राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। इस दौरान खास तौर पर इस बात पर बहस होगी कि मस्जिद और इसमें नमाज पढ़ना इस्लाम का अहम हिस्सा है कि नहीं। मुस्लिम पक्ष की ओर से वकील राजीव धवन इस पर कोर्ट में अपना पक्ष रखेंगे।
पिछली सुनवाई में मुस्लिम पक्षकारों की ओर से दलील दी गई थी कि 1994 में आया इस्माइल फारुकी जजमेंट में कहा गया था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है। ऐसे में इस फैसले की दोबारा परीक्षण की जरूरत है और इसी कारण पहले मामले को संवैधानिक बेंच को भेजा जाना चाहिए। मुस्लिम पक्षकारों का यह भी कहना था कि इस जजमेंट का इस मामले पर सीधा असर पड़ेगा।
मुस्लिम पक्षकारों की ओर से इस मुद्दे को उठाए जाने के बाद राम जन्मभूमि पुनरोद्धार समिति के वकील पीएन मिश्रा ने सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन से कहा था कि इस्लाम में मस्जिद की क्या अहमीयत है, आप इस पर रोशनी डालें। इस पर वकील राजीव धवन ने कहा था, “मस्जिदों को मनोरंजन के लिए नहीं बनाया जाता है। सैकड़ों लोग वहां पर नमाज पढ़ते हैं, क्या इसे धर्म की जरूरी प्रैक्टिस नहीं माना जाना चाहिए?”
Published: 13 Jul 2018, 9:52 AM IST
मुस्लिम पक्षकारों द्वारा कोर्ट में इस्माइल फारुकी जजमेंट को उठाने जाने का यूपी सरकार के अडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने विरोध किया था। उन्होंने कहा था कि इस्माइल फारुकी से जुड़ा फैसला 1994 में आया था। तब से लेकर अब तक उसकी वैधता पर सवाल नहीं उठाया गया। यहां तक कि हाई कोर्ट में जब मामला पेंडिंग था, तब भी जजमेंट के पैरा 82 जिसमें उक्त टिप्पणी की गई है, उस पर सवाल नहीं उठा। उन्होंने कहा कि अयोध्या मामला 8 साल से सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है, लेकिन इस दौरान किसी पक्ष ने इस्माइल फारुकी जजमेंट का सवाल नहीं उठाया। अब इस मामले में दोनों पक्षों की ओर से तमाम दलीलें लिखित तौर पर पेश कर दी गई हैं। तुषार मेहता ने यह भी कहा था कि इस तरह से इतने सालों बाद यह मामला उठाना इनकी गलत मंशा को दर्शाता है।
Published: 13 Jul 2018, 9:52 AM IST
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Published: 13 Jul 2018, 9:52 AM IST