कभी चहल-पहल से भरा लाहौरी मोहल्ला वाराणसी के नक्शे से लुप्त हो गया है। लेकिन लोगों के जहन में अब भी इस मोहल्ले की तमाम यादे जिंदा हैं। यहां के रहने वाले 60 साल के कृष्ण कुमार शर्मा उर्फ मुन्ना मारवाड़ी बेहद खफा हैं। वे सिर्फ 20 साल के थे जब आरएसएस में शामिल हुए थे और करीब चार दशक से बीजेपी के पितृ संगठन की सेवा करते रहे। लेकिन अब वे खुद को लावारिस पाते हैं।
वाराणसी के मंदौदी इलाके में एक निर्माणाधीन घर के नीचे बैठे मुन्ना मारवाड़ी संघ के साथ बिताए दिनों को याद करते हैं। वे कहते हैं, “मैंने संगठन को अपनी जवानी दे दी, लेकिन बीजेपी सरकार ने मेरे ही पुश्तैनी मकान पर बुलडोज़र चला दिया। और अब कोई मेरे साथ नहीं खड़ा है।”
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अभी दो महीने पहले तक मुन्ना अपने तीन भाइयों और दो बहनों के साथ दशकों से लाहौरी मोहल्ले के अपने पुश्तैनी मकान में रहते थे। लेकिन बीजेपी सरकार ने जबरदस्ती उनसे मकान खाली करा लिया।
मुन्ना का मकान उन ढाई सौ मकानों में से एक था जिसे काशी विश्वनाथ कॉरीडोर के लिए ध्वस्त कर दिया गया। कॉरिडोर परियोजना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना है जिसे बीजेपी सरकार करीब 600 करोड़ रुपए खर्च कर तैयार करा रही है। इस योजना के तहत करीब 45000 वर्गमीटर जगह को खाली कराया गया है।
सरकारी दावों के मुताबिक इस परियोजना में करीब 50 फीट चौड़ा कॉरीडोर बनाया जाना है जो काशी विश्वनाथ मंगिर को सीधे गंगा के मणिकर्निका घाट से जोड़ेगा। लेकिन मुन्ना जैसे लोग सरकार की इस योजना से कतई सहमत नहीं हैं।
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मुन्ना इस योजना के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दोषी ठहराते हुए कहते हैं कि, “मैंने कल्पना भी नहीं की थी कि बीजेपी सरकार मोदी की रजामंदी से मेरा घर उजाड़ देगी।” मुन्ना ने 2014 में मोदी की जीत के लिए जी-जान लगा दी थी, लेकिन अब वे कहते हैं कि, “यह सब बिल्डर लॉबी को खुश करने के लिए किया गया है।” वे कुछ बीजेपी नेताओं पर भी उंगलियां उठाते हैं, लेकिन उनके नाम टाल जाते हैं।
छत की तरफ देखते हुए मुन्ना एक ही सांस में मोदी, बीजेपी और आरएसएस को शाप देते हैं। वे कहते हैं कि लोग तो सब परेशान हैं, लेकिन अपनी जान के डर से वे बीजेपी सरकार और मोदी के खिलाफ बोलते हुए घबराते हैं।
तो क्या मुन्ना को उनके घर का मुआवजा नहीं मिला, वे कहते हैं, “आप मकान का मुआवज़ा दे सकते हैं, लेकिन रिश्तों का जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई कौन करेगा?”
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मुन्ना ने इस परियोजना के खिलाफ जनहित याचिका भी दायर की थी और केंद्र और यूपी सरकार पर लोगों को बेघर करने और वाराणसी को नष्ट करने का आरोप लगाया था। वे कहते हैं कि बीजेपी सरकार ने धोखाधड़ी कर जमीन का अधिग्रहण किया है। उन्होंने बताया कि, “मेरी याचिका से घबराकर योगी सरकार ने जमीन का अधिग्रहण राज्यपाल के नाम पर किया है, क्योंकि काशी विश्वनाथ मंदिर एक्ट के तहत सरकार और मंदिर प्रशासन 10000 रुपए से ऊपर की कोई भी संपत्ति नहीं खरीद सकती। इसीलिए सरकार ने जमीन अधिग्रहण के लिए दूसरा तरीका अपनाया।”
मुन्ना की ही तरह लाहौरी मोहल्ले के करीब 2500 लोग हैं जिनके पुश्तैनी घर उजड़े हैं। मुन्ना बताते हैं कि, “मेरी ही तरह यहां के तमाम लोग मोदी के कट्टर समर्थक थे, लेकिन इस बार हमने नोटा इस्तेमाल करने का फैसला किया है।” मुन्ना दावा करते हैं कि उनके प्रभाव में करीब 500 वोट हैं और वे सब विरोधस्वरूप नोटा का इस्तेमाल करेंगे।
इस मोहल्ले को 19वीं शताब्दी में सिख शासक महाराजा रंजीत सिंह ने अपने राज के व्यापारियों के लिए बसाया था। ऐतिहासिक रिकॉर्ड बताते हैं कि जब इंदौर की अहिल्या बाई होलकर ने 1780 में मंदिर को दोबारा काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार किया तो महाराजा रंजीत सिंह ने सोने की प्लेटे दान की थीं।
मुन्ना बताते हैं कि, “अमृतसर के स्वर्ण मंदिर के बाद यह दूसरा मंदिर है जिसमें सोने के गुंबद हैं। मोहल्ला तो नक्शे से मिट गया, लेकिन हमारी यादों से इसे कौन मिटा सकता है...”
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