सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा को जबरन छुट्टी पर भेजे जाने के खिलाफ याचिकाओं पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
Published: 06 Dec 2018, 5:42 PM IST
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में आज तीखी बहस दखने को मिली। इस दौरान सीजेआई रंजन गोगोई ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को फटकार लगाते हुए पूछा, “सीबीआई के दोनों अधिकारियों के बीच झगड़ा रातोंरात तो नहीं हुआ। ये जुलाई से चल रहा था तो डायरेक्टर आलोक वर्मा को हटाने से पहले चयन समिति से मशवरा क्यों नहीं किया गया। काम से हटाने से पहले चयन समिति से बात करने में क्या दिक्कत थी? 23 अक्टूबर को अचानक फैसला क्यों लिया गया?”
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि हर सरकार का मकसद सबसे बेहतर विकल्प अपनाने पर होना चाहिए। सीजेआई रंजन गोगोई ने आगे पूछा कि सरकार क्यों 23 अक्टूबर को सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजने को मजबूर हुई जबकि वे कुछ ही महीनों में रिटायर होने वाले थे तो ऐसे में सरकार ने कुछ महीने इंतजार करना और चयन समिति से बात करना क्यों नही मुनासिब समझा? उन्होंने आगे कहा कि सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा से सारी शक्तियां छीनने का रातों-रात निर्णय लेने के लिए किसने प्रेरित किया?
सुनवाई के दौरान सीजेआई के सवालों पर जवाब देते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, “सीवीसी ने यह निष्कर्ष निकाला था कि एक असाधारण परिस्थिति है और असाधारण परिस्थितियों से निपटने के लिए कभी-कभी असाधारण उपाय भी करने पड़ते हैं। सीवीसी का आदेश निष्पक्ष था, दो शीर्ष अधिकारी आपस में लड़ रहे थे और अहम माामलों को छोड़ एक दूसरे के खिलाफ मामलों की जांच कर रहे थे।” उन्होंने आगे कहा कि सीबीआई में जैसे हालात थे, उसमें सीवीसी मूकदर्शक बन कर नहीं बैठा रह सकता था। ऐसा करना अपने दायित्व को नजरअंदाज करना होता।
सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने दलील पेश की और कहा, “हम कमेटी के पास इसलिए नहीं गए क्योंकि यह ट्रांसफर से जुड़ा मामला नहीं था। अगर हम कमेटी के पास जाते तो वो कहती कि यह मामला उनके पास लाया गया है? ये याचिकाकर्ता का बनावटी तर्क है कि यह मामला ट्रांसफर का है। उन्होंने कहा कि इस असाधारण स्थिति से निपटने के लिए की गई कार्रवाई उचित थी।
Published: 06 Dec 2018, 5:42 PM IST
सरकार और सीवीसी की दलीलों के जवाब में आलोक वर्मा के वकील फली नरीमन ने कहा कि वर्मा को छुट्टी पर भेजे जाने के पीछे असल वजह उनका राकेश अस्थाना के खिलाफ एफआईआर दर्ज करना था। बिना अधिकार के आलोक वर्मा को सरकार की ओर से सीबीआई डायरेक्टर कहने का कोई औचित्य नहीं है। उन्होंने कहा कि ये ऐसी पोस्ट नहीं है जो केवल आपके विजिटिंग कार्ड पर लिखी हो। निदेशक को छुट्टी पर भेजने के बाद सरकार के लिए यह कहना काफी नहीं है कि आलोक वर्मा अभी भी निदेशक हैं।
चीफ जस्टिस ने आगे पूछा कि क्या यहां कोई कार्यकारी सीबीआई निदेशक नहीं हो सकता? तब नरीमन ने कहा कि नहीं। चीफ जस्टिस ने पूछा कि अगर कोई विशेष परिस्थिति आ जाए तो क्या कोर्ट सीबीआई निदेशक नियुक्त कर सकता है? तब नरीमन ने कहा कि हां, अगर सुप्रीम कोर्ट अपनी असीम शक्तियों का प्रयोग करे तो। नरीमन ने कहा कि आलोक वर्मा कहीं पर जाएं और अपना विजिटिंग कार्ड (जिस पर सीबीआई निदेशक लिखा है) देकर कहें कि मैं सीबीआई निदेशक हूं परंतु उनके पास कोई अधिकार या पावर नहीं है। मैं ऐसा सीबीआई निदेशक अब हूं।
Published: 06 Dec 2018, 5:42 PM IST
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Published: 06 Dec 2018, 5:42 PM IST