प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने मंगलवार को दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया कि प्रधानमंत्री का नागरिक सहायता और आपात स्थिति में राहत (पीएम केयर) फंड सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अनुसार एक सार्वजनिक प्राधिकरण नहीं है, बल्कि यह एक पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट है।
प्रधान न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ सम्यक गंगवाल द्वारा दायर एक याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें पीएम केयर्स फंड को संविधान के तहत सार्वजनिक प्राधिकरण के रूप में घोषित करने की मांग की गई थी। हलफनामे में कहा गया है कि याचिका आशंकाओं और धारणाओं पर आधारित है।
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पीएमओ के अवर सचिव द्वारा अदालत में दायर हलफनामे में कहा गया है कि: यह ट्रस्ट न तो किसी सरकार द्वारा स्वामित्व, नियंत्रित है और न ही पर्याप्त रूप से वित्तपोषित है और न ही सरकार का कोई साधन है। ट्रस्ट के कामकाज में किसी भी तरह से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से केंद्र सरकार या किसी भी राज्य सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है।
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प्रस्तुत हलफनामे के अनुसार, पीएम केयर्स फंड एक सार्वजनिक चैरिटेबल ट्रस्ट है जो केवल स्वैच्छिक दान स्वीकार करता है और निश्चित रूप से यह केंद्र का काम नहीं है। पीएम केयर्स फंड को सरकार द्वारा धन या वित्त प्राप्त नहीं होता है। हालांकि, याचिकाकर्ता के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने कहा, उपराष्ट्रपति जैसे सरकार के उच्च पदाधिकारियों ने राज्यसभा सदस्यों से दान करने का अनुरोध किया था और पीएम केयर फंड को सरकारी कोष के रूप में पेश किया गया है।
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इसके जवाब में पीएमओ ने तर्क दिया कि: पीएम केयर्स फंड को प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय राहत कोष (पीएमएनआरएफ) की तर्ज पर प्रशासित किया जाता है, क्योंकि दोनों की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं। जैसे राष्ट्रीय प्रतीक और डोमेन नाम 'जीओवी डॉट कॉन' का उपयोग पीएमएनआरएफ के लिए किया जा रहा है। उसी तरह पीएम केयर्स फंड के लिए भी उपयोग किया जा रहा है।
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27 मार्च, 2020 को नई दिल्ली में पंजीकरण अधिनियम, 1908 के तहत पीएम केयर्स फंड के ट्रस्ट डीड को पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट के रूप में पंजीकृत किया गया था। किसी भी प्रकार की आपातकालीन या संकट की स्थिति से निपटने के प्राथमिक उद्देश्य के साथ एक समर्पित कोष की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए पीएम के नाम से एक सार्वजनिक चैरिटेबल ट्रस्ट पीएम केयर्स फंड की स्थापना की गई थी।
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