“मेरा नाम पूनम देवी है, उम्र है 22 साल और मेरा 8 महीने का बच्चा है, जिसका नाम है प्रिंस। मेरा इलाका प्रधानमंत्री जी का चुनाव वाला इलाका (संसदीय क्षेत्र) है। मैं बनारस के पास मुस्तफाबाद गांव की रहने वाली हूं। मुझे सरकारी योजनाओं के तहत दिया जाने वाला मातृत्व लाभ नहीं मिला, इसलिए अपने बच्चे के साथ यहां आई हूं। मोदी जी घोषणाएं तो बड़ी-बड़ी करते हैं, लेकिन जब उनके संसदीय क्षेत्र में ही अंधेरा है तो फिर देश का हाल तो पूछो ही न।” सब कुछ एक सांस में कह जाती हैं दुबली-पलती, हंसमुख पूनम।
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पूनम के साथ-साथ देश के 14 राज्यों से आईं महिलाओं ने 15-16 मार्च को दिल्ली में हुए कार्यक्रम में अपना दुख बांटा, सांसदों का दरवाजा खटखटाया और अपने जनप्रतिनिधियों को आगाह किया कि गरीबों के विरोध में खड़ी सरकार को वे अब नहीं आने देंगे। मौका था भोजन के अधिकार आंदोलन द्वारा भूख से हो रही मौतों और खाद्य सुरक्षा से वंचित किए जा रहे लोगों की जनसुनवाई का। इसमें बड़ी संख्या में खाद्य सुरक्षा से वंचित लोगों ने अपनी बातें रखीं और बताया कि किस तरह से आधार और पोस (प्वाइंट ऑफ सेल) मशीन उनके राशन के हक को मार रही है। लाखों लोगों के नाम राशन की सूची से काट दिए गए हैं।
झारखंड से आई ऊषा देवी ने बताया कि किस तरह से राशन के अभाव में उनकी बूढ़ी सास ने दम तोड़ दिया और प्रशासन लगातार झूठ बोलता रहा। मरने के बाद उनके घर में 30 किलो अनाज डाल दिया, ताकि कोई आवाज न उठाए और भूख से मौत की सच्चाई को छुपाया जा सके। राजस्थान की 75 साल की भंवरी देवी ने दिल्ली तक का सफर इसलिए तय किया, क्योंकि राजस्थान की सरकार ने उन्हें दो साल से राशन से महरूम रखा है और कहीं उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही है।
दिल्ली के बेघर लोगों ने बताया कि चूंकि उनके वोटर आई-कार्ड पर बेघर लिखा है और नाइट शेल्टर का पता दिया हुआ है, इसलिए न तो उनका आधार कार्ड बनता है और न ही राशन मिलता है। जिन लोगों का आधार बन गया है उन्हें भी राशन नहीं मिल रहा है, क्योंकि कई बार मशीन उनका अंगूठा पहचानने से ही इनकार कर देती है।
ऐसे दिल को दुखाने वाली अनगिनत आपबीती देशभर से आए गरीबों ने जनसुनवाई में रखीं।
इन्हें सुनने के लिए कांग्रेस के सांसद राजीव गौड़ा, सीपीआई के सांसद डी राजा, कानूनविद उषा रमानाथन, सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण, महिला नेता एनी राजा और सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर सहित अनेक लोग पहुंचे थे। कार्यक्रम का संचालन भोजन के अधिकार से जुड़ी कविता श्रीवास्तव और दीपा सिन्हा ने किया। ज्यूरी एकमत था कि केंद्र सरकार आधार को औजार बनाकर गरीबों का हक मारने पर उतारू है और इसका राजनीतिक प्रतिवाद करना जरूरी है।
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