नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन यानी कि एनआरसी को लेकर असम में घमासान मचा हुआ है। शनिवार को बहुप्रतीक्षित अंतिम सूची जारी होने के कुछ ही मिनटों के अंदर ही राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) की आधिकारिक वेबसाइट ठप पड़ गई। वेबसाइट ‘डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट एनआरसी असम डॉट एनआईसी डॉट इन’ साइट नहीं खुल पा रही थी। खबरों के मुताबिक, साइट भारी ट्रैफिक के कारण ठप हो गई, जिसके बाद इस परयह संदेश पर लिखकर आ रहा था कि अभी साइट पर नहीं पहुंचा जा सकता है। अब इस सूचना के बाद असम के लोगों में बेचैनी बढ़ी हुई है। वे सभी यह जानने के लिए बेचैन है कि एनआरसी में कौन है और कौन बाहर है।
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गौरतलब है कि असम की एनआरसी को सुबह 10 बजे प्रकाशित कर दी गई। 3.3 करोड़ आवेदकों में से 19 लाख से अधिक लोग अंतिम सूची में से बाहर कर दिए गए हैं। आईए एक नजर डालते है कि एनआरसी में अब तक क्या हुआ।
1951: भारत के नागरिकों का पहला राष्ट्रीय रजिस्टर (एनआरसी) प्रकाशित।
1979: असम में विदेशी विरोधी आंदोलन की शुरुआत हुई।
जनवरी 1980: ऑल असम स्टूडेंट यूनियन (एएएसयू) ने एनआरसी को अपडेट करने की मांग करते हुए पहला ज्ञापन सौंपा।
14 अगस्त, 1985: ऐतिहासिक असम समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।
1990: एएएसयू ने केंद्र और राज्य सरकार को एनआरसी को अपडेट करने के लिए तौर-तरीके प्रस्तुत किए।
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मई 2005: तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने केंद्र, असम सरकार और एएएसयू के बीच एक त्रिपक्षीय बैठक की अध्यक्षता की। बैठक में असम समझौते में किए गए वादों को पूरा करने के लिए एनआरसी को अद्यतन करने की दिशा में कदम उठाए जाने पर सहमति बनी। इसके लिए तौर-तरीकों को केंद्र ने असम सरकार के परामर्श से अनुमोदित किया।
जुलाई 2009: असम पब्लिक वर्क्स नाम के एक एनजीओ ने सुप्रमी कोर्ट में यह कहते हुए याचिका दायर की कि जिन प्रवासियों के नाम दस्तावेजों में नहीं है, उन्हें मतदाता सूची से हटा दिया जाना चाहिए। एनजीओ ने अदालत से अनुरोध किया कि एनआरसी को अपडेट करने की प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए। यह पहला उदाहरण है जिससे यह पता चलता है कि एनआरसी का मामला सुप्रीम कोर्ट तक कैसे पहुंचा।
अगस्त 2013: असम पब्लिक वर्क्स की याचिका पर सुनवाई हुई।
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दिसंबर 2013: सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि एनआरसी को अपडेट करने की कवायद शुरू की जानी चाहिए।
फरवरी 2015: हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में एनआरसी को अपडेट करने का आदेश दिया था ताकि सही नागरिकों की पहचान हो सके और अवैध अप्रवासियों का पता चल सके, लेकिन इसे लेकर वास्तविक कवायद फरवरी 2015 में शुरू हुई।
31 दिसंबर, 2015 : एनआरसी को जारी करने की सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई डेडलाइन पर यह सूची प्रकाशित नहीं हो सकी और तभी से इस मामले में हो रहे अपडेट पर शीर्ष न्यायालय नजर बनाए हुए है।
31 दिसंबर 2017 : सरकार ने एनआरसी का पहला मसौदा प्रकाशित किया।
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30 जुलाई 2018: असम सरकार ने एनआरसी का दूसरा मसौदा प्रकाशित किया। 3.29 करोड़ लोगों ने इसके लिए आवेदन किया। इनमें से 2.89 करोड़ लोगों को वास्तविक नागरिक घोषित किया गया। एनआरसी के मसौदे में 40 लाख से अधिक लोगों को शामिल नहीं किया गया।
1 अगस्त 2018: सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि असम एनआरसी केवल एक मसौदा है और इसलिए यह किसी के खिलाफ किसी भी प्राधिकरण द्वारा किसी भी कार्रवाई का आधार नहीं हो सकता है। मुख्य चुनाव आयुक्त ओ.पी. रावत ने स्पष्ट किया कि मतदाता सूची एक अलग कानून द्वारा शासित है और अंतिम एनआरसी से बहिष्कार का मतलब असम की मतदाता सूची से 'स्वचालित निष्कासन' नहीं होगा।
17 अगस्त 2018: सुप्रीम कोर्ट ने असम एनआरसी समन्वयक को राज्य में एनआरसी मसौदे से बाहर रखी गई आबादी का जिलों के अनुसार प्रतिशत डेटा प्रस्तुत करने को कहा।
5 सितंबर 2018 : सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि एनआरसी के दावे वाले फॉर्म की लिस्ट-ए में उपलब्ध कराए गए कुल 15 दस्तावेजों में से कोई भी 10 का इस्तेमाल दावेदारों द्वारा अपनी विरासत साबित करने के लिए किया जा सकता है।
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31 दिसंबर 2018: यह एनआरसी के अंतिम संस्करण को जारी करने के लिए सरकार की समय सीमा थी। हालांकि, यह समय पर पूरी नहीं हो सकी।
26 जून 2019: बहिष्करण सूची पर एक अतिरिक्त मसौदा प्रकाशित किया गया था। इस सूची में 1,02,462 नाम थे, जबकि इससे बाहर रहे लोगों की कुल संख्या 41,10,169 थी।
31 जुलाई 2019: सरकार एनआरसी के अंतिम संस्करण को जारी करने वाली थी। यह नहीं हो सका और समय सीमा एक महीने बढ़ा दी गई।
31 अगस्त, 2019: सरकार ने एनआरसी का अंतिम संस्करण जारी किया। इसमें असम के 19 लाख से अधिक लोग सूची से बाहर हो गए।
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