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दाल के दाम छुएं आसमान, तो गरीब दाल-रोटी खाकर कैसे करे प्रभु का गुणगान

दाल तो गरीब की थाली से गायब ही हो गई है। वजह है, दालों की बढ़ती कीमत। नरेंद्र मोदी के केंद्र में सत्ता संभालने के एक ही साल बाद 2015 में दालों की कीमत 200 रुपये के पार हो गई थी। इस साल, यानी 2021 में भी दालें 135 रुपये प्रति किलो तक पहुंच चुकी हैं।

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एक पुराना गीत हैः दाल रोटी खाओ, प्रभु के गुण गाओ। बेशक यह फिल्मी गीत था लेकिन पिछले कुछ सालों तक गरीबों के लिए दाल-रोटी सस्ता खाना होता था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। दाल तो गरीब की थाली से गायब ही हो गई है। वजह है, दालों की बढ़ती कीमत। नरेंद्र मोदी के केंद्र में सत्ता संभालने के एक ही साल बाद 2015 में दालों की कीमत 200 रुपये के पार हो गई थी। इस साल, यानी 2021 में भी दालें 135 रुपये प्रति किलो तक पहुंच चुकी हैं।

10 अक्तूबर, 2021 को फॉर्च्यून की अरहर की दाल की कीमत 165 रुपये थी। इसे ऑनलाइन खरीदने पर 44 रुपये की छूट दी जा रही थी। यह तब है जबकि उपभोक्ता मंत्रालय की वेबसाइट के मुताबिक, 10 अक्तूबर, 2021 को अरहर की दाल की औसत खुदरा कीमत 105.12 रुपये और थोक कीमत 95.70 रुपये प्रति किलो थी। इस वेबसाइट में दिए गए आंकड़ों को खंगालेंगे तो पता चलेगा कि 26 मई, 2014 को अरहर दाल की औसत कीमत 70.78 रुपये थी। इस दिन ही मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। और ठीक एक साल बाद, यानी 26 मई, 2015 को इसी अरहर की दाल की औसत कीमत 94.15 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गई थी।

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इसके बाद से मोदी सरकार हर बार नए-नए फैसले लेती है जिससे दालों की कीमत बढ़-घट रही है। दरअसल, सरकार अपनी ही नीतियों को लेकर स्पष्ट नहीं है। 5 जून, 2020 को सरकार ने आवश्यक वस्तु (संशोधन) (ईसी(ए) अध्यादेश, 2020 जारी किया जिसे सितंबर में एक कानून के रूप में संसद ने पारित कर दिया। इसका मकसद था कि आवश्यक वस्तुओं पर भंडारण की सीमा या रोक को खत्म कर दिया जाए। लेकिन 14 मई, 2021 को सरकार द्वारा राज्यों/केंद्र-शासित प्रदेशों से आवश्यक वस्तुअधिनियम, 1955 (ईसी एक्ट, 1955) के तहत मिल मालिकों, आयातकों, विक्रेताओं और स्टॉकिस्टों से अपने दाल के स्टॉक को पंजीकृत और घोषित करने का अनुरोध किया गया, यानी उसी एक्ट का सहारा लिया गया जिसमें संशोधन करने के लिए सरकार ने इतना बड़ा झमेला खड़ाकिया हुआ है।

इतना ही नहीं, 2 जुलाई, 2021 को मोदी सरकार ने एक और आदेश (निर्दिष्ट खाद्य पदार्थों पर स्टॉक सीमा और आवाजाही प्रतिबंध (संशोधन) आदेश, 2021) जारी कर कहा कि दाल व्यापारी एक तय सीमा तक ही दालों का स्टॉक कर सकते हैं। उस समय सरकार ने यह कहकर वाहवाही लूटने की कोशिश की कि दालों की बढ़ती कीमतों पर लगाम लगाने के लिए स्टॉक सीमा निर्धारित की गई है। लेकिन सवाल यह है कि अगर स्टॉक सीमा ही लगानी थी तो कृषि कानून क्यों बनाया गया?

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खैर, आखिर ऐसा क्या है कि सरकार को अपने ही फैसले के उलट काम करना पड़ रहा है। दरअसल, जब पिछले साल सरकार स्टॉक सीमा खत्म करने के लिए पहले अधिसूचना और फिर कानून लेकर आई तो यह समझा जा रहा था कि कुछ बड़े व्यापारी किसानों की उपज खरीद लेंगे। लेकिन दाल के मामले में ऐसा नहीं हो पाया। एक बड़े दाल व्यापारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कई छोटे व्यापारियों ने बड़े पैमाने पर दलहन की फसल खरीद ली और स्टॉक कर ली। इसका असर दालों की कीमतों पर पड़ा। लेकिन उससे ज्यादा असर मॉलों में बिकने वाली ब्रांडेड दालों की कीमतों की वजह से पड़ा। यह व्यापारी बताते हैं कि ब्रांडेड दालों की कीमतें जनवरी, 2021 से ही बढ़ने लगी थी और जून तक इनकी कीमतें काफी बढ़ चुकी थी जबकि सरकार ने उनकी बजाय छोटे व्यापारियों को पकड़ने के लिए स्टॉक सीमा लगा दी।

वहीं, दालों की बढ़ती कीमतों के बहाने सरकार ने आयात नीति में संशोधन कर दिया जबकि इससे पहले 11 फरवरी, 2021 को सरकार ने संसद में बयान दिया कि दालों के आयात में कमी की गई है और इससे 15 हजार करोड़ रुपये की बचत की गई है। लेकिन 2 जुलाई, 2021 को सरकार ने कहा कि घरेलू उपलब्धता बढ़ाने और दालों के आयात के प्रवाह को बाधारहित करने के लिए 15 मई, 2021 से 31 अक्टूबर, 2021 तक की अवधि के लिए तुअर, उड़द और मूंग को प्रतिबंधित श्रेणी से मुक्त श्रेणी में स्थानांतरित करते हुए आयात नीति में बदलाव किए गए हैं।

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दालों के आयात से किसे फायदा होता है? इस सवाल का सरकारी जवाब तो यह है कि दालों की उपलब्धता बढ़ाकर कीमतें कम करने के लिए आयात किया जाता है। लेकिन इसका एक जवाब यह भी है कि इसका फायदा एक बड़े समूह को होता है जो ब्रांडेड दालें बेचता है। इस समूह ने दालों के व्यापारियों के संगठन इंडिया पल्सेस एंड ग्रेन एसोसिएशन से समझौता किया हुआ है कि देश में जितनी भी दालें आयात होंगी, वे एक खास बंदरगाह के जरिये भारत में प्रवेश करेंगी।

तो इसका सीधा सा अर्थ है कि एक ओर जहां सरकार दालों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा तो कर रही है लेकिन यह गारंटी देने के लिए तैयार नहीं है कि दालों की खरीद एमएसपी से नीचे नहीं होगी और न ही दालों की सरकारी खरीद बढ़ाई जा रही है, वहीं दालों के बिजनेस को बड़े औद्योगिक घरानों के हवाले करके न सिर्फ गरीबों की थाली से दालें छीनी जा रही हैं बल्कि छोटे व्यापारियों से उनका कारोबार भी छीना जा रहा है।

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