चारा घोटाले की जब भी चर्चा होती है, तो यही कहा जाता है कि लालू प्रसाद यादव राज में स्कूटरों से चारे और मवेशियों की ढुलाई हुई थी और कोर्ट ने इसीलिए इतने लोगों को सही ही सजा दी। वैसे, जांच के दौरान इस किस्म की खबरें सुर्खियां बन रही थीं। तब सोशल मीडिया का जमाना नहीं था। लेकिन अखबारों की मूल कॉपी तो छोड़िए, विपक्ष इनकी फोटो कॉपी बंटवाता था। नीतीश कुमार को बिहार की राजनीति करनी थी और उनके संगी सुशील कुमार मोदी हमेशा साथ थे। दोनों मिलकर खूब प्रचारित करते थे कि स्कूटरों पर टनों-टन सामान ढुलाई की गई। लेकिन अपने समय में ऐसा होने पर नीतीश कुमार चुप हैं।
नीतीश के ‘सुशासन’ में धान मिलों तक इसी तरह दुपहियों-कारों से टनों-टन धान पहुंचाए गए हैं। इतना ही नहीं, जहां मिल का नामोनिशान नहीं, वहां भी धान पहुंचा। छोटी क्षमता वाली मिलों में भारी मात्रा में धान पहुंचाने के चक्कर में मनचाहे नंबर की गाड़ी का पुर्जा कटा दिया, यह देखे बगैर कि यह ट्रक का नंबर है भी या नहीं। और, यह सब मुंहबोली बात नहीं बल्कि जांच रिपोर्ट में साबित हो चुका है।
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नीतीशराज में ही जब पहली बार यह सच खुला, तब भी सरकार चुप्पी मार गई थी और अब जब जांच रिपोर्ट में इसकी पुष्टि हुई है, तब भी ऊपर वालों तक जिम्मेदारी की न तो जांच पहुंची और न ही आंच पहुंचेगी। बिहार में 1,573 करोड़ के धान घोटाले की सीआईडी जांच रिपोर्ट इन दिनों चर्चा में है। यह मामला वर्ष 2012-13 में पहली बार सामने आया था। तब भी यह बात आई थी कि फर्जी चावल मिलों को गलत तरीके से धान उपलब्ध कराया गया था।
2005 में सत्ता संभालने के बाद से ही नीतीश ने धान खरीद को बिहार के किसानों की उन्नति दिखाने का रास्ता बताया। किसानों की हर सभा में नीतीश धान खरीद को लेकर एक से एक कीर्तिमान की चर्चा करते सुनाई देते हैं। लेकिन 2012 से अब तक कभी उन्होंने यह नहीं बताया कि उनके राज में यह सुरंग कैसे? 2012 से 2015 के बीच चावल मिल मालिकों ने 74 लाख टन से अधिक के धान के बदले चावल निकालकर नहीं दिया। इसकी तत्कालीन कीमत करीब 1,573 करोड़ थी। बीच में जब नीतीश ने बीजपी से अलग होकर सरकार बनाई, तो बीजेपी ने इस पर हल्का- फुल्का हमला बोला।
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लेकिन लगभग सात साल बाद हालत यह है कि सीआईडी राज्य के 1,400 से अधिक चावल मिलों की जांच ही कर रही है। अब भी जो रिपोर्ट सामने आ रही है, उसमें बताया गया है कि अब तक 280 सरकारी कर्मियों पर अनियमितता के केस में कार्रवाई हुई है। खास बात यह है कि ऐसा हुआ तो पूरे राज्यमें होगा लेकिन बिहार राज्य खाद्य निगम ने एक ही जिले के अपने जिला प्रबंधक की प्रोन्नति रोकने भर की जहमत उठाई। इसके अलावा अंचल स्तरीय तीन कर्मचारियों पर गबन की पुष्टि पर वसूली का आदेश जारी हुआ।
1,573 करोड़ के घोटाले में नीलामी वाद के जरिये 349 करोड़ की वसूली हुई है, बाकी पैसों का कोई हिसाब अब तक नहीं मिला। जिन अफसरों को जिले से बाहर के मिल मालिकों के साथ अनुबंध तक का अधिकार नहीं होता, उन्होंने दूसरे जिलों समेत पड़ोसी राज्यों के मिल मालिकों से अनुबंध किए और उन्हें धान सप्लाई किया। पर वे इस कार्रवाई की जद से अब तक बाहर हैं।
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सुप्रीम कोर्ट की सख्त डांट के बाद राज्य में पांच जगह धान घोटाले के लिए विशेष कोर्ट बनाने की औचारिकता तो हुई लेकिन गिने-चुने अफसरों पर कार्रवाई भी तब हुई जब इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने ताकीद की। कार्रवाई तो धान की सप्लाई के लिए फर्जी मिलों को चिह्नित करने वाले हर स्तर के अधिकारी पर होनी चाहिए थी और कम क्षेत्रफल की जमीन को बड़े आकार का बताने वाला दस्तावेज जारी करने के आरोपी अंचलाधिकारियों पर भी। जांच बढ़ने के बाद कृषि विभाग से लेकर परिवहन विभाग तक के अधिकारियों को घालमेल और अनदेखी के आरोप में आरोपी बनाया जाना चाहिए था। लेकिन राज्य सरकार के नियंत्रण वाली जांच एजेंसी सीआईडी ने ऊपर की ओर आंख उठाने की जहमत ही नहीं की। इस बात तक के लिए दोषियों पर कार्रवाई सलीके से नहीं की गई कि कैसे यूपी की कार या झारखंड की बाइक के नंबरों से टनों-टन धान की सप्लाई की जा सकती है।
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जांच रिपोर्ट को लेकर अधिकारी से मंत्री तक जिससे भी बात करने की कोशिश की गई, सबने एक ही लाइन का जवाब दिया कि जांच चल रही है और मामला कोर्ट के संज्ञान में है इसलिए कुछ कहना मुनासिब नहीं। वैसे, यह भी सुशासन राज में मुनासिब नहीं माना जाएगा कि वर्षों ऐसे घोटाले हों और दोषी मानी भी जाएं तो छोटी मछलियां!
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