मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह द्वारा मिजोरम के सीएम जोरमथांगा के खिलाफ तीखे हमलों के बीच आइजोल के सूत्रों ने बड़ा खुलासा करते हुए दावा किया है कि हिंसा प्रभावित पड़ोसी राज्य में शांति लाने में मदद करने की मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) सरकार की पेशकश को इंफाल में अधिकारियों ने ठुकरा दिया था और मिजोरम सरकार की शांति टीम को राज्य में प्रवेश की अनुमति नहीं दी थी।
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एक सूत्र ने बताया कि मई के पहले हफ्ते में हिंसा के तीन दिनों के भीतर मिजोरम सरकार ने कानून मंत्री टीजे लालनंतलुआंगा के नेतृत्व में एक शांति टीम तैनात करने का फैसला किया था। लेकिन, इस पर विचार नहीं किया गया। मुख्यमंत्री ने मिजोरम के गृह आयुक्त एच लालेंगमाविया को टीम की यात्रा और मणिपुर का दौरा सुनिश्चित करने का काम सौंपा था क्योंकि सीएम जोरामथांगा को लग रहा था, समस्या अनुसूचित जनजाति (एसटी) के दर्जे के मुद्दे पर टकराव से भी बड़ी हो सकती है।
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इसके बाद गृह आयुक्त ने मिजोरम सरकार की पेशकश बताने के लिए मणिपुर के मुख्यमंत्री के सचिव से बात की। लेकिन लगभग एक घंटे के बाद उन्हें निगेटिव टेक्स्ट मैसेज मिला। मिजोरम सरकार के सूत्रों ने कहा कि राज्य की मुख्य सचिव रेनू शर्मा ने भी मई में "सद्भावना मिशन" के बारे में मणिपुर के मुख्य सचिव से संपर्क करने की कोशिश की थी। लेकिन उन्हें बताया गया कि मिजोरम की ऐसी टीमों को अनुमति दी जानी चाहिए या नहीं, इस पर केवल मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ही फैसला लेंगे।
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बुधवार को इंफाल में कारगिल दिवस समारोह को संबोधित करते हुए बीरेन सिंह ने आइजोल में आयोजित एकजुटता रैली में उनके खिलाफ अपमानजनक शब्दों के इस्तेमाल की कड़ी निंदा की, जिसमें ज़ोरमथांगा भी शामिल थे। बीरेन सिंह ने जोरमथांगा से दूसरे राज्य के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करने का आग्रह किया था।
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बता दें कि एमएनएफ भी बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए और नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस का हिस्सा है। जोरमथांगा पूर्वोत्तर राज्य के सबसे वरिष्ठ मुख्यमंत्री भी हैं। मिजो लोग कुकी और मणिपुर के अन्य आदिवासी समुदायों के साथ जातीय बंधन साझा करते हैं। उनमें से लगभग 12,000 लोग, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं, अब आइजोल और मिजोरम के अन्य स्थानों में रह रहे हैं।
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