चुनाव लड़ रही विभिन्न पार्टियों के कई उम्मीदवारों को डोर-टु-डोर प्रचार अभियान के दौरान लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है। जो नेता रैलियों में अपनी बातें सुनाकर लोगों के सवालों से बच निकलते थे या सीमित प्रचार कर बच निकलते थे और जीत के बाद फिर पांच साल तक दर्शन नहीं देते थे, उन्हें भी कोरोना के कारण निर्वाचन आयोग के प्रतिबंधों की वजह से इस दफा जनता के सामने अपने पिछले पांच साल के रिपोर्ट कार्ड पेश करने पड़ रहे हैं।
वरिष्ठ अकाली नेता और पूर्व केन्द्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री हरसिमरत कौर बादल से बठिंडा में प्रचार के दौरान कुछ युवाओं ने सीधे सवाल किए। हालांकि कृषि-व्यापार कानूनों की वजह से अकाली दल ने केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार से समर्थन वापस ले लिया और वह सरकार से बाहर हो गई, फिर भी लोग इतने वर्षों का हिसाब- किताब लेना चाह रहे थे। वैसे, हरसिमरत बादल ने यह कहकर पीछा छुड़ाया कि ‘यह वोट देने का वक्त है, सवाल-जवाब करने का नहीं।’
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भाजपा नेताओं से भी लोग जगह-जगह सवाल पूछ रहे हैं। भाजपा पंजाब में उतनी प्रभावी नहीं है और कुछेक सीट पर ही उसका असर है। उसे इन चुनावों में भी ज्यादा सीटों की उम्मीद नहीं है। फिर भी, वह प्रचार तो कर ही रही है। केन्द्र में उसकी सरकार है और कृषि-व्यापार कानून भले ही वापस हो गए हों, लोगों में गुस्सा तो है ही। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भले ही सुरक्षा कारणों के नाम पर वापस हो गए, यह तो सच है ही कि फिरोजपुर में वह जिस पार्टी रैली को संबोधित करने जा रहे थे, वहां भीड़ नहीं जुट पाई थी। इससे लोगों का मूड समझा जा सकता है। ऐसे में, पार्टी के पंजाब अध्यक्ष अश्विनी शर्मा जब पठानकोट में प्रचार कर रहे थे, तो उन्हें लोगों के सवालों का जवाब देने में पसीने छूट गए। वैसे, बाद में भाजपा ने दावा किया कि विरोध कर रहे लोग कांग्रेस के थे।
वरिष्ठ पत्रकार प्रभजोत सिंह राजनीति में आई इस तेज गिरावट को चिंता का विषय मानते हैं। उन्होंने कहा, ‘लोग राजनीतिज्ञों के चेहरे नहीं देखना चाहते, उनकी जानी-पहचानी-पुरानी बातें नहीं सुनना चाहते और उन पर यकीन भी नहीं करते क्योंकि वे जानते हैं कि राजनीतिज्ञ मौसमी चिड़िया हैं जिन्हें सिर्फ अपने स्वार्थ से मतलब है और मतलब निकल जाने के बाद वे जनता को भूल जाते हैं। वैसे, यह पुरानी बात है लेकिन इस बार तो इन्हें जनता से मिलना-जुलना पड़ ही रहा है। लेकिन ऐसे भी विधायक-सांसद हैं जो अपने क्षेत्रों में घूमते रहे हैं और गाढ़े वक्त में लोगों के साथ खड़े रहते हैं।’
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इस तरह का ट्रेन्ड यह भी बताता है कि सांसदों-विधायकों ने अपना स्तर भी कितना गिरा लिया है। लुधियाना में एनिमल एक्टिविस्ट डॉ. सदीप जैन कहते हैं कि आज के युवा राजनीतिज्ञों के ‘खोखले’ और आकर्षक वायदों के जाल में फंसने वाले नहीं हैं क्योंकि अधिकतर सूचनाएं सार्वजनिक होती गई हैं और सोशल मीडिया तत्काल ही सब बातें सबके सामने ला दे रही है। लोग राजनतिज्ञों से सीधे जानना चाहते हैं कि उन्होंने क्या काम किया, वे जमीन पर दिखाएं। जालंधर निवासी राजीव भास्कर कहते हैं कि लोग विकल्प की तलाश कर रहे हैं- जो काम नहीं करेगा, उसे बाहर होना होगा।
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