आर्थिक मोर्चे पर केंद्र की मोदी सरकार की नाकामी की जिंदा मिसालें गिरते बाजार, रसातल में पहुंचते रुपए, तेल के दामों में लगी आग, नोटबंदी और जीएसटी से चौपट हुए उद्योग धंधे हैं। इन सभी पहलुओं को केंद्र सरकार किसी न किसी बहाने से नकारती रही है। लेकिन मौजूदा सरकार से लोगों की उम्मीद टूट चुकी है, इसका आइना उसे दिखाया है रिजर्व बैंक ने। आरबीआई के ताज़ा कंज्यूमर कॉंफिडेंस सर्वे के नतीजे बताते हैं कि इस सरकार ने लोगों की जिंदगी कितनी दुश्वार कर दी है।
इसी सप्ताह जारी रिजर्व बैंक का कंज्यूमर कॉन्फिडेंस सर्वे कई मायनों में महत्वपूर्ण है। इस सर्वे के नतीजों से पता चलता है कि मौजूदा सरकार की आर्थिक नीतियों में आम लोगों को कितना भरोसा है और अर्थव्यवस्था को लेकर उनका क्या नजरिया है। यह सर्वे इसलिए कराया जाता है ताकि उपभोक्ताओं का विश्वास पता चल सके, क्योंकि विश्वास से भरे ग्राहक ज्यादा से ज्यादा वस्तुएं खरीदते हैं और सेवाओं का इस्तेमाल करते हैं। ग्राहकों के इस कदम से देश की अर्थव्यवस्था को उछाल मिलता है। यह सर्वे जब ऐन लोकसभा चुनाव से पहले सामने आता है तो उससे सत्ताधारी दल के राजनीतिक भविष्य की बानगी भी नजर आती है।
रिजर्व बैंक जो सर्वे 5 अक्टूबर को जारी हुआ है, उससे जो अहम निष्कर्ष निकलते हैं, वह हैं:
कुल मिलाकर मोदी सरकार से आम लोगों की उम्मीदें खत्म हो चुकी हैं।
Published: undefined
रिजर्व बैंक के सर्वे में सामने आए रोजगार के पहलू पर नजर डालने पर सामने आता है कि लोगों को इस सरकार से कोई उम्मीद नहीं रही। नरेंद्र मोदी के सत्ता संभालने से कुछ महीने पहले यानी दिसंबर 2013 में यूपीए शासन के समय हुए सर्वे में 29.1 फीसदी लोगों का मानना था कि पिछले साल एक साल के मुकाबले नौकरियों के हालात बेहतर हुए हैं. वहीं, 34 फीसदी का नजरिया इससे उलट था। यानी नौकरियों को लेकर सकारात्मक सोचने वालों का कुल प्रतिशत 5.3 फीसदी था।
इसके बाद सितंबर 2016 के सर्वे में सामने आया कि नौकरियों को लेकर लोगों की उम्मीदें खत्म हो चुकी है और सकारात्मक सोच तो दूर, निगेटिव सोच वालों की संख्या अधिक थी। मौजूदा दौर यानी सितंबर का नेट रेस्पॉन्स निगेटिव में 0.2 पर्सेंट था। यह सर्वे नोटबंदी से पहले हुआ था।
लेकिन, अब हालात और बदतर हो चुके हैं। रिजर्व बैंक के सितंबर 2018 के सर्वे में सामने आया है कि सिर्फ 35.2 फीसदी की नजर में नौकरियों के हालात सुधरें हैं, जबकि 45.5 प्रतिशत लोगों ने माना कि हालात खराब हुए हैं। यानी नौकरियों को लेकर निगेटिव सोच वालों की तादाद में 10 गुना से भी ज्यादा बढ़ोत्तरी हुई है। यानी हालात दिसंबर 2013 के मुकाबले और भी खराब हैं।
अगले एक साल में क्या नौकरियां और रोजगार मिलेगा? इस सवाल के जवाब में लोगों ने उम्मीद जताई है कि नई सरकार उन्हें रोजगार दिला पाएगी। सर्वे के मुताबिक 54.1 फीसदी लोगों का कहना है कि नौकरियों को लेकर अगले साल हालात सुधरेंगे। वहीं 29 फीसदी मानते हैं कि नहीं, हालात और खराब होंगे। यानी आने वाली सरकार से नौकरियों मिलने की उम्मीद रखने वालों का सकारात्मक नजरिया 24.9 फीसदी है।
यहां महत्वपूर्ण यह है कि ऐसी ही सकारात्मकता मोदी सरकार के आने से पहले दिसंबर 2013 के वक्त भी थी। लेकिन, बीते साढ़े चार साल में इन उम्मीदों पर ग्रहण लग गया और अब सिर्फ अगली सरकार से ही लोगों ने उम्मीद जताई है।
Published: undefined
आमदनी की बात पर दिसंबर 2013 में आए आरबीआई के सर्वे में 30.9 प्रतिशत लोगों का मानना था कि एक साल पहले के मुकाबले उनकी आमदनी बढ़ी है। जबकि 15.5 फीसदी लोगों ने कहा था कि यूपीए शासन में उनकी आमदनी में कमी आई है। यानी आमदनी को लेकर लोगों की सकारात्मकता 15.4 प्रतिशत थी। लेकिन अब ऐसा मानने वालों की तादाद पांच साल पहले के मुकाबले एक चौथाई से भी कम रह गई है। सितंबर 2018 में 28.3 फीसदी लोगों ने कहा कि पिछले साल के मुकाबले उनकी आमदनी बढ़ी है, जबकि 23.4 प्रतिशत ने कहा कि आमदनी घटी है। यानी आमदनी बेहतर होने के मोर्चे पर लोगों की सकारात्मकता महज 4.9 फीसदी है। यानी आमदनी के मोर्चे पर दिसंबर 2013 के मुकाबले जनभावना से जुड़े हालात भी खराब हैं।
Published: undefined
Published: undefined
मौजूदा आर्थिक हालात पर लोगों का नजरिया बिल्कुल सकारात्मक नहीं है। नोटबंदी से पहले जहां 19.4 फीसदी लोग आर्थिक हालात को लेकर आश्वस्त थे, वहीं सितंबर 2018 में आर्थिक हालात को लेकर लोगों की सकारात्मकता खत्म हो चुकी है और 10.6 फीसदी लोगों का नजरिया निगेटिव है। यानी मौजूदा आर्थिक हालात से लोग बिल्कुल खुश नहीं हैं।
गौरतलब है कि 2014 के चुनावों में यूपीए सरकार से लोगों की नाराजगी का एक कारण आर्थिक हालात भी थे। ऐसे में अगर आज ऐसे संकेत आरबीआई के सर्वे से आ रहे हैं तो मोदी सरकार के लिए खतरे की घंटी बज चुकी है।
सर्वे में लोगों से आने वाले साल को लेकर उम्मीदों पर सवाल पूछे गए। सितंबर 2018 के सर्वे में शामिल 51.3 फीसदी लोगों ने अगली सरकार से उम्मीदें जताईं। 2013 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनने के लिए प्रचार में कूद चुके थे तो उस वक्त 37.2 फीसदी लोगों ने अच्छे दिनों की उम्मीद जताई थी।
यह सर्वे देश के 6 बड़े शहरों में किए गए हैं। ऐसे में माना जा सकता है कि शहरी मध्यवर्ग मोदी सरकार से नाराज है।
Published: undefined
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: undefined