सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पेगासस जासूसी कांड की जांच की मांग के लिए दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सोशल मीडिया पर समानांतर बहस पर नाराजगी जताई। चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यदि सिस्टम का उपयोग कर रहे हैं, तो अदालत के फैसले की प्रणाली और प्रक्रिया में विश्वास होना चाहिए। शीर्ष अदालत ने जोर देकर कहा कि बहस अदालत कक्ष के भीतर होनी चाहिए न कि बाहर और बहस को सीमा पार नहीं करनी चाहिए।
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मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना की अध्यक्षता वाली जस्टिस विनीत सरना और सूर्यकांत की पीठ ने विभिन्न याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ताओं से कहा कि कार्यवाही के दौरान कुछ अनुशासन और उचित बहस होनी चाहिए। शीर्ष अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि जिन लोगों ने इस मुद्दे पर जनहित याचिका दायर की है, उनसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म या ट्विटर पर समानांतर बहस चलाने की उम्मीद नहीं है।
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शीर्ष कोर्ट ने कहा कि सिस्टम में कुछ विश्वास रखें, समानांतर कार्यवाही या समानांतर बहस ट्विटर या सोशल मीडिया पर नहीं होनी चाहिए। पीठ ने जोर देकर कहा कि याचिकाकर्ताओं को अदालत के फैसले की प्रणाली और प्रक्रिया में विश्वास होना चाहिए। पीठ ने कहा, "कुछ अनुशासन होना चाहिए। हमने कुछ सवाल पूछे। एक निर्णय प्रक्रिया है। कभी-कभी यह आपके लिए असुविधाजनक हो सकता है। इस तरह यह प्रक्रिया है। दोनों पक्षों को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।"
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पीठ ने कहा कि अगर याचिकाकर्ता हमारे संज्ञान में कुछ लाना चाहते हैं तो उन्हें इसे यहां दर्ज करना चाहिए। पत्रकार एन. राम का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि पिछली बार कैलिफोर्निया की अदालत के बारे में उनके मुवक्किल के बयानों के बारे में बयान दिए गए थे। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि इसे संदर्भ से बाहर ले जाया गया, लेकिन बहस को सीमा पार नहीं करनी चाहिए। उन्होंने दोहराया, "यदि वे सिस्टम का उपयोग कर रहे हैं, तो उन्हें सिस्टम में विश्वास होना चाहिए।
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बता दें कि शीर्ष अदालत में कई याचिकाएं दायर की गई हैं, जिसमें पेगासस जासूसी के आरोपों की अदालत की निगरानी में जांच की मांग की गई है। शीर्ष अदालत ने केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा मामले में निर्देश लेने के लिए शुक्रवार तक का समय मांगने पर मामले की सुनवाई सोमवार तक के लिए स्थगित कर दी है।
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