त्तर प्रदेश के संभल जिले में स्थित जामा मस्जिद में रविवार को सर्वेक्षण के काम के दौरान हुई हिंसा के मद्देनजर जिला प्रशासन ने आगामी 30 नवंबर तक जिले में बाहरी लोगों के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी है। बयान में कहा गया है कि अब किसी भी बाहरी व्यक्ति, सामाजिक संगठन या जनप्रतिनिधि को जिले में दाखिल होने के लिए प्रशासन से अनुमति लेनी होगी। इस बीच विपक्षी दलों ने संभल में हुई हिंसा के लिए बीजेपी को जिम्मेदार ठहराया और आरोप लगाया कि पार्टी ने अपनी "नफरत की राजनीति" को बढ़ावा देने के लिए मस्जिद में सर्वेक्षण दल भेजा था।
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समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा कि उसकी सरकार और प्रशासन ने "चुनावी गड़बड़ी से ध्यान हटाने के लिए" हिंसा की साजिश रची। उन्होंने कहा, "चुनाव के बारे में चर्चा को बाधित करने के लिए सुबह जानबूझकर एक सर्वेक्षण दल भेजा गया था। इसका उद्देश्य अराजकता पैदा करना था ताकि चुनावी मुद्दों पर कोई बहस न हो सके।"
अखिलेश यादव ने बीजेपी पर सत्ता के दुरुपयोग करने का आरोप लगाते हुए राज्य में नौ विधानसभा सीट पर हुए उपचुनावों के दौरान “इलेक्ट्रॉनिक बूथ कैप्चरिंग” का भी आरोप लगाया और कहा कि अगर निर्वाचन आयोग ईवीएम की फोरेंसिक जांच करवा ले तो स्थिति स्पष्ट हो जाएगी।
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उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय ने कहा कि तनावग्रस्त संभल की जामा मस्जिद में आज सुबह जानबूझकर सर्वेक्षण टीम भेजी गई ताकि सत्तारूढ़ बीजेपी द्वारा की जा रही नफरत की राजनीति को और बढ़ावा दिया जा सके।
अजय राय ने यहां एक बयान में कहा, ''कानून व्यवस्था के झूठे दावे करने वाली योगी (आदित्यनाथ) सरकार की सच्चाई हम सबके सामने है। प्रदेश में आए दिन हिंसा की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं और प्रशासन पूरी तरह से इसे रोकने में विफल रहा है।''
उन्होंने कहा, ''जब प्रदेश का मुख्यमंत्री खुद ही "बंटेंगे तो कटेंगे" जैसे बयान दे तो फिर कैसे प्रदेश में शांति का माहौल हो सकता है। यह पूरी तरीके से सुनियोजित प्रकरण है। जामा मस्जिद में आज सुबह जानबूझकर सर्वे टीम भेजी गई ताकि भाजपा द्वारा की जा रही नफरत की राजनीति को और बढ़ावा दिया जा सके।''
अजय राय ने पुलिस के रवैये पर सवाल करते हुए कहा, ''इस पूरे मामले में पुलिस का जिस तरह का रवैया रहा है, वो बेहद शर्मनाक है। गोली चलाना कहां से न्याय है? क्या प्रदेश को बंदूक की नोक पर चलाया जाएगा?''
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उन्होंने कहा, ''यह पहली घटना नहीं है जब पुलिस का रवैया इस तरह रहा है। इससे पहले हमने उपचुनाव में देखा है कि सरकार के इशारे पर पुलिस किस तरह से कार्य कर रही थी। इस पूरे मामले की जांच की जाए और घटना के दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई की जाए।''
इस बीच, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की उत्तर प्रदेश इकाई ने मस्जिद सर्वेक्षण से जुड़ी संभल की घटना को सुनियोजित साजिश करार दिया है। माकपा की उत्तर प्रदेश इकाई के सचिव हीरालाल यादव ने एक बयान में कहा कि सवाल यह है कि सर्वेक्षण की इतनी जल्दी क्यों थी?
हीरालाल यादव ने कहा कि बीजेपी सरकार और सांप्रदायिक ताकतें मंदिर-मस्जिद के बहाने प्रदेश में अशांति फैलाकर राजनीति करना चाहती हैं। उन्होंने जनता से शांति बनाए रखने की अपील की और मांग की कि घटना की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए।
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उधर, भाकपा-माले ने संभल में हुई हिंसा के लिए बीजेपी को जिम्मेदार ठहराया है। पार्टी की उत्तर प्रदेश इकाई के सचिव सुधाकर यादव ने कहा कि उपचुनाव में जीत से उत्साहित बीजेपी ध्रुवीकरण को हवा दे रही है और प्रदेश को सांप्रदायिकता की आग में झोंकना चाहती है।
उन्होंने कहा कि ध्रुवीकरण, सांप्रदायिक सौहार्द को नुकसान पहुंचाना और सत्ता बचाना ‘भगवा ब्रिगेड’ का रोजाना का काम हो गया है तथा इस नकारात्मक राजनीति को प्रभावी ढंग से रोका जाना चाहिए।
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इस बीच, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के दोनों समूहों ने संभल हिंसा की निंदा करते हुए पुलिस प्रशासन पर गम्भीर आरोप लगाये हैं। जमीयत उलेमा-ए-हिन्द (अरशद मदनी गुट) ने एक बयान में आरोप लगाते हुए कहा कि सर्वेक्षण टीम मुस्लिम पक्ष को भरोसे में लिए बगैर तेजी दिखाते हुए दूसरी बार सर्वेक्षण करने पहुंची। बयान में आरोप लगाया गया है कि जब टकराव हुआ तो पुलिस ने हालात संभालने के बजाए गोलीबारी की जिससे तीन नौजवानों की मौत हो गई।
जमीयत ने मांग की कि अपनी जिम्मेदारियां को सही तरीके से न निभाने वाले पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों पर कार्रवाई हो। जमीयत के महमूद मदनी गुट ने भी एक बयान जारी कर संभल की घटना के लिये राज्य की भाजपा सरकार को जिम्मेदार ठहराया। गुट के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि हिंसा के दौरान पुलिस की कार्रवाई न केवल अन्यायपूर्ण बल्कि भेदभावपूर्ण है। महमूद मदनी ने कहा कि मस्जिदों में मंदिर खोजने की कोशिशें देश में शांति और सौहार्द के लिए खतरनाक हैं।
राज्यसभा के पूर्व सदस्य मदनी ने अदालत के तत्काल सर्वेक्षण आदेश पर भी सवाल उठाते हुए इसे पूजा स्थल अधिनियम 1991 के खिलाफ बताया, जिसमें धार्मिक स्थलों की 1947 की स्थिति की सुरक्षा का प्रावधान है।
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