केंद्र की मोदी सरकार बड़े जोरशोर और तमाम तामझाम के साथ योजनाओं का ऐलान तो जरूर करती है, लेकिन उन योजनाओं को तैयार करते समय आकलन नहीं करती, जिसका नतीजा ये होता है कि उसे चुपके से ऐसी योजनाओं को बंद करना पड़ता है। मोदी सरकार की ऐसी कई योजनाएं हैं, जिनकी शुरुआत तो काफी शोरशराबे के साथ की गई, लेकिन बाद में सरकार को उन योजनाओं को चुपके से बंद करना पड़ा।
मोदी सरकार के इस करामात का एक उदाहरण उसकी ड्रीम प्रोजेक्ट कही जाने वाली तेजस एक्सप्रेस ट्रेन है। कहने को तो इस ट्रेन में हवाई जहाज जैसी कई सुविधाएं हैं। लेकिन इसका किराया इतना ज्यादा रखा गया है कि इसे यात्री ही नहीं मिल रहे। हालत ये हो गई है कि अब इसके कोच निर्माण को बंद करने का फैसला किया गया है। इसका मतलब है कि आने वाले दिनों में यह ट्रेन पटरी से उतर जाएगी।
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इसी तरह, रेलवे के विभिन्न सेक्टर के निजीकरण पर उतारू मोदी सरकार के लिए भोपाल के पास हबीबगंज रेलवे स्टेशन भी सच्चाई दिखाने वाले आईने की तरह है। इस स्टेशन पर यात्रियों को एयरपोर्ट जैसी सुविधाएं देने की योजना बनी थी। लेकिन इसके बनकर तैयार होने की डेडलाइन दो बार बीत चुकी है, लेकिन काम पूरा नहीं हुआ है।अब उम्मीद है कि अगले एक साल में यह स्टेशन पूरी तरह तैयार हो पाएगा।
पहले बात तेजस एक्सप्रेस ट्रेन की। रेलवे बोर्ड ने 2018-19 से लेकर 2020-21 (तीन साल के दौरान) तक कोच उत्पादन कार्यक्रम में तेजस एक्सप्रेस के कोच निर्माण का लक्ष्य शून्य रखा है। जबकि स्वदेशी तकनीक से निर्मित सेमी हाईस्पीड वंदे भारत एक्सप्रेस (ट्रेन-18) के 96 कोच बनाने का लक्ष्य रखा गया है। रेलवे बोर्ड के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है किअब तेजस की जगह ट्रेन-18 (वंदे भारत एक्सप्रेस) को चलाया जाएगा।
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जबकि घोषणा के समय इसे नई श्रेणी की ट्रेन बताया गया था। इसके निर्माण की योजना को मोदी सरकार ने ही अनुमति दी थी। उस समय इसे प्रीमियम शताब्दी एक्सप्रेस ट्रेन के विकल्प के तौर पर बताया गया था। सरकार का मानना था कि रेल यात्री तेजस को हाथों-हाथ लेंगे। इसमें हवाई जहाज की तर्ज पर हर सीट पर सहायक बुलाने के लिए कॉल बटन लगे हैं। हर कोच में इमरजेंसी निकास है। सुरक्षा की दृष्टि से हर कोच में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं। तेजस में सुविधाएं शताब्दी एक्सप्रेस की अपेक्षाकृत बेहतर हैं लेकिन किराया 20 फीसदी अधिक है। हालांकि इसमें खानपान सेवा को वैकल्पिक रखा गया है। अगर यात्री टिकट बुक कराते समय खाने के विकल्प को चुनता है तो किराया और बढ़ जाएगा।
देश में पहली तेजस ट्रेन मुंबई-गोवा (करमाली) के बीच मई, 2017 में चलाई गई। शुरू के दो हफ्ते में ट्रेन में सीटों की बुकिंग 95 फीसदी से अधिक रही, लेकिन बाद में यह डिमांड लगातार घटती चली गई। इसकी वजह भी वाजिब है। मुंबई से गोवा के बीच तेजस एक्सप्रेस की औसत रफ्तार 50 किलोमीटर प्रतिघंटा के आसपास रहती है, जबकि इसी औसत रफ्तार पर रेलवे की पुरानी मेल ट्रेनें दौड़ रही हैं।
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मेल ट्रेनों में परंपरागत कोच होने के कारण उन्हें 110 से 130 किलोमीटर प्रतिघंटा की अधिकतम रफ्तार पर नहीं दौड़ाया जाता है। इसलिए उनकी औसत रफ्तार 50 से 55 किलोमीटर प्रतिघंटा रहती है। जबकि एलएचबी कोच और तेजस ट्रेन में लगे आधुनिक कोच अधिकतम 130 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से दौड़ने के लिए पूरी तरह से फिट हैं। इसलिए एलएचबी कोच वाली शताब्दी ट्रेनों की औसत रफ्तार 80 किलोमीटर प्रतिघंटा होती है।
सूत्रों ने बताया कि चेन्नै-मदुरै, मुंबई-करमली आदि रूट पर भी तेजस एक्सप्रेस का यही हाल है। पीक सीजन जैसे- तीज-त्योहार, गर्मी की छुट्टियों आदि में तो तेजस में यात्रियों की संख्या 70 से 80 प्रतिशत हो जाती है लेकिन आम दिनों में इनकी संख्या 40 फीसदी से भी कम रह जाती है। यही कारण है कि रेलवे बोर्ड ने जून, 2019 में तेजस कोच के निर्माण को बंद करने का फैसला किया है।
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