कोरोना संक्रमण से बीमार लोगों के इलाज में प्लाज्मा थेरेपी का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हो रहा है। इसके तहत कोरोना को मात दे चुके लोगों के प्लाज्मा को कोरोना संक्रमित मरीज को दिया जाता था। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। सोमवार को एम्स यानी ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस और भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद यानी आईसीएमआर ने इलाज की इस थेरेपी को कोविड ट्रीटमेंट गाईलाइंस से हटा दिया है।
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आईसीएमआर के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ समीरन पांडा ने बताया कि आंकड़ों में यह सामने आया है कि प्लाज्मा थेरेपी का कोई फायदा नहीं है। प्लाज्मा थेरेपी महंगी तो है ही और इससे लोगों में घबराहट भी पैदा हो रही है। इसके अलावा इस थेरेपी के इस्तेमाल के कारण पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था पर बोझ भी बढ़ा है जबकि मरीजों के इससे कोई फायदा नहीं हो रहा है। उन्होंने कहा कि दरअसल प्लाज्मा डोनर के शरीर में पर्याप्त एंटीबॉडी होना चाहिए लेकिन कई मामलों में यह सुनिश्चित करना मुश्किल होता है।
हालांकि इससे पहले जारी गाइडलाइंस में कहा गया था कि बीमारी के शुरुआत के सात दिनों के भीतर यदि प्लाज्मा की उपलब्धता है तो प्लाज्मा थेरेपी को "ऑफ लेबल" उपयोग किया जा सकता है। लेकिन अब इस थेरेपी को हटा दिया गया है। दरअसल यह फैसला कुछ चिकित्सकों और वैज्ञानिकों द्वारा केंद्र सरकार के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार के विजयराघवन को भेजे गए पत्र के बाद लिया गया है। इस पत्र में प्लाज्मा थेरेपी को हटाने की मांग की गई थी।
पत्र में कहा गया था कि प्लाज्मा थेरेपी का तर्कहीन और गैर-वैज्ञानिक उपयोग किया जा रहा है। इस पत्र की प्रति आईसीएमआर प्रमुख बलराम भार्गव और एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया को भी भेजा गया था।
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