राजस्थान चुनाव से पहले पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया की लगातार अपनी भूमिका स्पष्ट करने की मांग के बावजूद पार्टी आलाकमान की तरफ से उन्हें विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कोई अहम भूमिका नहीं देने से चर्चा शुरू हो गई है कि आलाकमान ने उनके बारे में अपना मन बना लिया है। हालांकि, राजे ने पिछले कुछ महीनों के दौरान पार्टी के आला नेताओं के साथ लगातार संबंध सुधारने का प्रयास किया है। राज्य में चुनाव से जुड़ी दो अहम समितियों- प्रदेश संकल्प पत्र समिति और चुनाव प्रबंधन समिति में जगह नहीं दिए जाने के बावजूद सार्वजनिक तौर पर अपनी नाराजगी तक व्यक्त नहीं की है।
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पिछले कुछ विधानसभा चुनावों में सुराज संकल्प यात्रा हो या फिर बीजेपी की परिवर्तन यात्रा या फिर कोई अन्य चुनावी यात्रा, उन तमाम यात्राओं में मुख्य भूमिका में रहने वाली वसुंधरा राजे सिंधिया इस बार राजस्थान में पार्टी द्वारा अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ चलाई जा रही चार परिवर्तन यात्राओं में हाशिये पर दिखीं। इस बार राजस्थान में बीजेपी ने जब प्रदेश के अलग-अलग इलाकों से चार अलग-अलग परिवर्तन यात्राएं शुरू की तो वसुंधरा राजे वहां केंद्रीय नेताओं के साथ मंच पर तो नजर आईं लेकिन बाद में उन्होंने इन यात्राओं से दूरी ही बना कर रखी।
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हालांकि इसके पीछे उनके व्यक्तिगत पारिवारिक मसलों को भी बड़ा कारण बताया जा रहा है। वसुंधरा राजे सिंधिया की बहू जानलेवा बीमारी से पीड़ित हैं और गंभीर हालत में दिल्ली में उनका इलाज चल रहा है और इसलिए उन्हें दिल्ली में भी रहना पड़ रहा है। इसके बावजूद बीजेपी आलाकमान के रुख और दिल्ली से राजस्थान जा रहे पार्टी नेताओं के बयान से यह साफ नजर आ रहा है कि एक जमाने में राजस्थान की राजनीति में बीजेपी का पर्याय बन चुकी वसुंधरा राजे सिंधिया को इस बार पार्टी में अपनी भूमिका तक स्पष्ट करवाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है और यह हालत तब है जब अपने जन्मदिन की रैली, धार्मिक यात्रा और अन्य कार्यक्रमों के जरिए वह न केवल अपनी ताकत दिखा रही है बल्कि अपने बयानों से भी अपनी दावेदारी जता रही हैं।
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यह तथ्य भी सर्वविदित है कि सत्ता से बाहर होने और लंबे समय से आला नेताओं की बेरुखी का सामना करने के बावजूद वसुंधरा राजे सिंधिया आज भी राज्य की 200 विधानसभा सीटों में से 60-70 सीटों पर चुनाव हराने का दम-खम रखती हैं। जाट, राजपूत और गुर्जर मतदाताओं पर अच्छी खासी पकड़ रखने वाली वसुंधरा राजे राज्य की महिला मतदाताओं में भी काफी लोकप्रिय हैं।
बीजेपी को भी उनकी लोकप्रियता और राजनीतिक ताकत का बखूबी अंदाजा है। इसलिए उन्हें लगातार मैनेज करने का प्रयास भी किया जा रहा है। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह और जे.पी. नड्डा के कार्यक्रमों में उन्हें मंच पर जगह दी जा रही है। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब दिल्ली में राजस्थान के सांसदों के साथ बैठक की थी तो उन्हें सांसद नहीं होने के बावजूद उस बैठक में आमंत्रित किया गया था।
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लेकिन वसुंधरा राजे सिंधिया की बार-बार मांग के बावूजद उनकी भूमिका को स्पष्ट नहीं करके पार्टी ने यह राजनीतिक संदेश तो दे ही दिया है कि वरिष्ठता और लोकप्रियता का सम्मान है लेकिन पार्टी कर्नाटक की तर्ज पर बदलाव का मन बना चुकी है। ज्यादातर सीटों पर पार्टी नए उम्मीदवारों को टिकट देगी। कई सांसदों को भी विधायकी में उतारने का मन बना लिया गया है और इसके लिए पार्टी कोई भी जोखिम लेने को तैयार है।
इस बीच चर्चा है कि बीजेपी राजस्थान विधानसभा चुनाव के मद्देनजर अपने उम्मीदवारों की पहली सूची अगले सप्ताह जारी कर सकती है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विपरीत बीजेपी राजस्थान में सिर्फ कमजोर सीटों पर ही उम्मीदवारों के नाम का ऐलान नहीं करेगी, बल्कि मजबूत सीटों के लिए भी अपने उम्मीदवार घोषित करेगी।
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बीजेपी सूत्रों के मुताबिक, जयपुर में 25 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली के बाद अगले सप्ताह दिल्ली में राजस्थान को लेकर बीजेपी की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक संभावित है। इसके बाद पार्टी राज्य के लगभग 50 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर सकती है। सूत्रों के मुताबिक, पार्टी राजस्थान में 'ए' केटेगरी की सबसे मजबूत 29 सीटों के साथ ही 'डी' कैटेगरी की सबसे कमजोर मानी जाने वाली 19 सीटों पर भी उम्मीदवारों के नाम की घोषणा कर सकती है।
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