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पीएमओ में तैनात ओएसडी ने रेल मंत्री पीयूष गोयल को कहा ‘कम बुद्धि’ और रेलवे बोर्ड के सदस्यों को ‘अंधा’

प्रधानमंत्री कार्यालय में प्रतिनियुक्ति पर तैनात एक ओएसडी ने रेल मंत्री पीयूष गोयल और रेलवे बोर्ड के सदस्यों पर तीखे कटाक्ष करते हुए रेलवे की हालत पर एक लेख लिखा है। इसके बाद उनके खिलाफ विभागीय कार्यवाही की कवायद शुरु करते हुए रेलवे ने उन्हें पीएमओ से वापस मांग लिया है।

फोटो सौजन्य : railsamachar.com
फोटो सौजन्य : railsamachar.com 

रेलवे बोर्ड के सचिव ने प्रधानमंत्री कार्यालय में तैनात एक ओएसडी यानी ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी से मुक्त कर रेलवे में भेजने की मांग की है। इस ओएसडी पर सरकारी शिष्टाचार के उल्लंघन और दुर्व्यवहार का आरोप लगाया है।

कार्मिक विभाग को भेजे गए सरकारी पत्रचार में कहा गया है कि:

“भारतीय रेल कार्मिक सेवा के अधिकारी हैंसंजीव कुमार के आचरण में सरकारी शिष्टाचार और दुर्व्यवहार का मामला रेलवे बोर्ड के संज्ञान में लाया गया है। संजीव कुमार ने रेल समाचार डॉट कॉम में एक लेख लिखा है, जो कि सभ्य नहीं है। इस लेख में सचिव स्तर तक के वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों की काबिलियत पर सवाल उठाया गया है। साथ ही इस लेख के जरिए रेल मंत्री (पीयूष गोयल) पर भी आरोप लगाया गया है...”

रेलवे बोर्ड के सचिव ने कार्मिक विभाग के सचिव सी चंद्रमौली से तुरंत इस अधिकारी को वापस रेलवे में भेजने की मांग की है ताकि उसके खिलाफ उचित कार्यवाही शुरु की जा सके। संजीव कुमार भारतीय रेल कार्मिक सेवा (आईआरपीएस) के 2005 बैच के अधिकारी हैं और प्रतिनियुक्ति (डेपुटेशन) पर पीएमओ में कार्मिक विभाग के मंत्री जीतेंद्र सिंह के ओएसडी के रूप में तैनात हैं।

संजीव कुमार ने इस लेख में रेलवे बोर्ड के छह सदस्यों की तुलना मशहूर कहावत ‘छह अंधे और एक हाथी’ से की है। कहावत है कि अंधों ने कभी हाथी नहीं देखा है, ऐसे में सभी अंधे एक-एक कर हाथी के विभिन्न अंगों को छूते हैं और कहते हैं कि यह पशु या तो किसी रस्सी की तरह है या फिर किसी स्तंभ की तरह।

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इस कहावत से रेलवे बोर्ड के सदस्यों की तुलना करते हुए संजीव कुमार ने लिखा है कि रेलवे के अलग-अलग विभागों से आए इन छह सदस्यों को रेलवे के बारे में पूर्ण जानकारी नहीं है और वे केवल अपने अपने विभाग और हितों को साधने में लगे रहते हैं। लेख में संजीव कुमार लिखते हैं कि, “भारतीय रेल की उच्चतर संस्था रेलवे बोर्ड को समझना हो तो हाथी और गांव के छह अंधों की कहानी को फिर से याद करना होगा। अंतर सिर्फ इतना है कि यहां इन छह अंधों के साथ-साथ ये लोग अपने अपने कबीले के सरदार भी हैं और अपनी बातों को परम सत्य मानते हैं. बुद्धिमान व्यक्ति के हस्तक्षेप के बाद ये छह अंधे तो हाथी को समझ जाते हैं और आपसी तर्क-वितर्क तथा झगड़े को समाप्त करके एक बेहतर ज्ञान का अवदान करते हैं। किंतु रेलवे बोर्ड के इन 6 कबीला प्रेमी अंधों को कोई बुद्धिमान नहीं समझा सकता, इसलिए यह राष्ट्रहित और रेलहित को कभी नहीं समझ पाते और हमेशा अपने कबिलाई हित को ही सर्वोपरि रखते हैं।”

संजीव कुमार ने लिखा है कि, “भारतीय रेल में बुद्धिमान व्यक्ति की भूमिका में दो व्यक्ति हैं। पहला, अध्यक्ष रेलवे बोर्ड तथा दूसरा, रेलमंत्री। दुर्भाग्य से पहला बुद्धिमान व्यक्ति, अध्यक्ष रेलवे बोर्ड कभी भी अपने कबीलाई प्रेम से बाहर नहीं निकल पाए और हमेशा उनके हितों को साधने की चेष्टा करते रहे हैं। यही कारण है कि दूसरे बुद्धिमान व्यक्ति अर्थात रेलमंत्री को हमेशा पक्षपातपूर्ण तरीके से प्रभावित करते रहे हैं, जिससे राष्ट्रहित की जगह कबीलाहित का पक्ष ज्यादा भारी रहा है। यही वजह है कि आजादी के समय चीन की रेलवे हमसे काफी पीछे थी, जो कि आज हमसे कई गुना आगे बढ़ चुकी है। चीन के इंजीनियर्स 300 किमी प्रतिघंटा की रफ्तार से बुलेट ट्रेन चला रहे हैं और हम आज भी 180 किमी प्रतिघंटा की गति की ट्रेन का ट्रायल कर रहे हैं।”

संजीव कुमार ने लिखा है कि रेलवे पर्सनल सर्विस में विशेष काबिलियत के अफसर हैं, फिर भी रेलवे बोर्ड में सदस्य (कार्मिक) को दूसरे विभागों से लिया जाता है। संजीव कुमार ने लेख में इस बात पर हैरानी जताई है कि आखिर रेलवे की मौजूदा आठ सेवाओं का विलय कर दो पूर्ण सेवाओं में बदलने की बिबेक देबरॉय कमेटी की रिपोर्ट क्यों नहीं मानी गई।

संजीव कुमार ने रेल मंत्री (पीयूष गोयल) की एक घोषणा का भी लेख में जिक्र करते हुए उन्हें उनका वादा याद दिलाया है। कुमार ने लेख में कहा है कि, “कुछ महीने पूर्व माननीय रेलमंत्री ने कई टीवी चैनलों के माध्यम से घोषणा की कि रेल की समस्त समस्याओं का समाधान उन्होंने ढूंढ लिया है और अब संयुक्त सचिव के ऊपर के पदों पर जो लोग कायम हैं, उनकी सेवाओं को एकीकृत कर दिया जाएगा, जिससे विभागवाद की समाप्ति हो जाएगी.. और जब विभागों के उच्च पदों पर कोई विवाद नहीं होगा, तो नीचे भी विवाद समाप्त हो जाएगा। माननीय रेलमंत्री को जिस किसी ने भी यह ज्ञान दिया था, बड़ा ही शरारतपूर्ण था। ऐसा करने से पहले बुद्धिमान व्यक्ति के कबीले का साम्राज्य कायम हो जाता, क्योंकि उनकी सेवाओं में सबसे कम उम्र में अधिकारियों का आगमन होता है। सिविल सेवा के दो अन्य विंग ने इसका पुरजोर विरोध किया। किंतु कार्मिक सेवा के अधिकारियों ने रेलमंत्री के सुझाव का समर्थन इस सलाह के साथ किया कि इन पदों पर पदस्थापना करते वक्त आठों सर्विसेस के अनुपात का ध्यान रखा जाए। सदस्य कार्मिक को बताना चाहिए कि रेलमंत्री की उक्त घोषणा का क्या हुआ?”

संजीव कुमार ने अपने लेख को एक सुझाव और एक मिसाल के साथ खत्म किया है। उन्होंने लिखा है कि, “चेयरमैन, रेलवे बोर्ड का पद भी एक निष्पक्ष विशेषज्ञ द्वारा भरा जाना चाहिए। आप नंदन नीलकेणी, सुंदर पिचाई अथवा ऐसी ही किसी अन्य शख्सियत को इस पद पर बैठा सकते हैं। कम से कम भारतीय रेल में दो लोग सदस्य कार्मिक और चेयरमैन, रेलवे बोर्ड तो निष्पक्ष सोच के होने ही चाहिए. इन दोनों पदों पर हमेशा कबीलाई सोच के व्यक्तियों के कब्जा रहने से रेल और राष्ट्र का बड़ा नुक़सान हो रहा है। रेलमंत्री जी आज की तारीख में भारतीय रेल की उच्चतम संस्था में महज चेयरमैन, रेलवे बोर्ड और सदस्य कार्मिक का पद ही एक्स-कैडर है। हम चाहते हैं कि आप इसे एक्स-रेल कर दें, जिससे विश्व के सर्वोत्तम लोग इन दोनों पदों को सुशोभित कर सकें। फिर भारतीय रेल की समस्या सुधारने तथा विकास को गति देने की जिम्मेदारी इन दोनों पर छोड़ दें। शायद इससे अच्छा योगदान भारतीय रेल और राष्ट्र के लिए रेलमंत्री रहते हुए कुछ और नहीं हो सकता। वर्ष 1901 में अंग्रेजों ने फ्रैंक डिसूजा नामक एक गार्ड को पहली बार (एक भारतीय को) रेलवे का मेंबर बनाया था, जबकि अन्य दो सदस्य भारतीय सिविल सेवा के अंग्रेज अधिकारी थे। इसकी सीख यह है कि विकास को दिशा देने के लिए हमें सर्वश्रेष्ठ दिमाग को मौका देना चाहिए, न की कबिलाई सोच के उन व्यक्तियों को, जिनका एक मात्र उद्देश्य अपने कबीले और अपना हितसाधन करना है।”

इस लेख के प्रकाशन के बाद से रेलवे में अफरा-तफरी का सा माहौल है और हो सकता है आने वाले दिनों में संजीव कुमार को दिक्कतों का सामना करना पड़े।

नोट- यह लेख रेलसमाचार डॉट कॉम पर अभी भी उपलब्ध है

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