हैदराबाद और तेलंगाना के अन्य हिस्सों में इस बार ईद-उल-अजहा को लेकर बिल्कुल अलग और आधुनिक तैयारी देखने को मिल रही है। हैदराबाद में इस बार कुर्बानी का जानवर खरीदने के लिए कोई भी बाजार में भागदौड़ करता नजर नहीं आ रहा है। न ही कुर्बानी के जानवरों को जिबह करने के लिए कसाई की तलाश हो रही और न ही कोरोना हामारी के दौर में आसपास की जगह को साफ रखने को लेकर भी लोगों में कोई चिंता दिखाई दे रही है।
दरअसल तेलंगाना और हैदराबाद के ज्यादातर लोग इस बार अपने घरों में ही बैठकर कुर्बानी देने की तैयारी कर रहे हैं। इसके लिए वे पशु व्यापारियों और अन्य समूहों को कुर्बानी का काम आउटसोर्स कर रहे हैं, जो न केवल उनके लिए भेड़, बकरी या मवेशी खरीद रहे हैं, बल्कि जानवरों की कुर्बानी भी देंगे और उनके घरों तक मांस भी पहुंचाएंगे हैं और उनकी इच्छा के अनुसार गरीबों और जरूरतमंदों में वितरित भी करेंगे।
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आगामी 1 अगस्त को मनाया जाने वाला ईद-उल-अजहा जिसे बकरीद के नाम से भी जाना जाता है, तेलंगाना में इस बार कई मायनों में अलग होगा। अब तक जिस तरह से यह त्योहार मनाया जाता रहा है, उसके मनाने के अंदाज को कोविड-19 ने बदल दिया है। चूंकि राज्य में वायरस का फैलाव जारी है और हैदराबाद हॉटस्पॉट बना हुआ है, इसलिए अधिकांश मुसलमान, व्यापारियों, एनजीओ, सामाजिक-धार्मिक संगठनों और कुछ इस्लामी सेमीनरी द्वारा दी जाने वाली सेवाओं का लाभ उठा रहे हैं।
एहतियात को ध्यान में रखते हुए ज्यादातर लोग जानवर खरीदने के लिए बाहर निकलने या घर पर कुर्बानी करने से बच रहे हैं। वे जानवर की कुर्बानी देने के लिए भीड़भाड़ वाली जगहों पर जाने या कसाई को बुलाने का जोखिम नहीं उठाना चाहते।
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हर साल, सैकड़ों व्यापारी विभिन्न जिलों से भेड़ या बकरियों को हैदराबाद लेकर लाते हैं और अपने अस्थायी स्टॉल लगाते हैं। इस बार, अधिकांश व्यापारियों ने अपने स्मार्टफोन पर संभावित खरीदारों के लिए जानवरों की तस्वीरें और वीडियो भेजकर और उनके लिए कई भुगतान विकल्पों की पेशकश करके अपना व्यवसाय ऑनलाइन किया है।
हर बार अधिकांश लोग कुर्बानी के लिए कसाइयों की सेवा लेते हैं, लेकिन कोरोना के चलते इस बार कई ने अपनी योजना बदल दी है। अपने दम पर जानवरों की बलि देने के बजाय, वे इस काम को व्यापारियों और संगठनों को आउटसोर्स कर रहे हैं। ये समूह हर साल 'इज्तेमाई कुर्बानी' या सामूहिक कुर्बानी की व्यवस्था करते हैं, लेकिन यह उन लोगों के लिए होता है जो मवेशियों की साझा खरीद में हिस्सा लेते हैं। सात व्यक्ति एक बड़े जानवर की कुर्बानी में शामिल हो सकते हैं, जबकि एक भेड़ या बकरी को एक व्यक्ति द्वारा कुर्बान किया जा सकता है।
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टोली चौकी क्षेत्र के एक सामाजिक कार्यकर्ता फारूक अहमद, जो हर साल 'इज्तेमाई कुबार्नी' की व्यवस्था करते हैं, ने कहा कि इस बार उनके समूह ने पेशेवर कसाई सहित कई अन्य लोगों के साथ करार किया है। इस साल प्रति हिस्से की कीमत 3,400 रुपये है, जो पिछले साल 3,000 रुपये थी, क्योंकि जानवरों की कीमतें 30 से 40 प्रतिशत तक बढ़ गई हैं।
बकरीद के बारे में मौलवियों का कहना है कि तीन दिवसीय यह त्योहार पैगंबर इब्राहिम के महान बलिदान को याद करने का एक अवसर है, जिन्होंने अल्लाह के आदेश पर अपने बेटे पैगंबर इस्माइल को कुर्बान करने की पेशकश की। अल्लाह के आदेश से जब इस्माइल अपने बेटे की कुर्बानी देने चले तब अल्लाह के रहम से उनके बेटे की जगह एक मेमना आ गया। एक बुजुर्ग शख्स इश्तियाक अहमद ने कहा, "यह एक बड़ी कुर्बानी को याद करने और अल्लाह की राह में कुछ भी कुर्बान करने के लिए तैयार रहने का संकल्प लेने का अवसर है।"
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