ये सारा खुलासा हुआ आरटीआई के जवाब में जिसे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने सोमवार को जारी किया। सात पन्ने के इस खुलासे से सामने आया कि नोटबंदी के ऐलान के चंद घंटे पहले हुई आरबीआई की बैठक में कहा गया था कि देश में कालेधन का बड़ा हिस्सा नकद के बजाए रियल एस्टेट यानी जमीन-जायदाद में लगाया गया है। ऐसे में नोटबंदी करने से कालेधन पर और जमीन-जायदाद पर कोई असर नहीं पड़ने वाला। इस बैठक में आरबीआई के तत्कालीन गवर्नर उर्जित पटेल के साथ ही मौजूदा गरवर्नर शक्तिकांत दास भी मौजूद थे।
इसी बैठक में आरबीआई के डायरेक्टर्स ने कहा था कि सिर्फ 400 करोड़ रुपए के फर्जी नोट बाजार में हैं, जबकि कुल नकदी 15 लाख करोड़ के आसपास है। ऐसे में यह रकम बेहद छोटी है और इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला।
बैठक में एक और निष्कर्ष निकाला गया छा कि नोटबंदी से दिहाड़ी मजदूर, होटलों और टैक्सी चलाने वालों समेत बस, ट्रेन और हवाई यात्रा करने वालों पर सबसे पहले और ज्यादा असर पड़ेगा।
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मीद 8 नवंबर 2016 को रात 8 बजे नोटबंदी का ऐलान करते समय कहा था कि देश की अर्थव्यवस्था को कैशलेस यानी नकद विहीन बनाने की जरूरत है। लेकिन इस ऐलान से पहले हुई आरबीआई की बैठक में बैंक बोर्ड ने इसे भी खारिज कर दिया था। बोर्ड का कहना था कि नकदी का चलने होने से कोई फर्क नहीं पड़ता है और नोटबंदी से भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
आरटीआई के तहत मिली इन जानकारियों को जारी करते हुए जयराम रमेश ने कहा कि नोटबंदी के दिन हुई आरबीआई बैठक के मिनट्स (बैठक में हुए फैसलों का ब्योरा) हासिल करने में 26 महीने का वक्त लगा। उन्होंने बताया कि नोटबंदी के बाद रिजर्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर उर्जित पटेल तीन अलग-अलग स्टैंडिंग कमेटी के सामने पेश हुए, लेकिन उन्होंने किसी भी बैठक में आरबीआई बोर्ड की इस बैठक का जिक्र तक नहीं किया। रिकॉर्ड के मुताबिक यह आरबीआई बोर्ड की 561वीं बैठक थी।
लेकिन हैरानी वाली बात यह है कि बैठक के निष्कर्षों और बोर्ड की आपत्तियों के बावजूद नोटबंदी के सरकार के फैसले पर मुहर लगा दी गई थी। जयराम रमेश ने आरोप लगाया कि आरबीआई ने इस फैसले को मंजूरी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दबाव में थी।
जयराम रमेश ने कहा कि यह जानकारी सामने आने के बाद यह बात अब साफ तरीके से कही जा सकती है कि रिजर्व बैंक को नोटबंदी के नतीजे उसी समय पता थे और सुधार होने की बजाय परेशानी के बढ़ने की बात उसे पता थी। लेकिन रिजर्व बैंक के अधिकारियों के तर्कों और निष्कर्षों पर गौर करने की जगह पीएम मोदी ने अपने मन से फैसला लिया।
उन्होंने कहा कि नोटबंदी देश पर किसी कहर से कम नहीं थी। उसके बाद जो अर्थव्यवस्था ध्वस्त हुई तो अभी तक नहीं उबर सकी है। पहले से तबाह हो चुकी ग्रामीण अर्थव्यवस्था इसलिए और बर्बाद हो गयी क्योंकि शहरों में काम करने वाला मजदूर एक बार फिर लौट कर अपने गांवों में चला गया। जहां भुखमरी पहले से ही उसका इंतजार कर रही थी। नतीजतन कभी पूरे परिवार के पेट का साधन बना शख्स अब खुद ही परिवार पर बोझ बन गया।
जयराम रमेश ने आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड के बारे में आरटीआई से मिली जानकारी का ब्योरा रखते हुए यह भी कहा कि लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की सरकार बनी तो नोटबंदी के बाद करचोरी के लिए पनाहगाह माने जाने वाली जगहों पर पैसे ले जाने में असामान्य बढ़ोतरी तथा देश के बैंकों में असामान्य ढंग से पैसे जमा किए जाने के मामलों की जांच की जाएगी।
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