विपक्षी दलों ने संयुक्त संसदीय समिति (जीपीसी) अध्यक्ष जगदंबिका पाल पर पक्षपात के आरोप लगाए हैं और लोकसभा अध्यक्ष को पत्र लिख कर जेपीसी अध्यक्ष की शिकायत की है। विपक्षी सांसदों ने समिति की बैठको में अनदेखी और एकतरफा फैसलों का दावा करते चेतावनी दी है कि उन्हें जीपीसी से हटने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है।
विपक्षी सांसद लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से मिलकर उन्हें शिकायतों से अवगत करा सकते हैं। द्रमुक सांसद ए राजा, कांग्रेस के मोहम्मद जावेद और इमरान मसूद, एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी, आम आदमी पार्टी के संजय सिंह और तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बनर्जी सहित विपक्षी सदस्यों ने लोकसभा अध्यक्ष के नाम यह संयुक्त पत्र लिखा है।
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पत्र में लिखा है कि जैसा आप जानते हैं, वक्फ बिल 2024 के लिए गठित जेपीसी समिति इससे जुड़े मुद्दों पर चर्चा कर रही है। इस समिति के सामने मुस्लिम समुदाय के कई संगठन और विभिन्न सरकारी विभागों को प्रस्तुत होने के लिए बुलाया जा रहा है, जिससे पहले बने कानूनी नियमों और उनके प्रभाव का गहन अध्ययन और समझ जरूरी है। इन पूर्ववर्ती कानूनों में 1995 और 2013 में संसद द्वारा पारित मुख्य अधिनियम शामिल हैं। हमारा मानना है कि सरकार द्वारा प्रस्तुत यह बिल पहले के कानूनों को कमजोर करने का एक गुप्त प्रयास है, जिससे हमारे संविधान की धर्मनिरपेक्ष छवि को क्षति पहुंच सकती है।
सांसदों ने आगे लिखा कि महोदय, 1995 और 2013 में जब संसद में इन कानूनों पर चर्चा हुई थी, तो कई विभागों और मुस्लिम संगठनों के विचार शामिल किए गए थे। अब इस नए बिल के तहत समिति में होने वाली चर्चाओं और विभिन्न पक्षों द्वारा प्रस्तुत किए गए तथ्यों का विस्तृत अध्ययन और कानूनी जांच होनी चाहिए। इसके लिए बैठकों के बीच पर्याप्त समय होना आवश्यक है, ताकि समिति के सदस्य हर मुद्दे को गहराई से समझ सकें।
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पत्र में आगे कहा गया कि यह भी कहना उचित होगा कि सरकार ने नए बिल में केवल 44 संशोधन का दावा किया है, लेकिन असल में इसमें 100 से अधिक संशोधन किए गए हैं। हमें आशंका है कि इन संशोधनों से वक्फ बोर्ड के धार्मिक, आध्यात्मिक और नैतिक ढांचे पर प्रभाव पड़ेगा, जिससे हमारे देश की अल्पसंख्यक अधिकारों की छवि अंतरराष्ट्रीय समुदाय में प्रभावित हो सकती है। इन्हीं कारणों से समिति की बैठकों का समय ऐसा निर्धारित किया जाना चाहिए ताकि हर क्लॉज पर विस्तार से चर्चा हो सके और संसद की कानूनी शक्ति का सम्मान बना रहे।
पत्र के अनुसार आगे यह निवेदन किया गया कि समिति के अध्यक्ष बिना सदस्यों से विचार-विमर्श किए ही बैठक की तारीखें तय कर लेते हैं, कभी-कभी तो लगातार तीन दिनों की बैठक भी रख दी जाती है। ऐसी स्थिति में सांसदों के लिए उचित तैयारी के साथ चर्चा करना संभव नहीं हो पाता। हम विपक्ष के सदस्यों का मानना है कि जेपीसी, जो एक लघु संसद है, उसे सिर्फ एक औपचारिक प्रक्रिया बनाकर सरकार के मनमुताबिक विधेयक पास करने का माध्यम नहीं बनाया जाना चाहिए। यह पूरी तरह से असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक है। इसलिए, यह हमारा कर्तव्य है कि हम आपके ध्यान में यह बात लाएं कि सदस्यों की इच्छा के विरुद्ध उचित और समय दिए बिना जेपीसी की कार्यवाही को खत्म करना संवैधानिक धर्म और संसद पर क्रूर हमले के अलावा और कुछ नहीं है।
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सांसदों ने अपनी शिकायत न सुने जाने पर समिति से हटने की बात भी कही। उन्होंने पत्र के जरिए कहा कि हमारी आपसे विनती है कि जेपीसी के अध्यक्ष को निर्देशित करें कि वे इन महत्वपूर्ण मुद्दों पर कोई भी निर्णय लेने से पहले सदस्यों से औपचारिक रूप से परामर्श करें। इससे जनता को यह भरोसा मिलेगा कि समिति निष्पक्ष है और विधेयक पर निर्णय बिना किसी पक्षपात और संसदीय प्रक्रियाओं का पालन करते हुए लिए जा रहे हैं। अन्यथा, हमें मजबूरी में समिति से अलग होना पड़ सकता है।
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