केंद्र की मोदी सरकार और देश की न्यायपालिका में कॉलेजियम सिस्टम को लेकर जारी विवाद के बीच एक बार फिर संसदीय वर्चस्व के बहाने सरकार की ओर से न्यायपालिका को खुली चेतावनी दी गई है। जयपुर में पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने चेतावनी के लहजे में नसीहत देते हुए साफ कहा कि न्यायपालिका को अपनी संवैधानिक मयार्दा का पालन करना चाहिए।
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राजस्थान के जयपुर में आयोजित पीठासीन अधिकारियों के अखिल भारतीय सम्मेलन में आज सदन में हंगामा करने वाले सांसदों और विधायकों के लिए मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट बनाने, न्यायपालिका को संवैधानिक मर्यादा का पालन करने सहित कुल नौ प्रस्ताव पारित किये गए। इनकी जानकारी देते हुए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि कानून बनाने के मामले में विधायिका सर्वोच्च है। न्यायालय के पास कानून की न्यायिक समीक्षा का अधिकार है, लेकिन न्यायपालिका को अपनी संवैधानिक मयार्दा का पालन करना चाहिए और हर कानून की समीक्षा के लिए पीआईएल उचित नहीं है।
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इसके साथ ही ओम बिरला ने कहा कि पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में पारित प्रस्तावों में यह भी तय किया गया कि सदन में हंगामे को रोकने के लिए संसद और देश की विभिन्न विधानसभाओं में बने अच्छे नियमों को एक साथ लाकर एक मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट बनाया जाए। उन्होंने जोर देकर कहा कि पूर्व नियोजित संगठित व्यवधान लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है।
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समापन सत्र को संबोधित करते हुए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने विधायिकाओं में नियमों और प्रक्रियाओं की एकरूपता की आवश्यकता को दोहराते हुए कहा कि वित्तीय स्वायत्तता के बावजूद, नियमों और प्रक्रियाओं की एकरूपता संसदीय लोकतंत्र को मजबूत करने में मदद करेगी। उन्होंने संसदीय समितियों को और मजबूत करने की वकालत करते हुए कहा कि संसदीय समितियों में दलगत भावना से ऊपर उठकर कार्य करने की उत्कृष्ट परंपरा है। वे मिनी संसद के रूप में कार्य करती हैं।
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कुल मिलाकर राजस्थान के जयपुर में आयोजित पीठासीन अधिकारियों के अखिल भारतीय सम्मेलन में इसी बात के संकेत निकल कर आए कि वर्तमान केंद्र सरकार संसदीय बहुमत के वर्चस्व को स्थापित करना चाहती है। न्यायपालिका को संवैधानिक मर्यादा में रहने की नसीहत और सदन में हंगामा करने वाले सांसदों और विधायकों के लिए मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट बनाने के प्रस्ताव को ईस दिशा में संसदीय पहल के तौर पर देखा जा रहा है।
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