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राजस्थान: भजन के 'बैंड' के पत्ते अपनी मर्जी से कुछ कर ही नहीं सकते और वसुंधरा के सुर तो बदले, पर परीक्षा बाकी

दो बातें ध्यान देने वाली हैंः एक, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे मंत्रियों के शपथ लेने वाले समारोह से नदारद रहीं; दो, राजे के गृह जिले- झालावाड़ से इस दफा अब तक कोई मंत्री नहीं है।

भजन के 'बैंड' के पत्ते अपनी मर्जी से कुछ कर ही नहीं सकते और वसुंधरा के सुर तो बदले, पर परीक्षा बाकी।
भजन के 'बैंड' के पत्ते अपनी मर्जी से कुछ कर ही नहीं सकते और वसुंधरा के सुर तो बदले, पर परीक्षा बाकी। 

दूरी बनाए हैं, आप भी रखिए...

पांच में से तीन विधानसभा चुनाव जीतने के बाद बीजेपी अपना डंका बजवा रही है। इनमें मुख्यमंत्रियों को 'थोपे जाने' में जो देर हुई, वह तो हुई ही, मंत्रिमंडल गठन को हरी झंडी दिखाने से पहले भी काफी नाक रगड़ाई हुई। एक बात तो साफ हो गई कि दिल्ली के बिना पत्ता भी नहीं हिल सकता। मुख्यमंत्रियों-मंत्रियों के रूप में जिन पत्तों को चुना गया, उनके भरोसे कहा गया कि शिवराज के बाद जिस तरह वसुंधरा के पर कतरे गए हैं, उनके कई संदेश हैं; पहले के मुख्यमंत्रियों के लोगों को औकात में रखा गया है; जातीय संतुलन क्या खूब साधा गया है आदि-इत्यादि।

लेकिन इन सबसे अलग एक संदेश और है। वह यह कि मुसलमानों के लिए मंत्रिमंडल में कोई जगह नहीं है। भले ही यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर भी तलवार लटके होने की जब-तब खबरें आती हों, उन्होंने अपनी हिन्दुत्ववादी छवि के बावजूद कम-से-कम दानिश आजाद अंसारी को तो अल्पसंख्यक कल्याण, हज और वक्फ राज्यमंत्री बना रखा है। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में तो ऐसी कोई जगह किसी को नहीं मिली है। देखना होगा कि आने वाले दिनों में नरेन्द्र मोदी-अमित शाह और क्या कदम उठाते हैं।

दो बातें वैसे भी ध्यान देने वाली हैंः एक, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे मंत्रियों के शपथ लेने वाले समारोह से नदारद रहीं; दो, राजे के गृह जिले- झालावाड़ से इस दफा अब तक कोई मंत्री नहीं है। झालावाड़ में आठ विधानसभा क्षेत्र हैं। झालावाड़ लोकसभा सीट से राजे के बेटे दुष्यंत सिंह सदस्य हैं। सवाल यह भी है कि क्या दुष्यंत को इस बार भी चुनाव लड़ने का मौका मिल पाएगा?

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दुबे बनकर रह गए

एक हैं बाबा बालकनाथ। नाम तो आप जान ही गए होंगे, इनके वीडियो भी देख लिए होंगे। मीडिया में एक वक्त तो उन्हें मुख्यमंत्री तक बताया जाने लगा था। वजह शायद यह थी कि वह तब ही 56 इंच-जैसा सीना लेकर जयपुर में मीट-मछली-अंडे की खुले में दुकानें हटवाने के लिए निगम के उड़नदस्ते माफिक काम करने लगे थे जब उन्होंने सिर्फ विधायकी का चुनाव जीता था, अभी शपथ भी नहीं ली थी। उन्हें लगा कि इस काम में इतना नाम हो रहा है- बदनाम हुए तो क्या, नाम न हुआ- तो क्यों न मंत्रिमंडल गठन से पहले भी इसे दोहरा दिया जाए, ताकि शायद असर हो जाए। लेकिन कुछ नहीं हुआ।

बेचारे बालक के नाथ का पूजा-पाठ काम न आया और उन्हें मंत्रिमंडल में भी जगह नहीं मिली। यह हाल तब है जबकि वह सांसद थे और वहां से इस्तीफा देकर उन्हें विधानसभा चुनाव लड़वाया गया है। यादव होने का उनका कार्ड भी काम नहीं आया। वह उसी नाथ संप्रदाय के राजस्थान में मठ के प्रमुख हैं जिसके योगी आदित्यनाथ हैं। 40 वर्षीय बाबा हरियाणा के रोहतक में बाबा मस्तनाथ यूनिवर्सिटी के कुलपति हैं।

अखिल भारतीय यादव महासभा के अध्यक्ष शैलेन्द्र यादव अब कह रहे हैं कि बाबा बालकनाथ या अन्य किसी यादव को मंत्री न बनाया जाना उनके समाज के साथ धोखाधड़ी है। वैसे, ऑल राजस्थान वैश्य फेडरेशन के अध्यक्ष एनके गुप्ता भी दुखी हैं कि सिर्फ एक जैन ओसवाल- गौतम डाक को मंत्री बनाकर वैश्य समुदाय को ठग लिया गया है जबकि इसने चुनावों में पूरी तरह भाजपा का साथ दिया था। इस समुदाय में जैन के साथ अग्रवाल, महेश्वरी के साथ अन्य व्यापारिक समुदाय आते हैं। जाटों, गुज्जरों और राजपूतों के नेता भी लोकसभा चुनावों में अपने-अपने समुदायों का हिसाब-किताब भाजपा से लेने की बात कर रहे हैं।

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लीजिए, यहां भी फ्रंट

यूपी में जब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने लखनऊ में गोमती रीवर फ्रंट बनवाया था। शहर से गुजरते हुए आपको दाएं-बाएं नदी में रंगीन फव्वारे दिख जाते थे। दूसरों की बनवाई चीजें भाजपा के सत्ताधीशों को नहीं सुहातीं, इसलिए योगी ने जांच बिठा दी। कुछ निकलना, होना-जाना तो था नहीं, सो योगी को निराशा ही हाथ लगी। फिर भी, इसे ठीक से मेन्टेन करने की सुध किसी को नहीं है।

राजस्थान में सरकार बदली है, तो निगाहें कोचिंग एजुकेशन हब कहे जाने वाले शहर- कोटा के चंबल रीवर फ्रंट पर है। यह अभी अक्तूबर में ही शुरू हुआ है और तीन महीने में ही लाखों लोग इसे देखने आए हैं। लखनऊ के गोमती रीवर फ्रंट की तरह ही यहां भी चंबल के दोनों किनारों को विकसित किया गया है। यह पिछले शहरी विकास मंत्री शांति धारीवाल के प्रयासों का फल है। धारीवाल ने आग्रह तो किया है कि नई सरकार को इसके विकास का दूसरा चरण आरंभ करना चाहिए क्योंकि यह आने वाले पर्यटकों के लिए नया आकर्षक केन्द्र है।

हां, वैसे, यहां देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की प्रतिमा भी लगी हुई है। इससे भाजपा के कुछ नेता परेशान बताए जाते हैं। इसलिए, सांस रोककर देखिए कि क्या होता है।

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पुरानी शराब, नई बोतल

राजनीतिक कारणों से अच्छे कामों को रोकना, पर अपना वक्त आने पर उसे ही दूसरे तरीके से लागू करना भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की आदत है। अशोक गहलोत जब मुख्यमंत्री थे, पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) को लेकर वह चिल्लाते रह गए। इस परियोजना पर काम होता, तो मध्य प्रदेश की पार्वती या पारा नदी और राजस्थान की काली सिंध नदी के पानी से राजस्थान के 12 जिलों के लोगों की सिंचाई और पीने के पानी की समस्याओं का समाधान हो गया होता।

पहले तो प्रधानमंत्री मोदी ने इस परियोजना में मदद का भरोसा दिया था, पर जैसी कि उनकी आदत है, वह इस पर चुप्पी साधे रहे। यही नहीं, केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री के तौर पर गजेन्द्र सिंह शेखावत ने भी इसमें रुचि नहीं दिखाई। चूंकि इसमें दो प्रदेशों का मसला जुड़ा है इसलिए इसे राष्ट्रीय प्रोजेक्ट का दर्जा देने पर केन्द्रीय मदद समेत कई सुविधाएं मिलतीं।

अब सरकार भाजपा के हाथ में है, तो इस दिशा में काम शुरू हो गया है। राजस्थान में मंत्रिमंडल गठन के बाद ही गजेन्द्र शेखावत ने अफसरों को बता दिया कि इस सिलसिले में मध्य प्रदेश के अफसरों से किस स्तर पर कैसे-क्या बात करनी है और अड़चनों को किस तरह दूर करना है। यह सब भी वह तब कर रहे थे जबकि अभी विभाग का बंटवारा भी नहीं हुआ था। किसी को दिक्कत भी नहीं क्योंकि पूरा प्रोजेक्ट बना-बनाया है। अब सिर्फ क्रेडिट लेना बाकी है।

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नए अतिथियों का स्वागत

बात पहली बार विधायक बनने वालों की नहीं। यहां सर्दियों में प्रवासी पक्षी हर साल आते हैं और इन पर निगाह रखने वाले पिछले दिनों चिंतित भी रहे थे कि अब कुछ पक्षी कम आ रहे हैं। लेकिन इस बार जैसलमेर में दक्षिण-पूर्वी साइबेरिया और उत्तरी चीन से अमूर बाज (अमूर फॉल्कन- फॉल्को अम्युरेंसिस) पहली बार यहां आए हैं। पक्षी प्रेमी राधेश्याम बिश्नोई के अनुसार, यह पक्षी सर्दियों में अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड और मणिपुर में आते रहे हैं, पर इस बार यहां आए हैं। उम्मीद है कि वे प्रजनन के बाद यहां से अफ्रीका चले जाएंगे। राजस्थान करीब 150 प्रवासी पक्षियों के साथ लगभग 500 एवियन प्रजातियों के लिए मुफीद रहा है। पर ये नए मेहमान हैं।

अमूर बाज का ध्यान खींचना इसलिए भी खास है कि 2012 में नगालैंड में इसका अवैध ढंग से शिकार किए जाने की बातें सामने आई थीं। पर्यावरण प्रेमियों ने तब जनचेतना फैलाने की मुहिम छेड़ी। इसका फल कम-से-कम यह हुआ कि इस तरह की इक्का-दुक्का घटनाओं की सूचना ही अब मिलती हैं। राधेश्याम बिश्नोई कहते हैं कि इन पक्षियों को भी लग गया होगा कि पूर्वोत्तर की तुलना में राजस्थान उनके लिए ज्यादा मुफीद है!

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