हरियाणा में एक तरफ लोग जहां कोरोना की त्रासदी से जूझ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर अस्पतालों की मनमानी उन पर कहर बनकर टूट रही है। इलाज के नाम पर मरीजों से वसूले जा रहे तमाम तरीके के बिल राज्य में अराजकता की तस्दीक कर रहे हैं। पूरे राज्य में कोरोना मरीजों से हो रही इस तरीके की लूट के बीच सामने आया फरीदाबाद के डीएम हॉस्पिटल का मामला मनमानी वसूली पर मुहर लगा रहा है। हालत यह है कि इस अस्पताल का प्रबंधन मरीज के खाने के नाम पर 1200 रुपये और पीपीई किट के तीन हजार रुपये प्रतिदिन के हिसाब से वसूल रहा है।
फरीदाबाद कोरोना से सबसे प्रभावित हरियाणा के शहरों में से एक है। यहां अब तक 89444 कोरोना के पॉजिटिव केस सामने आ चुके हैं, जबकि तकरीबन 600 लोग कोरोना से अपनी जान गंवा चुके हैं। यह आंकड़े सरकारी हैं। वास्तविकता में तो तस्वीर और भयावह बताई जा रही है। इस स्थिति में शहर में मरीजों से हो रही लूट की एक तस्वीर सामने आई है। मामला डीएम नाम के एक निजी अस्पताल का है। अस्पताल प्रबंधन ने मरीज से चार दिन के 1,47,675 रुपये वसूले।
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इस बिल में आईसीयू बेड के 11 हजार रुपये प्रतिदिन के हिसाब से 44 हजार रुपये, आईसीयू डॉक्टर विजिट के 16000 रुपये, छाती रोग विशेषज्ञ के दस हजार रुपये, नर्सिंग स्टाफ के आठ हजार रुपये, देखरेख (मॉनिटरिंग) के आठ हजार रुपये, मेडिसिन के 35 हजार रुपये, ऑक्सीजन के दस हजार रुपये और चार दिन के 1200 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से 4800 रुपये खाने के लिए गए। मेडिसिन के 35000 रुपये में 12000 रुपये पीपीई किट और एक हजार रुपये दस्ताने के शामिल हैं।
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राज्य में यह हालात तब हैं जब सरकार की तरफ से हर चीज के रेट तय कर दिए गए हैं। यह मामला केंद्रीय राज्य मंत्री कृष्णपाल गुर्जर और राज्य के परिवहन मंत्री मूलचंद शर्मा की मौजूदगी में जिला सलाहकार समिति की बैठक में उठाया गया। फरीदाबाद विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस विधायक नीरज शर्मा ने इस मामले को उठाते हुए निजी अस्पतालों में कोरोना के इलाज के नाम पर चल रही लूट का खुलासा किया है।
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नीरज शर्मा का कहना है कि एनआइटी पांच नंबर स्थित डीएम अस्पताल की इस लूट से गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। कांग्रेस विधायक ने इस मरीज के बिल में अंकित इन मदों पर सवाल उठाते हुए कहा कि आईसीयू बेड का मतलब क्या है? उन्होंने इस बाबत जिला उपायुक्त को पत्र लिखकर इसकी जांच की मांग की है और जिला स्तरीय निगरानी कमेटी से अपील है कि निजी अस्पतालों में वसूली गई राशि का ऑडिट करवाया जाए। उनका कहना है कि अभी तक किसी भी निजी अस्पताल ने इलाज के शुल्क के बोर्ड तक नहीं लगवाए हैं।
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