केंद्र सरकार ने आम बजट में महिलाओं से जुड़ी अधिकतर परियोजनाओं के आवंटन में कमी कर दी है। इसमें लड़कियों की शिक्षा के आवंटन में 64.1 करोड़ रुपये की कटौती भी शामिल है। देश में बढ़ती रेप की घटनाओं के बावजूद निर्भया फंड में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है और वह 500 करोड़ रुपए पर स्थिर है।
2014 में बीजेपी का घोषणापत्र महिलाओं और बच्चों पर केंद्रीत था, जिसमें सभी शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों के कल्याण की योजनाओं, नौकरी प्राप्त करने में मदद के लिए महिलाओं के लिए समर्पित ट्रेनिंग सेंटर स्थापित करने के साथ ही लड़कियों की शिक्षा के लिए मदद की बात की गई थी। लेकिन यह बजट, जो एक चुनावी बजट है इन सभी मोर्चों पर विफल साबित होता है।
आर्थिक सर्वे के गुलाबी आवरण (महिलाओं के पक्ष में प्रतीकात्मक रंग) के बावजूद यह बजट महिलाओं की जरूरतों के प्रति पूरी तह असंवेदनशील है। 2018-19 के संभावित सकल घरेलू उत्पाद का सिर्फ 0.65 फीसदी महिलाओं से संबंधित चीजों पर खर्च किया जाएगा पिछले साल यह आंकड़ा 0.69 फीसदी था। महिला मद में 2017-18 (संशोधित आकलन) का संपूर्ण बजट खर्च 5.2 था जो घटकर 2018-19 के प्रस्तावित बजट में 4.9 फीसदी हो गया। वित्त मंत्री यह दावा कर सकते हैं कि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को आवंटित राशि में थोड़ा इजाफा हुआ है, लेकिन यह 0.5 फीसदी से ज्यादा नहीं है। 2017-18 के संशोधित आकलन में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के संपूर्ण खर्च 0.95 फीसदी था, जबकि 2018-19 का प्रस्तावित खर्च 1 फीसदी है।
यह बात उल्लेखनीय है कि लड़कियों की शिक्षा की योजनाओं के आवंटन में से 64.1 करोड़ रुपये घटा दिया गया है और मजाक ये है कि इस बीजेपी सरकार की सबसे प्रमुख योजना, ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ में 80 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी कर दी गई है। महिला समर्थक होने का दावा करने वाली मोदी सरकार के इस बजट में महिलाओं के खिलाफ बढ़ रही हिंसा की घटनाओं से निपटने के उपायों के बारे में कोई चर्चा नहीं की गई है। अब तक सही से इस्तेमाल नहीं किए गए निर्भया फंड का आवंटन 500 करोड़ पर ही रुका हुआ है।
वित्त वर्ष 2017-18 के संशोधित अनुमान की तुलना में इस बजट में महिलाओं को सशक्त करने वाली योजनाओं के आवंटन में खासी कमी की गई है। मातृत्व लाभ कार्यक्रम (एमबीपी) और प्रधान मंत्री मातृत्व वंदना योजना के आवंटन में 7.5% की कटौती की गई है, जिसे पिछले साल सभी गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए लागू किया गया था। इसके अलावा, राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजना में 3.7%, राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल योजना में 0.7% और स्वच्छ भारत अभियान में 7.3% की कमी की गई है। आंगनबाड़ी सेवाओं (या आईसीडीएस) की योजनाओं के तहत खर्च किए गए फंड में लगातार गिरावट आई है, जो साल 2014-2015 में 16,683 करोड़ रुपये से घटाकर 2016-2017 में 14,735.6 करोड़ रुपये हो गई थी।
स्वतंत्र अर्थशास्त्री स्मीता गुप्ता का कहना है, “जब आप बजट आवंटन को देखेंगे तो हमें जिस बात पर ध्यान देना चाहिए वह अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर और मुद्रास्फीति दर है। हमारे देश में, ये दोनों एक साथ 11 प्रतिशत पर रहे हैं। अगर बजट आवंटन में इसमें कम से कम 11 प्रतिशत की वृद्धि नहीं हुई है, तो यह पिछले वर्ष हुए आवंटन में कटौती होगी। बजट आवंटनों को अर्थव्यवस्था की गति के साथ रखना होगा। वास्तव में, जीडीपी के संबंध में कुल बजटीय परिवेश 13.2% से घटकर 13% हो गया है।"
वित्त मंत्री ने दावा किया है कि उन्होंने वेतनभोगी महिलाओं का बोझ कम किया है, लेकिन यह महिला श्रमिकों के लिए कोई खास बदलाव लाने वाला नहीं है, जिनमें से ज्यादातर अनौपचारिक क्षेत्र में काम करती हैं।
संतोषजनक केवल महत्वपूर्ण वृद्धि निम्नलिखित योजनाओं में है- राष्ट्रीय क्रीक योजना ब्लू क्रांति (113%), नेशनल मिशन फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर (50%; फिर से आवंटन आरई में कम हो गया), और राष्ट्रीय साक्षरता मिशन (2 9%) की
केवल निम्नलिखित योजनाओं में ठोस वृद्धि की गई है- राष्ट्रीय क्रेच योजना (97.5%; आवंटन में बजटीय आकलन की तुलना में 2017-18 के संशोधित आकलन में खासी कमी की गई थी) नीली क्रांति (113%) सतत कृषि के राष्ट्रीय मिशन (50%; संशोधित आकलन में एक बार फिर आवंटनों में कटौती की गई), और राष्ट्रीय साक्षरता मिशन (29%)।
गुप्ता कहती हैं, हर कोई ये उम्मीद करता है कि चुनावी साल में सरकार अपने बजट में सामाजिक क्षेत्र, स्वास्थ्य और महिलाओं के रोजगार पर विशेष जोर देगी, लेकिन यह बजट उनके घोषणापत्र की तरह ही है, जो सिर्फ एक छलावा है। प्रधानमंत्री महिलाओं को पटाने का प्रयास करते रहे हैं। उन्होंने इस साल के पहले मन की बात कार्यक्रम में भी महिलाओं की प्रशंसा की थी, लेकिन यह कुछ और नहीं बस हवा है। योजनाओं के लिए पैसे कहां हैं? मनरेगा श्रमिकों की एक बड़ी आबादी महिलाओं की है, लेकिन बजट में इस बात पर ध्यान नहीं दिया गया है। स्मीता गुप्ता ने कहा, महिलाओं के दृष्टिकोण से रोजगार की कमी, भोजन की कमी, स्वास्थ्य सुविधा की कमी और सुरक्षा बड़े मुद्दे हैं और इस बजट में इन पर कोई बात नहीं की गई है। यह पूरी तरह से एक रूढ़ीवादी बजट है।
Published: 02 Feb 2018, 7:21 PM IST
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Published: 02 Feb 2018, 7:21 PM IST