इन दिनों विकास दुबे की कहानियां पढ़-सुनकर आप थक गए होंगे। हो सकता है, आप इससे भी इन दिनों इत्तफाक नहीं रख रहे हों कि इस घटनाक्रम से नाराज ब्राह्मणों को मनाने के लिए योगी सरकार से जुड़े कद्दावर नेता-अफसर यूपी के 55 ब्राह्मण विधायकों की कुछ ज्यादा ही खोज-खबर रख रहे हैं। इसलिए आपके लिए हाजिर है यूपी की ही एक और कथा। यह शेर सिंह राणा की है। अगर आप सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं तो आपने यू-ट्यूब पर उसके वीडियो भी देखे होंगे। पर इसमें इतने ट्विस्ट हैं कि आपकी आंखें अब भी चौड़ी हो जाएंगी।
शेर सिंह राणा ने डाकू से सांसद बनी फूलन देवी की 26 जुलाई, 2001 को दिल्ली में संसद मार्ग-स्थित उनके सरकारी आवास में घुसकर गोली मारकर हत्या कर दी थी। दिल्ली और उत्तराखंड की पुलिस दो दिनों तक एड़ी-चोटी का जोर लगाने के बावजूद राणा को नहीं पकड़ पाई। अचानक मीडिया में सूचना आई कि वह देहरादून में प्रेस क्लब में आत्मसमर्पण करेगा। एक दिन पहले ही उसने एक हिंदी दैनिक के रिपोर्टर को साफ कहा था कि वह प्रेस क्लब में आत्मसमर्पण इसलिए करना चाहता है, क्योंकि वह नहीं चाहता कि पुलिस उसे मुठभेड़ में मार डाले।
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मैं उस वक्त एक अंग्रेजी दैनिक के लिए देहरादून में काम कर रहा था। हम लोग प्रेस क्लब पहुंचते, उससे पहले ही पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया था। लेकिन इस बारे में पुलिस ब्रीफिंग के लिए हम लोगों को दो घंटे तक लटकाए रखा गया। बाद में पता चला कि राणा को दिल्ली की स्पेशल सेल की टीम ले गई। उसे तिहाड़ जेल में रखा गया। लेकिन यह भी कम रोचक प्रसंग नहीं है कि इस मुद्दे पर कम तू-तू मैं-मैं नहीं हुई कि राणा को किसने पकड़ा- दिल्ली पुलिस ने या उत्तराखंड पुलिस ने। वैसे, सच्चाई तो यही है कि राणा ने खुद ही मीडिया को यह कहते हुए बुलाया था कि वह आत्मसमर्पण करना चाहता है।
विकास और उसके साथियों के मामले में तो ब्राह्मण कार्ड उन लोगों को मार गिराए जाने के बाद खेला जा रहा, राणा अपना राजपूत कार्ड शुरू से खेलता रहा है। उसने पुलिस और मीडिया से यही कहा कि चूंकि फूलन देवी ने डकैत रहते हुए ऊंची जातियों के लोगों की हत्या की, इसलिए उसने इनका बदला लेने के लिए फूलन की हत्या की। वह 2004 में तिहाड़ जेल से फरार हो गया। बाद में लिखी किताब ‘जेल डायरीः तिहाड़ से काबुल-कंधार तक’ में उसने दावा किया है कि खतरों से जूझते हुए वह फर्जी पासपोर्ट पर बांग्लादेश और पाकिस्तान होते हुए अफगानिस्तान में उस जगह पर पहुंचा जहां पृथ्वीराज चौहान का शव दफनाया गया है। उसने इस किताब में दावा किया है कि मुसलमान उस जगह पर अब भी जूते से ठोकर मारते हैं और उसके बाद बगल की मस्जिद में जाते हैं। राणा ने यू-ट्यूब पर एक वीडियो डालकर यह दावा भी किया हुआ है कि उसने कैसे अपनी जान जोखिम में डालकर चोरी-छुपे वहां से मिट्टी जमा की और उसे भारत लेकर आया। इस नाम पर उसने अपने समर्थकों के साथ मिलकर रुड़की में एक स्मारक भी बनवाया है।
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राणा की किताब ने प्रोड्यूसर-डायरेक्टर-एक्टर अजय देवगन को इतना प्रभावित किया कि उन्होंने पृथ्वीराज चौहान पर एक फिल्म बनाने की घोषणा कर दी और इसमें राणा का रोल खुद करने की इच्छा जताई। एक अखबार ने लिखाः ‘राणा के रोचक जीवन ने अजय का ध्यान खींचा। राणा तिहाड़ से फरार हुआ और उसने 2006 में कोलकाता में गिरफ्तारी से पहले 12वीं शताब्दी के शासक पृथ्वीराज चौहान के अवशेष अफगानिस्तान से लाने का दावा किया है।’
वैसे तो राणा ने अपनी किताब में बताया है कि वह कोई पेशेवर अपराधी नहीं है और उसने फूलन देवी से पहले या बाद में किसी की हत्या नहीं की है लेकिन सच्चाई यह है कि वह शातिर मिजाज तो रहा ही है। उसकी गिरफ्तारी के बाद एक डीजीपी ने मुझे देहरादून में बताया कि राणा की गिरफ्तारी से पहले ही एक व्यक्ति उसके नाम से गिरफ्तार होकर जेल में बंद था। उस अधिकारी ने कहाः ‘हम तो इस बारे में नहीं जान पाते। वह तो एक सतर्क इन्सपेक्टर ने इसका खुलासा कर दिया। उसने टीवी पर शेर सिंह राणा की तस्वीर देखी, तो उसने कहा कि अगर राणा यह है, तो फिर इसी नाम से हरिद्वार जेल में कैद व्यक्ति कौन है।’ खैर।
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करीब दस साल की सुनवाई के बाद कोर्ट ने अगस्त, 2014 में राणा को आजीवन कारावास की सजा और एक लाख रुपये दंड का आदेश दिया। उसने इसके खिलाफ अपील की है और इसी वजह से वह जमानत पर जेल से बाहर है। उसने राष्ट्रवादी जनलोक पार्टी (आरजेपी) बना ली है। इस पार्टी ने अभी हाल में हरियाणा विधानसभा चुनाव में अपने उम्मीदवार भी उतारे। राणा का दावा है कि उसकी पार्टी को इतने वोट मिले कि उसने वहां किसी को बहुमत नहीं लाने दिया। वह यहां-वहां घूमता रहता है और उसकी पार्टी ने किसी-न-किसी के साथ गठबंधन कर मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली में भी चुनाव लड़ा।
मध्यप्रदेश के एक पूर्व विधायक की बेटी से उसने 2018 में शादी कर ली और उसे डेढ़ साल की बेटी है। शादी के बाद उसने मीडिया से कहाः ‘अब मैंने सबकुछ भगवान पर छोड़ दिया है। मुझे नहीं पता कि मेरे मामले के निबटारे में कितना वक्त लगेगा।’
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