देश की मोदी सरकार वित्तीय घोटालों पर पर्दादारी और सरकारी खज़ाने को हजारों करोड़ का चूना लगाने में माहिर हो चुकी है। इसकी जीती जागती मिसाल है आईएल एंड एफएस पर बकाया 91,000 करोड़ का कर्ज। और यह सबूत है कि किस तरह इस सरकार ने देश को वित्तीय कुप्रबंधन का शिकार बना रखा है। शनिवार को कांग्रेस ने दिल्ली में एक प्रेस कांफ्रेंस कर यह आरोप लगाए। कांग्रेस प्रवक्ता प्रोफेसर गौरव वल्लभ ने सवाल उठाया, “आखिर क्यों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली आईएल एंड एफएस को बचाने के लिए भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) और स्टेट बैंक ऑफ (एसबीआई) को बर्बाद करने पर तुले हैं?”
उन्होंने कहा, “बीते साढ़े चार साल के दौरान मोदी-जेटली की जोड़ी ने सिलसिलेवार ढंग से देश के वित्तीय क्षेत्र को बर्बाद करने का काम किया है।” प्रोफेसर वल्लभ ने आगे कहा, “चाहे वह बैंकों के एनपीए में 400 फीसदी की बढ़ोत्तरी का मामला हो, एक लाख करोड़ रुपए से ऊपर के बैंक लूट घोटाले हों, आम लोगों की छोटी-छोटी बचत को खत्म करना हो और एलआईसी के करोड़ों निवेशकों की पारिवारिक सुरक्षा और बचत को दांव पर लगाना हो।”
प्रोफेसर वल्लभ ने बताया, “ताज़ा मामला इंफ्रास्ट्रक्चर लीज़िंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेस (आईएल एंड एफएस) लिमिटेड का है। इस कंपनी में 60 फीसदी हिस्सेदारी प्राइवेट कार्पोरेट सेक्टर की है। इस 60 फीसदी में से 36 फीसदी विदेशी निवेशक और 39.43 फीसदी हिस्सेदारी सरकारी बैंकों और एलआईसी जैसी कंपनियों की है।”
उन्होंने कहा, “अपने वित्तीय पाप को छिपाने के लिए मोदी सरकार की कार्य प्रणाली यही रही है कि फायदे वाली सरकारी कंपनियों के पैसे से डूबती हुई कार्पोरेट कंपनियों को उबारना और करोड़ों आम लोगों की बचत को दांव पर लगा देना।” उन्होंने ओएनजीसी का हवाला देते हुए कहा कि किस तरह गुजरात राज्य बिजली निगम (जीएसपीसी) को डूबने से बचाने के लिए ओएनजीसी को इस्तेमाल किया गया। उन्होंने कहा कि नुकसान में चल रही आईडीबीआई को उबारने में एलआईसी का इस्तेमाल किया गया और अब 60 फीसदी निजी हिस्सेदारी वाले आईएल एंड एफएस को बचाने के लिए एलआईसी और एसबीआई को खतरे में डाला जा रहा है।
क्या यह ‘भारत के लीहमैन ब्रदर्स’ की शुरुआत है?
प्रोफेसर वल्लभ ने बताया, “मोदी शासन के आर्थिक कुप्रबंधन के चलते आईएल एंड एफएस संकट से घिरा है, और हालत यह है कि उसके पास अपना कर्ज उतारना तो दूर, अपने कर्मचारियों को वेतन देने तक के लाले पड़ गए हैं।”
उनके आईएल एंड एफएस के इस पूरे मामले पर कहा:
उनका कहना है कि मोदी सरकार के ऐसे फैसले अर्थव्यवस्था पर बेहद खराब असर छोड़ेंगे। आईएल एंड एफएस के मौजूदा हाल में पहुंचने के बारे में उन्होंने आरोप लगाए:
प्रोफेसर वल्लभ ने एक और आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए एक पूरे शहर को आईएल एंड एफएस के हवाले कर दिया था। उन्होंने बताया कि अपने मुख्यमंत्रित्व काल में नरेंद्र मोदी ने गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंस और टेक सिटी-गिफ्ट सिटी के नाम से एक परियोजना शुरू की। इसके लिए सरकार ने 886 एकड़ ज़मीन सिर्फ एक रुपए की लीज़ पर दे दी। इस जमीन को गिरवी रखकर अलग-अलग बैंकों से 1100 करोड़ रुपए उगाहे गए। और फिर आईएल एंड एफएस को इसे बनाने का जिम्मा दे दिया गया। इसमें गुजरात सरकार ने सिर्फ 2.5 करोड़ रुपए में आईएल एंड एफएस को इसकी आधी हिस्सेदारी दे दी। उन्होंने कहा कि इस जमीन को पूरी तरह प्रोजेक्ट कंपनी के हवाले कर दिया गया।
उन्होंने बताया कि गिफ्ट सिटी को आईएएल एंड एफएस के हवाले करने के बाद भी उसने प्रोजेक्ट कंसल्टेंसी तक नहीं दी। उन्होंने बताया कि गुजरात सरकार ने प्रोजेक्ट विकसित करने के लिए आईएल एंड एफएस को 700 करोड़ रुपए सक्सेस फीस और 20 लाख रुपए महीना मैनेजमेंट फीस देना शुरू किया। आईएल एंड एफएस ने यही काम एक निजी कंपनी को 400 करोड़ में दे दिया।
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कांग्रेस ने इस मामले में प्रधानमंत्री से कुछ सवाल पूछे हैं:
मोदी सरकार एक ऐसी कंपनी को बचाने के लिए एलआईसी के 38 करोड़ धारकों और एसबीआई के करोड़ों ग्राहकों की जमा पूंजी क्यों दांव पर लगा रही है, जिसके प्रबंधन ने हजारों करोड़ का कुप्रबंधन किया है?
दो महीने पहले ही एलआईसी से 13,000 करोड़ रुपए दिलवाकर आईडीबीआई बैंक को बचाने की कोशिश की गई है। लेकिन, आईएल एंड एफसी को बचाने में 36 फीसदी हिस्सेदारी वाले विदेशी निवेशकों को बचाया जा रहा है?
आईएल एंड एफएस में एलआईसी और सरकारी बैंकों की करीब 40 फीसदी हिस्सेदारी है, फिर भी इसके कुप्रबंधन पर अभी तक सीएजी या सीवीसी की नजर क्यों नहीं पड़ी?
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