पिछले एक सप्ताह से पेट्रोल-डीज़ल के दाम नहीं बढ़ें हैं, और उम्मीद ऐसी है कि आने वाले 10-12 दिन भी दाम नहीं बढ़ेंगे। वजह अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दामों में गिरावट नहीं, वह तो बढ़ रहे हैं, वजह है कर्नाटक चुनाव। क्योंकि कर्नाटक चुनाव में वैसे ही किसान, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे हवा में हैं, ऐसे में अगर तेल के दामों का मुद्दा उछल गया तो जीत की उम्मीद लगाए बैठी बीजेपी की दिक्कतें बढ़ जाएंगी।
24 अप्रैल से तेल के दाम स्थिर हैं, जबकि इससे पहले तक सरकारी तेल कंपनियां रोज दामों घटाती-बढ़ाती थीं। दामों में कमी तो एकाध बार ही हुई, कीमतें लगातार ऊपर ही जाती दिखती रही हैं। लेकिन तेल कंपनियों ने पिछले एक सप्ताह से पेट्रोल और डीजल के दाम में होने वाली घट-बढ़ रोक दी है।
हालांकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में इनके दाम में दो डॉलर प्रति बैरल की बढ़ोत्तरी हो चुकी है, इसके बावजूद तेल के रिटेल दामों में कोई बदलाव नहीं किया गया है। वैसे वित्त मंत्रालय ने आम आदमी को राहत पहुंचाने के लिए उत्पाद शुल्क में किसी भी तरह की कटौती करने से मना कर दिया है, लेकिन दामों में बढ़ोत्तरी पर विराम लगना राजनीतिक मंशा स्पष्ट कर देता है।
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गौरतलब है कि ईंधन के दाम इस समय 55 महीने के उच्च स्तर पर चल रहे हैं। दिल्ली में पेट्रोल 74.63 रुपये प्रति लीटर और डीजल 65.93 रुपये प्रति लीटर की रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच चुका है। लेकिन 24 अप्रैल के बाद से कीमतें स्थिर हैं। सरकारी तेल कंपनियों द्वारा रोजाना कीमतों में बदलाव के लिए जारी की जाने वाली अधिसूचना के हिसाब से 24 अप्रैल से ईंधन के दाम स्थिर बने हुए हैं। इस बारे में तेल कंपनियों के अधिकारियों ने चुप्पी साध रखी है। सूत्रों का कहना है कि अधिकारियों और कर्मचारियों को इस बारे में कोई टिप्पणी करने से मना किया गया है।
तेल के दामों में स्थिरता पर पेट्रोलियम मंत्रालय भी कन्नी काट रहा है। मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि ईंधन की कीमतों का मंत्रालय से कोई लेना देना नहीं है। यह कंपनियों पर निर्भर करता है कि वह कैसे इसकी कीमत तय करेंगी। गौरतलब है कि कर्नाटक में 12 मई को मतदान है, और ऐसा माना जा रहा है कि 12 मई की रात को ही तेल के दामों में इजाफा किया जाएगा। अब देखना यह है कि इस इजाफे में बीते करीब तीन सप्ताह का झटका दिया जाएगा, या फिर धीरे-धीरे तेल कंपनियां मुनाफा वसूली करेंगी।
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