धागा, सिलेंडर उछल के भागा।
1 लीटर पेट्रोल के दाम में 2 लीटर से ज्यादा दूध आ रहा। दूध पीकर साइकिल चलाएं, सेहत बनाएं, आत्मनिर्भर भारत बनाएं।
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पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने पर हाहाकार क्यों? आप ये दोनों कहीं भी जाकर भरवा सकते हैं। मुंबई में ज्यादा दाम है, तो मिजोरम चले जाएं। यह उसी तरह है जैसे किसान अपना अनाज कहीं भी बेच सकता है।
अब आप कहीं शादी-ब्याह में जाएं, तो लिफाफे में 101 रुपये देने की जगह पेट्रोल भी दे सकते हैं।
सरकार में नितिन गडकरी के इस प्रस्ताव पर गंभीरता से विचार हो रहा है कि दूरी किलोमीटर में बताने वाले पत्थरों को ही पास-पास लगवा दो ताकि लोगों को लगे कि गाड़ी का एवरेज पुराना ही है।
65 रुपये होने में पेट्रोल को 65 साल लगे और 100 रुपये होने में सिर्फ 6 साल। बोलो, तरक्की हुई कि नहीं?
एक बेरोजगार व्यक्ति को गाड़ी में धक्का लगाने को रख लिया है। ये पेट्रोल से सस्ता पड़ता है। उसकी मदद भी हो जा रही है।