2017 के यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने प्रदेश में अपराध और भ्रष्टाचार को खत्म करने, गरीबों-किसानों की समृद्धि के लिए काम करने और विकास के बड़े-बड़े दावे किए थे, लेकिन योगी सरकार के एक साल पूरा होने के बाद भी ये वादे अधूरे पड़े हैं। और यही वजह है कि सरकार का एक साल पूरा होने से पहले ही यूपी की जनता ने गोरखपुर और फूलपुर में बीजेपी को बुरी तरह हराकर इस वादाखिलाफी के लिए सबक सिखाया।
बीजेपी ने चुनाव अभियान में वादा किया था कि किसानों का पूरा कर्ज माफ होगा और बिना ब्याज किसानों को कर्ज दिया जाएगा। योगी सरकार ने पहली कैबिनेट मीटिंग में 36 हजार 359 करोड़ रुपए की कर्जमाफी की घोषणा की। इससे 84 लाख किसानों को कर्जमाफी का लाभ मिलना था। लेकिन अभी तक 17.30 लाख किसानों का ही कर्ज माफ हुआ है। यह लक्ष्य का सिर्फ 22 फीसदी है।
बीजेपी का एक बड़ा वादा था प्रदेश में बिजली की समस्या को दूर करने का। कहा गया था कि 2019 तक हर घर में बिजली होगी। 24 घंटे बिजली मिलने लगेगी। लेकिन एक साल के बाद भी जमीनी हकीकत में कुछ खास बदलाव नहीं हुआ है। दूसरी तरफ, बिजली का निजीकरण किया गया, जिससे बिजली के दाम 50 से 150 फीसदी तक बढ़ गए।
बीजेपी ने कहा था कि अगर उनकी सरकार आएगी तो प्रदेश की जनता के स्वास्थ्य का विशेष ख्याल रखा जाएगा। इसके लिए 25 सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल और 6 एम्स बनाए जाएंगे। हकीकत यह है कि अभी तक किसी भी सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल या एम्स के लिए जमीन तक तय नहीं हुई है। दूसरी तरफ, गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में बड़ी संख्या में बच्चों के मृत्यु की घटना सरकार की सबसे बड़ी नाकामी साबित हुई। जानकारों का कहना है कि गोरखपुर की हार का यह भी एक बड़ा कारण है।
बीजेपी का दावा था कि सरकार आने के बाद 15 जून 2017 तक प्रदेश की सड़कों को गड्ढा-मुक्त कर दिया जाएगा। खबरों में कहा गया कि कुल 1 लाख 21 हजार 816 किलोमीटर सड़क गड्ढा-मुक्त होने थे, जिनमें सिर्फ 61 हजार 433 किलोमीटर यानी सिर्फ 50 फीसदी सड़कों की ही मरम्मत हो सकी। लोगों का कहना है कि जिन सड़कों को गड्ढा-मुक्त किया गया वे फिर से पहले जैसी हो गई हैं।
इसके अलावा योगी सरकार ने कुछ ऐसे काम किए, जिसके लिए उसे काफी आलोचना झेलनी पड़ी। सरकार ने आते ही मनचलों को काबू में रखने के नाम पर आनन-फानन में एंटी रोमियो स्कवेड शुरू कर दिया और यह भी नहीं सोचा कि यह कैसे काम करेगा। इस स्कवेड ने प्रेमी और शादीशुदा जोड़ों को ही निशाने पर लेना शुरू कर दिया।
लेकिन योगी सरकार पिछले कुछ दिनों से जिस चीज के लिए मीडिया में काफी चर्चा में है, वह है एनकाउंटर। यूपी पुलिस पूरी फिल्मी शैली में कथित अपराधियों का एनकाउंटर कर रही है और उनकी संख्या हैरान करने वाली है। कहा यह भी जा रहा है कि अपनी सनक में पुलिस ने कुछ निर्दोष लोगों का भी एनकाउंटर किया है। यही वजह है कि उत्तर प्रदेश को आजकल एनकाउंटर प्रदेश कहा जाने लगा है।
15 फरवरी को योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में बताया था कि उनके कार्यकाल में कुल 1,200 मुठभेड़ हुई, जिनमें 40 अपराधियों को मार दिया गया। इस पूरे मामले को लेकर यूपी पुलिस का कार्यशैली और मंशा पर सवाल उठ रहे हैं।
पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के डीजीपी ओपी सिंह ने एक चौंकाने वाला बयान दिया। उन्होंने कहा कि पिछले 1 साल में यूपी में कोई दंगे की घटना नहीं हुई है। हाल ही में कासगंज में हुए दंगे को उन्होंने दो समूहों के बीच हुआ टकराव बताया और दावा किया कि उसे समय रहते काबू कर लिया गया था।
13 फरवरी को यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी त्रिपूरा में यह कहा था कि बीजेपी के सत्ता में आने के बाद पिछले 10 महीने में न तो कोई दंगे की घटना हुई है और न ही राज्य में कहीं कर्फ्यू लगा है। लेकिन सीएम और डीजीपी के बयानों से अलग आंकड़े कुछ और ही कहानी बताते हैं। गृह मंत्रालय द्वारा जारी हालिया आंकड़ों के मुताबिक, 2017 में देश में 822 साम्प्रदायिक घटनाएं हुईं जिनमें 111 लोग मारे गए और 2384 लोग घायल हुए। दंगों की घटनाओं से संबंधित राज्यों की बनी सूची में उत्तर प्रदेश सबसे ऊपर है। 2017 में यूपी में 195 दंगों की घटनाओं को रिपोर्ट किया गया जिनमें 44 लोगों की हत्या हुई और 542 घायल हुए।
2014 के लोकसभा चुनाव में राज्य की 80 संसदीय सीट में 71 पर जीत दर्ज की थी। इसी तरह 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने राज्य की कुल 403 सीटों में 311 पर अकेले जीत दर्ज की थी। लेकिन अब उसे यूपी में लगातार हार का मुंह देखना पड़ रहा है।
योगी को पहले मेरठ और अलीगढ़ नगर निगम सीट पर हार का मुंह देखना पड़ा और फिर गोरखपुर-फूलपुर की लोकसभा सीट। गोरखपुर लोकसभा सीट बीजेपी के पास पिछले 30 साल से थी। इस सीट से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पिछले पांच संसदीय चुनाव से लगातार जीत रहे थे। जबकि फूलपुर सीट उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की थी। वे दोनों पिछली बार रिकार्ड मतों से जीते थे।
इन सीटों पर मिली हार के बाद सत्ताधारी बीजेपी और सीएम योगी को शायद यह समझ में आ गया होगा कि आप जिन वादों के जरिये सत्ता में आते हैं, उन्हें पूरा नहीं करने पर जनता जल्द ही आपको वापस भी भेज देती है। और एक साल के भीतर इतना बड़ा पतन तो अपने आप योगी सरकार के कार्यकाल की कहानी कहता है।
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