प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह कृषि कानूनों की वापसी की, देश में चर्चा यह है कि ऐसा उन्होंने उत्तर प्रदेश और पंजाब में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर किया।
मुझे वास्तव में खुशी है कि प्रधानमंत्री मोदी जी ने ऐसे तीन काले कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा की जो किसी भी तरह किसानों के हक में नहीं थे। यह भारतीय किसानों की जीत है। हम कृषि देश हैं। ग्रामीण भारत की 80 प्रतिशत से ज्यादा आबादी के लिए इससे जुड़ी गतिविधियां जीवन-यापन का मुख्य स्रोत हैं। यह श्रम के लगभग 52 प्रतिशत को रोजगार उपलब्ध कराती है। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में इसकी हिस्सेदारी 14 से 15 प्रतिशतहै।
इस तरह से कोई भी गलत फैसला कृषि अर्थव्यवस्था के आधारभूत ढांचे को क्षति पहुंचा सकता है। एक बार यह ढांचा हिला, तो इस पर जो पूरी संरचना खड़ी है, वह ढह जाएगी। इस पर कोई बड़ा ढांचा बनाने की जगह इसके ढांचे को मजबूत करने की जरूरत है, अन्यथा यह ढह जाएगी।
मैं प्रधानमंत्री की घोषणा की प्रशंसा करता हूं। किसानों की वजहों को समझने में उन्हें एक साल लगा। अंत में यह महत्वपूर्ण है कि ‘किसानों ने आधी लड़ाई जीत ली है।’ चुनावों के मद्देनजर मोदी सरकार द्वारा लिए गए इस यू-टर्न पर बहस होने दीजिए...
देश के किसान अंधे नहीं हैं। भले ही चुनावों के कारण कृषि कानूनों पर यू-टर्न लिया गया हो, उन्होंने देखा कि सरकार ने उनके साथ क्या किया। मोदी और केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ संघर्ष करते हुए 700 किसानों की शहादत को किसान भूल नहीं सकते। प्रधानमंत्री की घोषणा अपने अस्तित्व को बचाने के लिए किसानों के संघर्ष का परिणाम है। यह किसानों... सभी भारतीय किसानों की जीत है। मोदी का यू-टर्न संकेत देता है कि हम लोकतांत्रिक देश में अब भी सांस ले सकते हैं।
तो अब आप मोदी को भरोसे के लायक प्रधानमंत्री के तौर पर देखते हैं...
वह धोखेबाज हैं। उन्होंने 15 लाख रुपये देने-जैसे कई वायदे जनता से किए लेकिन कुछ नहीं हुआ। उन्होंने उन लोगों को धोखा दिया जिन्होंने उन पर भरोसा किया। मैं अब भी उन पर भरोसा नहीं करता।
मोदी सरकार के खिलाफ इस तरह की बड़ी जीत के बाद क्या आप यूपी से चुनाव लड़ने की योजना बना रहे हैं?
जैसा कि मैंने कहा, हमने अपने संघर्ष में आधा रास्ता ही तय किया है। मैं किसानों के लिए संघर्ष कर खुश हूं। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी), डेयरी किसान, गन्ना किसान, खेती-किसानी का उत्पादन मूल्य, सब्सिडी, खेती के लिए बिजली और सिंचाई-जैसे कई मुद्दे हैं। हम लोगों को कई मुद्दों को देखना होगा।... इन कानूनों पर हमारे संघर्ष ने संकेत दिया है कि ‘एकता’ का महत्व है, इसलिए भविष्य के लिए हमारी योजनाएं वही हैं। मैं चुनाव नहीं लडूंगा। मैं मेरठ या वाराणसी-जैसे छोटे चुनाव क्षेत्रों में मोदी से संघर्ष नहीं करूंगा। मेरा चुनाव क्षेत्र बड़ा है। मैं तब तक मोदी से देश के चौक-चौराहे पर संघर्ष करता रहूंगा जब तक किसानों को उनके अधिकार नहीं दिए जाते और सरकार किसानों के लाभ के लिए योजना तैयार नहीं करती।
क्या कृषि राज्य का विषय भी नहीं है। आपको क्या लगता है, राज्यों में क्या कमिया हैं?
कृषि नीतियां केन्द्र सरकार द्वारा तय की जाती हैं, इसलिए उसकी कमियों को राज्य सरकारें भरती हैं। मैंने मांग की है कि किसानों के हितों की रक्षा के लिए केन्द्र एमएसपी की गारंटी का कानून लाए। यह भी रोचक बात है कि जब नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब वे एमएसपी की गारंटी के समर्थक थे और किसानों के हितों की गारंटी सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय कानून चाहते थे। लेकिन अब उन्होंने 360 डिग्री ले ली है। इसीलिए मैं उन्हें धोखेबाज कहता हूं।
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