विधानसभा चुनाव के मद्देनजर आम आदमी को लुभाने के लिए पंजाब में कथित दिल्ली शिक्षा मॉडल को सामने रखने की आम आदमी पार्टी पूरी कोशिश कर रही है। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने यह तक चुनौती दी कि पंजाब और दिल्ली के सरकारी स्कूलों की एक साथ जांच-परख कर ली जाए। पंजाब के शिक्षा मंत्री परगट सिंह अंतरराष्ट्रीय हॉकी में जाने-पहचाने नाम रहे हैं। वह जब खेलते थे, तब दुनिया के सबसे अच्छे डिफेन्डरों में माने जाते थे। नवजीवन के लिए संयुक्ता बसु से फोन पर हुई बातचीत में उन्होंने कहा कि राजनीतिक बयानबाजी और ड्रामेबाजी की जगह वास्तविक पड़ताल के लिए वह हर वक्त तैयार हैं। बातचीत के अंशः
दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने पहली दिसंबर को पहले से सूचना दिए बगैर पंजाब के दो सरकारी स्कूलों का दौरा किया और वहां कथित रूप से ‘खराब इंफ्रास्ट्रक्चर’ को लेकर सवाल उठाए। उसके बाद आपने प्रेस कांफ्रेंस भी की। आखिर हुआ क्या?
वे लोग गुंडागर्दी के स्तर तक पर उतर आए। वे राजनीति के लिए कुछ स्कूलों में जबरन घुस आए। वहां परिसर में छोटे-छोटे बच्चे थे, तो प्रिंसिपल ने आपत्ति जताई लेकिन उन्होंने किसी की एक न सुनी। वे जबरन घुसे, कुछ फोटो खींचे और चीजों को गलत ढंग से पेश किया। यह तरीका नहीं है। मैं भी दिल्ली के 10 स्कूलों में जा सकता हूं और गंदे टॉयलेट वगैरह की फोटो खींच सकता हूं। मुझे लगा कि ये शिक्षित लोग हैं लेकिन ये इसी तरह राजनीतिक प्रपंच करते हैं। मुझे आश्चर्य है कि ये किस तरह का शिक्षा मॉडल तैयार कर रहे हैं।
सिसोदिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री शिक्षकों से मिल-जुल रहे हैं और शिक्षा के क्षेत्र में दिल्ली जैसा माहौल देने को लेकर कई तरह के आश्वासन दे रहे हैं, वादे कर रहे हैं...
पहली बात तो यह कि दिल्ली और पंजाब की तुलना ही हास्यास्पद है। केजरीवाल एक म्युनिसिपैलिटी चला रहे हैं जहां बमुश्किल 2,000 स्कूल हैं जबकि पंजाब सीमाई राज्य है जिसके 19,000 से अधिक स्कूल हैं। ऐसे-ऐसे इलाके में स्कूल हैं जहां पहुंचने के लिए आपको नदी तक पार करना पड़ेगी और हमने सीमाई इलाके के स्कूलों के लिए विशेष कैडर की बहाली कर शिक्षा सुनिश्चित की है। दिल्ली महानगर है। आम आदमी पार्टी जो कर रही है, वह बेईमानी पर आधारित राजनीति है, सिर्फ इसलिए कि चुनाव नजदीक हैं। उन्हें शिक्षा मॉडल पर बात करने में कोई वास्तविक रुचि नहीं है। वे ऐसा करते हैं, तो हमें खुशी होगी क्योंकि हम एक-दूसरे से कुछ-न-कुछ बराबर सीख सकते हैं। मैंने सोचा कि सिसोदिया और अरविंद केजरीवाल नई पीढ़ी के राजनीतिज्ञ हैं इसलिए वे चीजों को गंभीरता से लेंगे और शिक्षा मॉडलके अध्ययन और तुलना के लिए विषय विशेषज्ञों का प्रतिनधिमंडल भेजेंगे। लेकिन मैं गलत था।
दूसरी बात, अगर आप तुलना करना चाहते हैं, तो कुछ पैरामीटर होने चाहिए। राष्ट्रीय परफॉर्मेंस ग्रेड इंडेक्स (पीजीआई) से बेहतर कोई इंडेक्स नहीं है जहां स्कूली शिक्षा के स्तर और संरचनात्मक बदलाव की पहचान के लिए 70 पैरामीटर हैं। 2019-20 में जारी नवीनतम पीजीआई रिपोर्ट में पंजाब नंबर 1 है जबकि दिल्ली नंबर 6 है। पंजाब सभी पांच पैरामीटरों में दिल्ली से ऊपर है- पढ़ाई के परिणामों, पहुंच, इन्फ्रास्ट्रक्चर और सुविधाएं, इक्विटी और प्रबंधन। क्या केजरीवाल और सिसौदिया इन पैरामीटर पर बहस करेंगे?
सिसोदिया ने 250 स्कूलों की सूची जारी की है और कहा है कि अब आप चुनौती स्वीकार नहीं कर रहे हैं। आपका क्या कहना है?
जैसा कि मैंने पहले ही कहा, हमारे 19,000 स्कूल हैं। मैं उन्हें पूरी सूची भेज दूंगा। लेकिन तुलना करने का यह तरीका नहीं है। वह यह दावा करने के लिए युक्तिसंगत और तार्किक पैरामीटर का उपयोग नहीं कर रहे हैं कि उन्होंने दिल्ली के सरकारी स्कूलों में बदलाव ला दिए हैं। नवीनतम पीजीआई रिपोर्ट ने न सिर्फ पंजाब को नंबर 1 रैंक दिया है बल्कि इसने यह भी दिखाया है कि पंजाब ने पिछले साल की तुलना में अपना स्कोर 20 प्रतिशत तक बेहतर किया है जबकि दिल्ली ने महज 5 प्रतिशत का सुधार किया है। क्या अब भी कहने को कुछ है कि किसका मॉडल बेहतर है?
सिसोदिया ने दावा किया है कि उन्होंने प्रशिक्षण के लिए शिक्षकों को विदेश भेजा है। उन्होंने यह भी दावा किया कि कम से कम 10 स्कूलों को नमूने के तौर पर बताया है, जहां इंफ्रास्ट्रक्चर बेहतर है।
हमने अपने शिक्षकों को प्रशिक्षण के लिए इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस में भेजा है। हमने भी उन्हें कनाडा भेजा। हमने 13,000 स्कूलों में 41,000 स्मार्ट क्लासरूम बनाए हैं। इन क्लासरूम में नवीनतम कम्प्यूटर, लैपटॉप और दूसरी टेक्नोलॉजी हैं। पंजाब के 3,500 स्कूलों को एडुसैट के जरिये तत्काल संबोधित किया जा सकता है। हमारी ऑनलाइन तबादला नीति है जिसमें बिना किसी राजनीतिक या अन्य किस्म के हस्तक्षेप के 29,000 शिक्षकों के तबादले की प्रक्रिया पूरी की गई है। बताइए, इस तरह के भारीभरकम स्केल पर जब काम हुआ हो, तो दिल्ली के स्कूलों के साथ किस तरह तुलना हो सकती है?
केजरीवाल ने आउटसोर्स और कॉन्ट्रैक्ट वाले शिक्षकों के लिए नियमित नौकरी, पारदर्शी तबादला नीति, रिक्त पदों पर स्थायी नियुक्ति, शिक्षकों को प्रशिक्षण के लिए विदेश भेजना का प्रस्ताव किया है। आपकी प्रतिक्रिया?
पहले तो दिल्ली में ही ये सब चीजें हों। दिल्ली में 22,000 से अधिक गेस्ट फैकेल्टी हैं। केजरीवाल उन्हें नियमित क्यों नहीं कर रहे? अपने घोषणा पत्र में उन्होंने 500 नए स्कूलों का वायदा किया था, फिर भी उन्होंने एक नया स्कूल नहीं खोला। दिल्ली में गैरशिक्षक स्टाफ के 42 प्रतिशत पद रिक्त हैं। पंजाब के सरकारी स्कूलों में छात्र-शिक्षक अनुपात 26:1 है जबकि दिल्ली में यह 35:1 है। वहां 760 स्कूलों में प्रिंसिपल नहीं हैं, करीब 480 स्कूलों में वाइस प्रिंसिपल नहीं हैं। वे इन पदों को क्यों नहीं भर रहे हैं?
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