कोरोना महामारी का दुनिया पर क्या असर पड़ रहा है। क्या इससे वर्ल्ड ऑर्डर बदल रहा है? क्या पड़ोसी देशों के आपसी रिश्तों में विशेष फर्क पड़ रहा है। इन सभी मुद्दों पर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने पूर्व अमेरिकी राजनयिक और हार्वर्ड में डिप्लोमेसी के प्रोफेसर निकोलस बर्न्स के साथ बातचीत की।
राहुल गांधी: गुड मॉर्निंग, एम्बेसडर बर्न्स। कैसे हैं आप?
निकोलस बर्न्स: गुड मॉर्निंग, राहुल। आपको देखकर बहुत अच्छा लगा और आपको संयुक्त राज्य अमेरिका से सभी दोस्तों की तरफ से शुभकामनाएं।
राहुल गांधी: कैम्ब्रिज में स्थितियां कैसी हैं?
निकोलस बर्न्स: ठीक है, भारत की तरह हम लॉकडाउन में हैं और भारत एवं अमेरिका में यही माहौल है। हमारा देश अपने अस्तित्व को लेकर गंभीर संकट से जूझ रहा है। वास्तव में इसने हम सबको जकड़ रखा है।
राहुल गांधी: संयुक्त राज्य अमेरिका में जो चल रहा है, उसके बारे में आपका क्या सोचना है? ऐसी तस्वीरें सामने क्यों आ रही है?
निकोलस बर्न्स: संयुक्त राज्य अमेरिका में देश की स्थापना के समय से अफ्रीकी अमेरिकियों के साथ नस्ल और दुर्व्यवहार की समस्या थी। चाकरों का पहला जहाज 1619 में यहां आया था। मैसाचुसेट्स खाड़ी कॉलोनी बसाने के लिए इंग्लैंड से तीर्थयात्रियों के आने से एक साल पहले, जहां मैं अब रहता हूं। आप दास प्रथा के विरुद्ध लड़े गए हमारे गृह युद्ध के विषय में सोचिए। पिछले 100 वर्षों के हमारे सबसे महान अमेरिकी मार्टिन लूथर किंग जूनियर हैं। उन्होंने शांतिपूर्ण, अहिंसक लड़ाई लड़ी। जाहिर है आप जानते हैं, उनके आध्यात्मिक आदर्श महात्मा गांधी थे। उन्होंने ब्रिटिश शासन से भारत को मुक्त कराने वाले गांधी आंदोलन को आदर्श मानकर अपना शांतिपूर्ण और अहिंसक आंदोलन शुरू किया। लूथर ने हमें एक बेहतर देश बनने के लिए प्रेरित किया। हमने एक अफ्रीकी-अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को चुना, जिनका मैं काफी सम्मान करता हूं। अब नस्लभेद फिर वापस आता दिख रहा है। आप देखिए कि अफ्रीकी अमेरिकियों के साथ दुर्व्यवहार होता है, मिनेपॉलिस, मिनेसोटा में पुलिस द्वारा अफ्रीकी-अमेरिकी युवा जॉर्ज फ्लॉयड की नृशंस हत्या कर दी गई। लाखों अमेरिकी शांतिपूर्ण विरोध करने की कोशिश कर रहे हैं, भारत की तरह यहां ये हमारा अधिकार है। राष्ट्रपति उन सभी से आतंकवादियों की तरह बर्ताव करते हैं।
निकोलस बर्न्स: कई मायनों में भारत और अमेरिका एक जैसे हैं। हम दोनों ब्रिटिश उपनिवेश के शिकार हुए, हम दोनों ने अलग-अलग शताब्दियों में, उस साम्राज्य से खुद को मुक्त कर लिया। मैंने हमेशा भारत की प्रशंसा की है। मैंने हमेशा भारतीय समाज के बहुधर्मी बहु-धार्मिक पहलू की प्रशंसा की है। इसलिए देशों को कभी-कभी एक चर्चा और राजनीतिक बहस से गुजरना पड़ता है कि हम कौन हैं? हम किस तरह के राष्ट्र हैं? हम एक अप्रवासी राष्ट्र हैं, एक सहिष्णु राष्ट्र।
राहुल गांधी: मुझे लगता है कि हम एक जैसे इसलिए हैं, क्योंकि हम सहिष्णु हैं। आपने उल्लेख किया कि आप एक अप्रवासी राष्ट्र हैं। हम बहुत सहिष्णु राष्ट्र हैं। हमारा डीएनए सहनशील माना जाता है। हम नए विचारों को स्वीकार करने वाले हैं। हम खुले विचारों वाले हैं, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि वो अब गायब हो रहा है। यह काफी दुःखद है कि मैं उस स्तर की सहिष्णुता को नहीं देखता, जो मैं पहले देखता था। ये दोनों ही देशों में नहीं दिख रही।
निकोलस बर्न्स: मुझे लगता है कि आपने संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए कम से कम एक केंद्रीय मुद्दे की पहचान की है और यहां आशा की किरण और अच्छी खबर यह है कि हमारे यहां इस सप्ताह पूरे देश में, संयुक्त राज्य अमेरिका के हर प्रमुख शहर में सहिष्णुता, समावेशन, अल्पसंख्यक अधिकारों के आधार पर शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन करने वाले लोग हैं, ये सभी आवश्यक मुद्दे हमारे लोकतंत्र के मूल में हैं और मुझे लगता है कि चीन जैसे अधिनायकवादी देश के मुकाबले लोकतंत्रवादियों के पास फायदा है कि हम खुद को सही कर सकते हैं। स्वयं ही खुद को सही करने का भाव हमारे डीएनए में है।
लोकतंत्र के रूप में, हम इसे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव में मतपेटी के जरिए हल करते हैं। हम हिंसा की ओर नहीं मुड़ते। हम ऐसा शांति से करते हैं। वह भारतीय परंपरा ही है, जिसके कारण हम आपकी स्थापना के समय से ही भारत से प्यार करते हैं। 1930 के दशक के विरोध आंदोलन, नमक सत्याग्रह से 1947-48 तक। इसलिए मुझे लगता है कि मैं आपके देश पर टिप्पणी नहीं कर सकता, क्योंकि मैं इसे उतना नहीं जानता, लेकिन मेरे देश के बारे में बोल सकता हूँ कि हम वापस आ जाएंगे, हम अपने लोकतंत्र को मजबूत करेंगे।
राहुल गांधी: मुझे लगता है कि विभाजन वास्तव में देश को कमजोर करने वाला होता है, लेकिन विभाजन करने वाले लोग इसे देश की ताकत के रूप में चित्रित करते हैं।
जब अमेरिका में अफ्रीकी-अमेरिकियों, मैक्सिकन और अन्य लोगों को बाँटते हैं, उसी तरह भारत में हिंदुओं और मुसलमानों और सिखों को बांटते हैं, तो आप देश की नींव को कमजोर कर रहे होते हैं। लेकिन फिर देश की नींव को कमजोर करने वाले यही लोग खुद को राष्ट्रवादी कहते हैं।
निकोलस बर्न्स: मुझे लगता है कि राष्ट्रपति ट्रम्प लगभग ऐसे ही हैं। वह खुद को एक झंडे में लपेटते हैं। वो अकेले ही सब समस्याओं को ठीक करने की घोषणा करते हैं। राष्ट्रपति ट्रम्प कई मायनों में अधिनायकवादी हैं। लेकिन हमारे देश में संस्थान मजबूत बने हुए हैं। पिछले कुछ दिनों से सेना और वरिष्ठ सैन्य अधिकारी स्पष्ट कह रहे हैं कि हम अमेरिकी सैन्य टुकड़ियों को सड़कों पर नहीं उतारेंगे।
यह पुलिस का काम है, न कि सेना का। हम संविधान का पालन करेंगे। वरिष्ठ सैन्य अधिकारी जनरल मार्क मिले ने इस सप्ताह कहा कि, अमेरिकियों को विरोध करने का अधिकार है। उन्हें सरकार से असहमत होने का अधिकार है। यह काफी बुनियादी बातें हैं और यह मुझे आश्चर्यजनक लगता है कि हम इस पर बहस भी कैसे कर सकते हैं। लेकिन फिर यह लोकतंत्र को ताकत को उजागर करता है, जहाँ यह लगातार परीक्षण से गुजरता है। हम अपने मतभेदों को, राजनीतिक अभियानों या स्ट्रीट प्रोटेस्ट में सामने रखते हैं, लेकिन कम से कम हम ऐसा कर सकते हैं। चीन और रूस में अधिनायकवाद वापस आ रहा है। हम लोकतांत्रिक हैं, अपनी स्वतंत्रता के कारण हमें कभी-कभी दर्द से गुजरना पड़ सकता है, लेकिन हम उनकी वजह से बहुत मजबूत हैं। अधिनायकवादी देशों के मुकाबले यही हमारा फायदा है।
राहुल गांधी: जब हम भारत और अमेरिका के बीच संबंधों को देखते हैं, तो पिछले कुछ दशकों में बहुत प्रगति हुई है। लेकिन जिन चीजों पर मैंने गौर किया है, उनमें से एक यह है कि जो साझेदारी का सम्बन्ध हुआ करता था, वो शायद अब लेन-देन का ज्यादा हो गया है। यह काफी हद तक लेन-देन को लेकर प्रासंगिक हो गया है। और फिर एक ऐसा संबंध जो शिक्षा, रक्षा, स्वास्थ्य देखभाल जैसे कई मोर्चों पर बहुत व्यापक हुआ करता था, उसे अब मुख्य रूप से रक्षा पर केंद्रित कर दिया गया है। आपके अनुसार भारत और अमेरिका के बीच संबंध किस मोड़ पर हैं?
निकोलस बर्न्स: अमेरिकी दृष्टिकोण से अभी हमारे देश में दिलचस्प स्थिति है, हमारे यहाँ में डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकन के बीच बहुत कम सहमति है। लेकिन मुझे लगता है कि हमारे दोनों राजनीतिक दलों में लगभग सार्वभौमिक समर्थन है कि अमेरिका का भारत के साथ बहुत करीबी, सहायक और समग्र संबंध होना चाहिए। हम विश्व के दो सबसे बड़े लोकतंत्र हैं। मैं कहूंगा कि हम विश्व के दो सबसे महत्वपूर्ण लोकतंत्र हैं। इस रिश्ते की सबसे मजबूत कड़ी भारतीय-अमेरिकी समुदाय है। यह अमेरिका में एक असाधारण समुदाय है। आप जानते हैं 1970-80 के दशक में बहुत से वैज्ञानिक-इंजीनियर यहां ठहरने लगे। हमारे अस्पतालों में डॉक्टर बनने लगे।
अब हमारे सदन में वरिष्ठ राजनेता, राज्यों में गवर्नर्स, सीनेटर हैं, जो भारतीय-अमेरिकी हैं, हमारे जीवन के हर पहलू में भारतीय-अमेरिकी हैं। कैलिफ़ोर्निया में हमारी कुछ प्रमुख टेक कंपनियों के सीईओ भारतीय-अमेरिकी हैं। इस समुदाय में परिपक्वता रही है और यह दोनों देशों के बीच गहरा नाता है। इसलिए मुझे बहुत उम्मीद है कि न केवल हमारी सरकारें बल्कि अमेरिका और भारत, हमारे समाज बहुत बारीकी से परस्पर जुड़े हुए हैं, संघटित हैं और यह एक बड़ी ताकत है। यदि आप सोचते हैं कि हमारे सामने आने वाली चुनौतियों में से एक अधिनायकवादी देशों की शक्ति है। मैंने चीन और रूस का उल्लेख किया है। हम कभी भी लड़ना नहीं चाहते, हम युद्ध नहीं चाहते हैं लेकिन हम अपने जीने के तरीके और विश्व में अपनी स्थिति की रक्षा करना चाहते हैं। इसलिए मैं हमारे बारे में बहुत सोचता हूं, मुझे लगता है कि हमारे दोनों देशों के बीच सम्बन्ध इस लिहाज से इतने महत्वपूर्ण हैं।
राहुल गांधी: मुझे लगता है कि भारतीय अमेरिकी समुदाय दोनों देशों के लिए एक वास्तविक संपत्ति है। यह एक साझी संपत्ति है। यह एक अच्छा नाता है। इसको लेकर आगे कैसे बढ़ा जा सकता है?
निकोलस बर्न्स: मुझे लगता है कि आपने पहले कुछ कहा है। हमारा सैन्य संबंध बहुत मजबूत है। यदि आप बंगाल की खाड़ी और पूरे हिंद महासागर क्षेत्र में अमेरिका-भारत नौसेना और वायु सेना के परस्पर सहयोग के बारे में सोचें, तो हम वास्तव में एक साथ हैं और मुझे इसलिए ही उम्मीद है। लेकिन आप सही हैं, यह सिर्फ उसी के बारे में नहीं हो सकता। इसलिए मेरी सलाह होगी कि एक दूसरे के लिए दरवाजे खुले रखें, दोनों देशों के बीच लोगों की आवाजाही पर प्रतिबंध कम करें। मुझे लगता है कि बहुत सारे विद्यार्थी और उच्च तकनीक वाले भारतीय कारोबारी एच -1 बी वीजा पर अमेरिका आते हैं। वे हाल के वर्षों में काफी कम हो गए हैं। हमारे पास अपनी अर्थव्यवस्था को चलाने के लिए अमेरिका में पर्याप्त इंजीनियर नहीं हैं और भारत उन इंजीनियरों की आपूर्ति कर सकता है। मैं चाहूंगा कि दिक्कतें कम हो। मैं लोगों की आवाजाही, विश्वविद्यालय के आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करूंगा और निश्चित रूप से दुनिया भर में लोकतंत्र के प्रचार, विज्ञान और सार्वजनिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर एक साथ काम करने के लिए प्रोत्साहित करूंगा। यदि भविष्य में कोई महामारी आए, जिसकी संभावना है, तो दोनों देश मिलकर अपने समाज के गरीब लोगों के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं। मैं हमारे रिश्ते को उस दिशा में भी जाते देखना चाहूंगा।
राहुल गांधी: अगर मैं संयुक्त राज्य अमेरिका के इतिहास को देखता हूं और पिछली शताब्दी की ओर देखता हूँ। मुझे बड़े विचार दिखाई देते हैं। मैं मार्शल प्लान देखता हूं। मैं देखता हूं कि उदाहरण के लिए अमेरिका ने जापान के साथ कैसे काम किया, कोरिया के साथ कैसे काम किया। ये समाज बदल गए। मुझे वैसा अब नहीं नजर आता। मैं आपसे स्पष्ट कहूंगा। मुझे अमेरिका से आने वाली वो परिवर्तनकारी दृष्टि नजर नहीं आ रही। कोई अमेरिका से क्षेत्रीय विचारों की उम्मीद नहीं करता है, वैश्विक विचारों की अपेक्षा करता है।
निकोलस बर्न्स: यह सच में एक बड़ा विचार है। मुझे याद है कि हम प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ मिलकर काम कर रहे थे। जब मैं भारत सरकार के साथ काम कर रहा था, तो हमारा संबंध वास्तव में व्यापार पर केंद्रित था, यह सैन्य संबंध पर केंद्रित था और हम हमेशा आपके बड़े विचार की खोज कर रहे थे। आप सही हैं, क्योंकि हमारी लोकतांत्रिक परम्पराओं के रूप में हमारे पास बेशकीमती सम्पत्ति है।
मुझे अब भी लगता है कि दुनिया में मानव स्वतंत्रता, लोकतंत्र और लोगों के शासन को बढ़ावा देने के लिए भारतीयों, अमेरिकियों और हमारी सरकारों के लिए एक रास्ता खोजना है। मुझे लगता है कि यह एक शक्तिशाली विचार है जो भारतीयों और अमेरिकियों को दुनिया के बाकी हिस्सों में एक साथ ला सकता है। हम चीन के साथ संघर्ष नहीं चाह रहे हैं, लेकिन हम एक तरह से चीन के साथ विचारों की लड़ाई लड़ रहे हैं।
हम खुद को चीन से अलग नहीं रख सकते। मैं इस पर आपके विचार सुनना चाहूंगा।
राहुल गांधी: मैं बिना हिंसा के सहकारी प्रतिस्पर्धा का पक्षधर हूं। उनके पास एक अलग वैश्विक दृष्टि है, जो अधिनायकवादी है। हमारा लोकतांत्रिक वैश्विक दृष्टिकोण है और मुझे पूरा विश्वास है कि लोकतांत्रिक दृष्टिकोण बेहतर रहेगा।
इसे हासिल करने के लिए हमें अपने देशों से शुरुआत करनी होगी। आंतरिक रूप से हमारा स्वरुप अधिनायकवादी नहीं हो सकता है और फिर वो दृष्टिकोण बनाया जाए। उस दृष्टिकोण को लोकतंत्र की नींव से ही, हमारे देशों के भीतर से ही खड़ा किया जाना चाहिए। यहीं मुझे समस्या दिखाई देती है। हमारे लिए लोकतंत्र के बारे में कोई तर्क देना बहुत मुश्किल हो जाता है, जब हमारे संस्थानों को कमजोर किया जा रहा है, जब हमारे लोग डरते हैं, जब हमारे देश के लाखों लोग घबरा जाते हैं कि उनके साथ क्या होने वाला है।
इसलिए, हमारे दृष्टिकोण से आपकी और हमारी सबसे महत्वपूर्ण लड़ाई, वास्तव में हमारे देशों के उस गौरव को वापस लाना है। जहाँ हम अपनी संस्कृति को अपनाते हैं, जहां हम अपने अतीत को अपनाते हैं, जहां हम अपने लोगों को अपनाते हैं। और उस आक्रामक राजनीति के विरोध में मरहम लगाने की कोशिश करते हैं, जिसमें हम फंस गए हैं।
निकोलस बर्न्स: हाँ, मुझे लगता है कि यह एक बहुत ही दिलचस्प बात है। मुझे लगता है कि भारत और अमेरिका एक साथ काम कर सकते हैं। जैसा कि आप चीन से लड़ने के लिए नहीं, बल्कि इसे कानून के शासन का पालन करने के लिए कहते हैं, क्योंकि हम इस दुनिया में एक साथ रहने की कोशिश करते हैं।
राहुल गांधी: इस कोविड संकट में आपको ऐसा क्यों लगता है, मैं भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका सहित अधिकांश देशों के लिए यह कहता हूं, कि कोई सहयोग नहीं किया गया है?
निकोलस बर्न्स: हमने इस बारे में पहले बात की है। मुझे काफी निराशा है। मुझे यकीन है कि आपको भी होगी। यह संकट G20 के लिए बना था। यह प्रधान मंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग और डोनाल्ड ट्रम्प के लिए एक साथ काम करने के लिए एक अवसर था- वैश्विक भलाई के लिए। हम सभी ने इसका सामना किया है, हर भारतीय और अमेरिकी इस बीमारी की चपेट में है। मैंने संकट की शुरुआत में अनुमान लगाया कि देशों ने अपने मतभेदों को कम किया होगा और वैक्सीन पर काम करने के लिए साथ आए होंगे या उसके समान वितरण पर विचार कर रहे होंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ है। क्योंकि, डोनाल्ड ट्रंप अंतरराष्ट्रीय सहयोग में भरोसा नहीं करते। वो एकतरफा हैं। वो अमेरिका को दुनिया में अकेले रखना चाहते हैं। शी जिनपिंग भी ट्रंप की तरह हैं। यहां तक कि अमेरिका और चीन भी इस समस्या के केंद्र में हैं। मुझे उम्मीद है कि जब अगला संकट आएगा, तो अधिक प्रभावी तरीके से एक साथ काम करना बेहतर होगा।
राहुल गांधी: ये वैसा ही है। यूरोप में भी ऐसा ही है। मेरा मतलब है कि जर्मनी, इटली, यूनाइटेड किंगडम के बीच वही विरोधाभास है, जो बाकी दुनिया में है। इसलिए दुनिया में कुछ ऐसा हो रहा है, जहां लोग अपने आप में एक होते जा रहे हैं, समझदारी बनती जा रही है और मुझे लगता है कि कोविड संकट ने इसमें तेजी ला दी है।
कुछ दिनों पहले मैंने भारत के एक बड़े व्यवसायी के साथ इसी तरह की बातचीत की थी। उन्होंने मुझे बताया कि उनके दोस्तों ने मुझसे बात करने के लिए उन्हें मना किया और कहा कि मुझसे बात करना उनके लिए नुकसानदेह होगा। इसलिए डर का माहौल तो है। आप एकतरफा फैसले लेते हैं, दुनिया में सबसे बड़ा और कठोर लॉकडाउन करते हैं। आपके पास लाखों दिहाड़ी मजदूर हैं, जो हजारों किलोमीटर पैदल घर लौटते हैं। तो यह एकतरफा नेतृत्व है, जहां आप आते हैं, कुछ करते हैं और चले जाते हैं। यह बहुत विनाशकारी है। यह बहुत विनाशकारी है। लेकिन यह समय की बात है, जो दुर्भाग्यपूर्ण है। यह हर जगह है और हम इससे लड़ रहे हैं।
निकोलस बर्न्स: पूरी दुनिया के लिए ये मुश्किल समय है। एक प्रमुख राजनीतिक दल के रूप में भी मुश्किल समय है। मुझे लगता है कि आप अभी भी आशान्वित हैं?
राहुल गांधी: मैं सौ प्रतिशत आशान्वित हूं। मैं आपको बताता हूँ कि मैं क्यों आशान्वित हूँ। क्योंकि मैं अपने देश के डीएनए को समझता हूं। मैं जानता हूं कि हजारों वर्षों से मेरे देश का डीएनए एक प्रकार का है और इसे बदला नहीं जा सकता। हाँ, हम एक खराब दौर से गुजर रहे हैं। कोविड एक भयानक समय है, लेकिन मैं कोविड के बाद नए विचारों और नए तरीकों को उभरते हुए देख रहा हूँ। मैं लोगों को पहले की तुलना में एक-दूसरे का बहुत अधिक सहयोग करते हुए देख सकता हूं। अब उन्हें एहसास हुआ कि वास्तव में संघटित होने के फायदे हैं। एक-दूसरे की मदद करने के फायदे हैं। इसलिए वो ऐसा कर रहे हैं। आपके अनुसार कोविड सत्ता के संतुलन को कैसे आकार देने जा रहे हैं? आपके हिसाब से अमेरिका, चीन, रूस, भारत के बीच क्या होने वाला है? कोविड का क्या असर होगा?
निकोलस बर्न्स: जलवायु परिवर्तन या महामारी जैसे मुद्दों पर हमने वैश्विक राजनीतिक प्रतिस्पर्धा को अलग रखा है। ये मुद्दे सभी के लिए अस्तित्व से जुड़े हैं। वे दुनिया के प्रत्येक व्यक्ति यानि 7.7 बिलियन लोगों को एकजुट करते हैं। हमें वैश्विक राजनीति का भविष्य चाहिए। भले ही , हम प्रतिस्पर्धा करने जा रहे हैं। चीन और अमेरिका, भारत और अमेरिका।
लेकिन हमें विश्व को संरक्षित करने की आवश्यकता है। हम दुनिया भर के लोगों की ओर से एक साथ काम कर सकते हैं और उन लोगों को कुछ उम्मीद दे सकते हैं कि सरकार के रूप में हम उनकी मदद कर सकते हैं। कोविड के साथ यही चुनौती है। पिछले वर्षों से हमारे सामने SARS, H1N1, इबोला और अब कोरोनवायरस है। पिछले 17 वर्षों में चार महामारी। अगले चार या पाँच वर्षों में हमारे पास एक और महामारी होगी। क्या हम एक वैश्विक समुदाय के रूप में अधिक प्रभावी ढंग से इसका सामना कर सकते हैं? क्या हम साथ काम कर सकते हैं? यह बड़ी चुनौती है, जिसे मैं कोविड के जरिए बाहर आते देख रहा हूं।
राहुल गांधी: शक्ति संतुलन के संदर्भ में। क्या आपको लगता है कि यह किसी भी तरह से शिफ्ट होने वाला है या यह वही रहने वाला है? आपके हिसाब से क्या होने वाला है।
निकोलस बर्न्स: अभी बहुत से लोग कह रहे हैं कि चीन आगे निकलने वाला है। कोरोनावायरस की लड़ाई में चीन जीत रहा है, यह दिल और दिमाग पर छा रहा है। मैं वास्तव में ऐसा नहीं देख रहा हूं। चीन निश्चित रूप से दुनिया में असाधारण शक्ति है। संभवतः अमेरिका के सैन्य, आर्थिक, राजनीतिक रूप से अभी तक नहीं के बराबर है, लेकिन इसके बारे में कोई सवाल नहीं उठा रहा है। भारत और अमेरिका जैसे लोकतांत्रिक देशों के मुकाबले चीन के पास खुलापन और नए विचार की कमी है। चीन के पास एक भयभीत नेतृत्व है, भयभीत लोग हैं, जो अपने ही नागरिकों पर शिकंजा कसकर अपनी शक्ति को बनाए रखने की कोशिश करते हैं। उदाहरण के लिए झिंजियांग, उइगर और हांगकांग में क्या हो रहा है। मैं भारत और अमेरिका के भविष्य को लेकर आशान्वित हूं। मुझे चिंता है कि चीन का सिस्टम मनुष्य की आजादी और उदारता के लिहाज से चीनी लोगों की इच्छाओं को समायोजित करने के लिए पर्याप्त लचीला नहीं है। इसलिए मैं आपकी तरह लोकतंत्र का पक्षधर हूं। मुझे विश्वास है कि लोकतंत्र इन परीक्षणों से बच जाएगा। राहुल आपके लिए एक आखिरी सवाल है। यह राजनीति को बदल रहा है।आप अभी बाहर नहीं जा सकते हैं और लोगों से हाथ नहीं मिला सकते। आप भीड़ से बात नहीं कर सकते।
राहुल गांधी: मैं हाथ तो नहीं मिला रहा लेकिन मास्क और सुरक्षा के साथ लोगों से मिलता हूं। क्योंकि सार्वजनिक सभाएँ संभव नहीं हैं और यहाँ ये राजनीति के लिए संजीवनी है। सोशल मीडिया और ज़ूम के जरिए काफी बातचीत हो रही है। इसके कारण राजनैतिक क्षेत्र में कुछ आदतें निश्चित ही बदलने जा रही है।
भारत में, जिस तरह से लॉकडाउन किया गया था, उसके कारण मानसिकता बदल गई है। काफी डर वाला माहौल है। लोगों का मानना है कि वायरस एक बहुत गंभीर बीमारी है जो यह है, लेकिन ये मान बैठे हैं कि यह एक घातक बीमारी है। वायरस के साथ धीरे-धीरे इनको भी दूर किया जाना चाहिए। डर का यही भाव होता है।
निकोलस बर्न्स: मैं बस यह कहना चाह रहा था कि हमारी लड़ाई सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखने के लिए है, भारत की तरह लोगों को मास्क पहनने के लिए मनाने की कोशिश करना है। क्योंकि अमेरिका में लोग इसे छोड़ना शुरू कर रहे हैं। आमतौर पर युवा लोग। मुझे लगता है कि विश्वविद्यालय को बंद रखना लोगों की सुरक्षा करना है और इसलिए इस तरह के बंद के लिए अनुशासन रखना भविष्य में महत्वपूर्ण है।
राहुल गांधी: बेहतरीन बातचीत के लिए आपको धन्यवाद। यहाँ आने पर जरूर मिलें।
निकोलस बर्न्स: मैं निश्चित ही आपसे और आपके परिवार से मिलने आऊंगा
राहुल गांधी: बहुत-बहुत धन्यवाद।
Published: 12 Jun 2020, 12:26 PM IST
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Published: 12 Jun 2020, 12:26 PM IST