भारतीय रिजर्व बैंक ने लगातार दूसरी क्रेडिट पॉलिसी में रेपो रेट घटाया है। आरबीआई ने रेपो रेट में 0.25 फीसदी की कटौती की है। जिसके बाद अब रेपो रेट की नई दर 6 फीसदी हो गई है। आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने इस बात का ऐलान किया।
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शक्तिकांत दास ने कहा, “2019-20 के लिए जीडीपी अनुमान को 7.2 फीसदी रखा गया है। वहीं पहली छमाही में जीडीपी अनुमान 6.8 से 7.1 फीसदी है जबकि दूसरी छमाही में आंकड़ा 7.3 फीसदी से 7.4 फीसदी के बीच रहने का अनुमान है।”
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आरबीआई की ओर से रेपो रेट में कटौती के बाद अब लोगों की ईएमआई में कमी होने की संभावना है। जिन लोन की ईएमआई पर असर पड़ेगा उनमें होम, कार, पर्सनल, एजूकेशन लोन पर असर पड़ने की संभावना है। इससे पहले, बीते फरवरी में रिजर्व बैंक ने रेपो दर में चौथाई फीसदी की कमी की थी जो कि पिछले डेढ़ साल में पहली कटौती थी।
आरबीआई ने इससे पहले फरवरी में मौद्रिक नीति की समीक्षा के बाद रेपो रेट में 25 आधार अंकों की कटौती की घोषणा करते हुए इसे 6.50 फीसदी से घटाकर 6.25 फीसदी कर दिया था। रिवर्स रेपो रेट भी घटाकर 5.75 फीसद कर दिया गया है। हालांकि उसके पहले तीन बार से अपनी मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो रेट में तत्कालीन आरबीआइ गवर्नर उर्जित पटेल ने दरों में कोई बदलाव नहीं किया था।
चलिए जानते क्या है रेपो रेट?
रेपो रेट ब्याज की वह दर होती है जिस पर आरबीआई बैकों को फंड उपलब्ध कराता है। यानी बैंक को रोज कामकाज के लिए अक्सर एक बड़ी रकम की जरूरत होती है। इस दौरान बैंक आरबीआई से कर्ज लेने का विकल्प अपनाते हैं और इस कर्ज के लिए बैंकों को ब्याज देना पड़ता है। उसे रेपो रेट कहा जाता है।
रेपो रेट कम या बढ़ने से कैसे पड़ता है आम लोगों पर असर?
रेपो रेट कम होने से बैंकों के लिए रिजर्व बैंक से कर्ज लेना सस्ता हो जाता है और इसके चलते बैंक आम लोगों को दिए जाने वाले कर्ज की ब्याज दरों में भी कमी करेगी। अगर रेपो दर में बढ़ोतरी की जाती है तो इसका सीधा मतलब यह होता है कि बैंकों के लिए रिजर्व बैंक से कर्ज लेना महंगा हो जाएगा। ऐसे में जाहिर है कि बैंक दूसरों को कर्ज देने के लिए जो ब्याज दर तय करेंगे वह भी उन्हें बढ़ाना होगा।
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